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जोधपुर, 10 जून (हि.स.)। संत चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा है कि जीवन को भुनभुनाते हुए नहीं, गुनगुनाते हुए जीना चाहिए। हमारा जीवन परम पिता परमेश्वर का प्रसाद है। इसे विषाद बनाना हमारे जीवन की भूल है। जब जो हो जाए, उसे आह... आह... कहकर दुखी होने की बजाय वाह...वाह... कहकर जीवन के हर पल का आनंद लेना चाहिए। थाली में आए हुए भोजन में कमी निकालने की बजाय हमें भगवान का शुकराना अदा करना चाहिए, जिसकी कृपा की बदौलत हमें भोजन मिला है। कड़ी मेहनत करके अन्न उपजाने वाले किसान और 46 डिग्री गर्मी में भी किचन में खाना बनाने वाली भागवान का शुकराना अदा करना चाहिए।
संत चन्द्रप्रभ संबोधि धाम में आयोजित सत्संग साधना समारोह में श्रद्धालुजनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि एक जमाना था जब हमारे पास सुविधाएँ कम थी, पर सुकून बहुत था। आदमी सुख की रोटी खाता था और चैन की नींद सोता था। गले में सोने की चैन हो या न हो, पर रात को चैन की नींद है तो आप दुनिया के सबसे सुखी आदमी है। क्रोध, कषाय और अहंकार में जीने वाला व्यक्ति अपने जीवन की सुख की घडिय़ाँ हाथ से खो देता है। तब जि़ंदगी बड़ी गज़ब की हो जाती है, जब बेडरूम में तो एसी लगा होता है, पर आदमी के दिमाग में हीटर जल रहा होता है।
संतप्रवर ने कहा कि हमारा यह जीवन परमपिता परमेश्वर का दिया हुआ वरदान है। दुनिया में इससे ज्यादा बेशकीमती और कुछ नहीं हो सकता। कल्पना कीजिए इस दुनिया में सब कुछ हो, पर हमारा जीवन न हो, तो पूरी दुनिया क्या काम की रहेगी? हमें जीवन के हर पल को आनन्द और उत्साह से भरना चाहिए। अगर प्रेम, माधुर्य और आनन्द से जीवन जीना आ जाए तो व्यक्ति जीते जी धरती को स्वर्ग बनाने में सफल हो जाएगा। जो हमें प्राप्त है उसका आनन्द लें। जो आपने चाहा, वह मिल गया, इसका नाम सफलता है और जो आपको मिला है, आपने उसे ही प्रेम से स्वीकार कर लिया, उसीका ही नाम शांति है। जो नहीं है, उसका रोना रोने के बजाय, जो है उसका आनन्द उठाना सीख लें तो हमारी जि़ंदगी जन्नत बन सकती है। हर हाल में खुश रहना, जिंदगी का यही मंत्र होना चाहिए।
सत्संग से पूर्व योग थैरेपिस्ट लालचन्द कानजानी ने योग की बारीकियां समझाते हुए स्वास्थ्यवर्धक योगाभ्यास करवाया। तनाव मुक्ति के लिए योग निद्रा का भी प्रयोग किया गया।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश