नक्सलियों के सारंडा के जंगल से झाड़ग्राम पहुंचने की आशंका, इलाके पर सुरक्षाबलों की पैनी नजर
नक्सलियों के सारंडा के जंगल से झाड़ग्राम पहुंचने की आशंका, इलाके पर सुरक्षाबलों की पैनी नजर


झाड़ग्राम, 12 जून (हि.स.)।

एशिया का सबसे बड़ा शाल जंगल सारंडा अब झारग्राम पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया है। यह जंगल झारखंड के पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला जिले तक फैला हुआ है। यह माओवादियों का पनाहगाह है। पिछले सप्ताह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के कमलापुर थाने की पुलिस ने बेलपहाड़ी के जमीरडीहा गांव के माओवादी नेता जावा, बिदरी गांव के मंगल सिंह सरदार और गोपीबल्लभपुर थाने के पथरनाशा गांव की मालती के घर आकर कोर्ट का नोटिस तामील कराया। इससे जिले के राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। सिर्फ राजनीतिक हलकों में ही नहीं, बल्कि जिले के पुलिस हलकों में भी चिंता है। क्योंकि झारग्राम जिला झारखंड से सटा हुआ है और जंगलों से घिरा हुआ है। जंगलों के रास्ते झारखंड से झारग्राम में लोगों के आने की काफी संभावना रहती है।

हाल ही में छत्तीसगढ़ में एक संयुक्त अभियान में दो शीर्ष माओवादी नेताओं की मौत और उसके बाद माओवादियों द्वारा किए गए प्रेशर माइन विस्फोट में एक पुलिस अधिकारी की मौत ने तनाव बढ़ा दिया है। इस स्थिति में सूत्रों का कहना है कि माओवादी सारंडा जंगल से सुरक्षित ठिकाने की तलाश में झाड़ग्राम के जंगलों में प्रवेश कर सकते हैं। इसने जिले के पुलिस अधिकारियों का रक्तचाप बढ़ा दिया है। जिले के जंगलों से सटे सीमावर्ती इलाकों में लगातार निगरानी की जा रही है। झाड़ग्राम के एसपी अरिजीत सिन्हा ने बताया कि केंद्र और राज्य के खुफिया विभागों की सूचना के अनुसार झाड़ग्राम में माओवादी मूवमेंट की कोई खबर नहीं है। यह जिला झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले की सीमा से लगता है। उस जिले को भी माओवाद मुक्त घोषित किया जा चुका है। यह जिला पश्चिमी सिंहभूम जिले की सीमा से नहीं लगता है। हालांकि, उस जिले के सारंडा जंगल में माओवादी मूवमेंट हो सकता है। पहले की तरह निगरानी चल रही है। झाड़ग्राम और जंगलमहल के विशाल क्षेत्र में जंगल हैं। घने जंगल के रास्तों से एक राज्य से दूसरे राज्य में आसानी से जाया जा सकता है।

1990 के दशक के उत्तरार्द्ध में, पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्लूजी) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के सदस्यों ने झाड़ग्राम, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुरा और पुरुलिया में अलग-अलग काम करना शुरू कर दिया। बाद में, दोनों समूहों का विलय होकर सीपीआई (माओवादी) बन गया। माओवादियों ने पिछड़ापन और गरीबी को उपकरण के रूप में उपयोग करके अपने संगठनों का नेटवर्क फैलाया। 2 नवंबर 2008 को, पश्चिम मेदिनीपुर के शालबनी के भादुतला में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और केंद्रीय इस्पात मंत्री रामविलास पासवान के काफिले में एक भूमि सुरंग में विस्फोट हुआ। 28 मई 2010 को, झाड़ग्राम में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पटरी से उतर गई, जिसमें 148 यात्री मारे गए। पुलिस का मानना है कि इसके पीछे भी माओवादी थे। पूरे जंगल क्षेत्र में सौ से अधिक निर्दोष लोग जानलेवा राजनीति के शिकार हुए। पल्लकी माओवादी नेता किशन जी की मौत के बाद नक्सली गतिविधियां लगभग समाप्त हो गई लेकिन एक बार फिर जिले के राजनीतिक हलकों में हलचल शुरू हो गई है। झाड़ग्राम में केंद्रीय बलों की 10 कंपनियां तैनात हैं। इसके बाद भी माओवादियों के पुराने ठिकानों में शरण लेने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। माकपा के झाड़ग्राम जिला सचिव प्रदीप सरकार ने कहा, हमारी पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता माओवादियों द्वारा मारे गए हैं। माओवादियों की आतंक की राजनीति भी हमारे लिए परेशानी का सबब है। झाड़ग्राम जिला तृणमूल उपाध्यक्ष प्रसून शरंगी ने कहा, वामपंथी नेताओं के अत्याचार ने माओवादियों को पनपने में मदद की। विकास के जरिए जिले में शांति लौटी है। आतंक की राजनीति में कोई जगह नहीं है।

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हिन्दुस्थान समाचार / धनंजय पाण्डेय