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--हिन्दू सम्मेलन देवप्रयाग नगर प्रयागराज दक्षिण भाग में गूंजा ’पंच परिवर्तन’ का आह्वान
प्रयागराज, 07 दिसम्बर (हि.स.)। संगमनगरी के देवप्रयाग में रविवार को एक महत्वपूर्ण हिन्दू सम्मेलन का आयोजन किया गया। मंच पर जगद्गुरु स्वामी राजकुमार आनंद महाराज, ब्रह्मा कुमारीज बहन श्वेता, गायत्री परिवार के रामाश्रय यादव, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख मिथिलेश और आर्य समाज के चैतन्यानंद सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक मिथिलेश ने संघ के शताब्दी वर्ष के संदर्भ में राष्ट्र निर्माण के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने जोर दिया कि भारत को पुनः “विश्व गुरु“ के रूप में स्थापित करने के लिए प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत स्तर पर बदलाव लाना होगा।
--सनातन ही हिन्दू, हिन्दू ही सनातनसंघ प्रचारक ने ’सनातन’ और ’हिन्दू’ पहचान को पर्यायवाची बताते हुए हिन्दू समाज को संगठित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि सनातन परम्पराओं और भारत में जन्मे सभी दर्शनों का सम्मान करने वाला व्यक्ति हिन्दू है। उन्होंने जोर दिया कि संघ का लक्ष्य केवल एकता और संगठन है, न कि शब्दों के चयन पर बहस करना।
--सामाजिक समरसताः एकता का आधारउन्होंने सामाजिक समरसता को हिन्दू समाज के अस्तित्व के लिए अनिवार्य शर्त बताया। उन्होंने जाति-आधारित भेदभाव और छुआछूत की कड़ी निंदा करते हुए इसे एक नारकीय प्रथा कहा। उन्होंने ऐतिहासिक, पौराणिक और वीर सावरकर के उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि समाज के सभी वर्गों को एक मां के बेटों की तरह प्रेम और सम्मान के साथ एकजुट होना होगा। “जातिगत भेदभाव हिन्दू समाज को बचाने और हिंदुस्तान को सुरक्षित रखने के लिए एक अनिवार्य शर्त है। इसे पूरी तरह समाप्त करना होगा।“
--पंच परिवर्तनः राष्ट्र निर्माण का रोडमैपमिथिलेश ने संघ के शताब्दी वर्ष में राष्ट्र को सुरक्षित और विकसित बनाने के लिए “पंच परिवर्तन“ का एक पांच-सूत्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जिसे हर व्यक्ति को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
--परिवर्तन : मुख्य बिंदु 1. परिवार प्रबोधन - संगठित, संस्कारित और सनातन परिवारों का निर्माण। पश्चिमी शब्दों और आधुनिक पहनावे के प्रति आलोचना। 2. सामाजिक समरसता : जातिगत भेदभाव और छुआछूत को पूरी तरह समाप्त कर समाज में प्रेम और एकता बढ़ाना। 3. पर्यावरण संरक्षण - प्लास्टिक और थर्माकोल के उपयोग की निंदा, भूजल दोहन पर चिंता और जल संरक्षण का आग्रह। 4. स्व का बोध (स्वदेशी भाव) - जीवन, पहनावे, खान-पान और संगीत में भारतीयता को प्रकट करना। अपनी मातृभाषा में हस्ताक्षर करने पर जोर।5. नागरिक शिष्टाचार - यातायात नियमों का पालन करना, सार्वजनिक स्थानों पर थूकने और गंदगी फैलाने जैसी अशोभनीय आदतों को त्यागना।
--पर्यावरण पर विशेष चिंतावक्ता ने प्लास्टिक के खतरों और सबमर्सिबल पम्पों द्वारा भूजल के अत्यधिक दोहन पर गहरी चिंता व्यक्त की, चेतावनी दी कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए हो सकता है। उन्होंने सभी से पानी बचाने और प्लास्टिक का उपयोग न करने का संकल्प लेने का आग्रह किया।
इस अवसर पर गायत्री परिवार के राम आसरे यादव ने कहा कि, “जो अपने अवगुणों का हरण करेगा वही हिन्दू बनेगा। सम्मेलन में यह विचार भी सामने आया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और अन्य संगठनों के लोग वैभव और कीर्ति का त्याग करके राष्ट्र और धर्म की रक्षा में लगे हुए हैं, जिसका परिणाम यह है कि सनातन धर्म के कार्यों को रोकने वाले ’राक्षसी’ शक्तियां अब कमजोर पड़ रही हैं।
कार्यक्रम का संचालन और मंच पर उपस्थित अतिथियों का सम्मान अवनीश और चारु मित्र सहित अन्य कार्यकर्ताओं ने शॉल, अंगवस्त्र और श्रीफल देकर किया। सम्मेलन का समापन इस दृढ़ विश्वास के साथ हुआ कि भारत को “विश्व गुरु“ बनाने की जिम्मेदारी केवल सरकार या सेना की नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की है। जो व्यक्तिगत सुधार के संकल्प “हम बदलेंगे, युग बदलेगा“ से ही संभव होगा। मंच का संचालन कृष्णाचरण त्रिपाठी ने किया। इस अवसर पर डॉ कृष्ण गोपाल अग्निहोत्री, वीरेंद्र त्रिपाठी, नरेंद्र श्रीवास्तव, कृष्ण मनोहर त्रिपाठी, वशु पाठक, चारु मित्र पाठक, आशीष गोस्वामी सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र