लक्ष्मी पुरी को पंडित हरिदत्त शर्मा पुरस्कार
लक्ष्मी पूरी


नई दिल्ली, 10 जून (हि.स.)।

लेखिका एवं संयुक्त राष्ट्र की पूर्व सहायक महासचिव व राजदूत लक्ष्मी पुरी को मंगलवार को पंडित हरिदत्त शर्मा पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। केन्द्रीय संस्कृती एवं पर्यटन सचिव विवेक अग्रवाल ने लक्ष्मी पुरी को प्रशस्ति पत्र और पुरस्कार राशि भेंट की। राष्टीय संग्रहालय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में केन्द्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता संपादक अनुराधा प्रसाद ने की। अतिथियों का स्वागत कविडॉ अशोक चक्रधर ने अपने अनूठे अंदाज में किया। पंडित हरिदत्त शर्मा पुरस्कार समिति के सचिव मनोज शर्मा ने लक्ष्मी का परिचय विवरण दिया।

अभिनन्दननार्थ आयोजित 'पंडित हरिदत्त शर्मा पुरस्कार' समर्पण समारोह में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए लक्ष्मी ने पुरस्कार के लिए समिति का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस सम्मान के माध्यम से विराट व्यक्तित्व से जोड़ने का अवसर मिला है। उन्होंने कहा कि पंडित हरिदत्त शर्मा हिंदी पत्रकारिता और साहित्य के अग्रदूत रहे। वो एक विचारधारा थे। उन्होंने राजनीति, समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाई। सच्चाई निर्भीकता को अपने जीवन का मंत्र बनाया। उन्होंने उनकी विरासत को लोगों तक पहुंचने के लिए फाउंडेशन की सराहना की।

अपनी उपन्यास स्वेलोइंग द सुन के बारे बताते हुए लक्ष्मी पुरी ने कहा कि इस नोबेल की नायिका मालती पंडित हरिदत शर्मा के प्रेरणा से जन्मी है। यह एक निडर स्त्री की कहानी है जो अपनी राह को स्वयं बनाती है। यह एक उपन्यास ही नहीं है यथार्थ नायिका है।

उन्होंने कहा कि उनका उपन्यास नारी शक्ति को श्रद्धांजलि है। उन्होंने कहा कि नारी शक्ति को उजागर करने के लिए पुरुषों को सामने आकर बाग डोर अपने हाथ में लेना जरूरी है। उन्होंने उनके जीवन में उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए अपने पिता, नाना और अपने पति हरदीप पुरी का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस उपन्यास से इतिहास को संवेदना से जोड़ने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि उन्होंने डिप्लोमेट के नाते भारत का प्रतिनिधित्व किया है। जिसने उनके साहित्यकार मन को भारतीय सोच को समृद्ध किया है। उपन्यास भारतीयता को वैश्विक मंच पर लाने का प्रयास है। लक्ष्मी पूरी ने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा कि विश्वास रखें, धैर्य रखें, असंभव भी संभव हो सकता है। आज के भारत के लिए यही पैगाम है। लगेगा मंजिल दूर है लेकिन सब संभव है।

यह पुस्तक उन अभिभावक को विनम्र श्रद्धांजलि है, जिनके संतानों ने स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष किया, लड़ाई लड़ी है। इसमें भारतीयता की आत्मा विराजमान है।

इस मौके पर डॉ. एच. एन. शर्मा, शैलेंद्र शर्मा, आलोक कृष्ण अग्रवाल, डॉ. राजू व्यास, मनोज शर्मा, मोनिका शर्मा सहित कई विशिष्ट लोग मौजूद थे।

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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी