पर्यावरण संकट की जड़ें मनुष्य के दृष्टिकोण में निहित – प्रो. अग्रवाल
अजमेर, 13 दिसम्बर(हि.स.)। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, सेंट्रल अकादमी, अजमेर एवं अपना संस्थान राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पर्यावरण कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. सुरेश कुमार अ
पर्यावरण संकट की जड़ें मनुष्य के दृष्टिकोण में निहित – प्रो. अग्रवाल


अजमेर, 13 दिसम्बर(हि.स.)। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, सेंट्रल अकादमी, अजमेर एवं अपना संस्थान राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पर्यावरण कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने कहा कि पर्यावरण संकट हमारे दिमाग में है , न कि केवल जलवायु में। उन्होंने कहा कि वर्तमान युग में ग्लोबल वार्मिंग, जल संकट और जैव विविधता के विनाश जैसी चुनौतियाँ केवल भौतिक या तकनीकी नहीं हैं, बल्कि हमारे दृष्टिकोण और सोच की उपज हैं।

प्रो. अग्रवाल ने विषय पर अपने व्याख्यान में बताया कि पश्चिमी दर्शन ने मनुष्य को प्रकृति से पृथक कर दिया, जिसके कारण मनुष्य ने पृथ्वी पर स्वामित्व और प्रभुत्व की भावना विकसित की। इसके विपरीत भारतीय दर्शन एकीकरण और श्रद्धा पर आधारित है, जहाँ मनुष्य, प्रकृति और सृष्टि के बीच संबंध सामंजस्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतन में ज्ञान पतन का नहीं, बल्कि मुक्ति का साधन है; श्रम दंड नहीं, बल्कि एक पवित्र यज्ञ है; और पृथ्वी कोई शापित भूमि नहीं, बल्कि ‘धरती माता’ है जो सभी जीवों का पालन करती है।

उन्होंने कहा कि मनुष्य को स्वामी नहीं, बल्कि प्रकृति का सेवक और संरक्षक बनना चाहिए। प्रकृति को संसाधन नहीं, बल्कि सहचर के रूप में देखने का यह दृष्टिकोण ही स्थायी समाधान की दिशा में वास्तविक कदम है। यह भी कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध है तथा शिक्षण, शोध और सामाजिक सहभागिता के माध्यम से पर्यावरणीय चेतना को सुदृढ़ करने के लिए निरंतर कार्य कर रहा है।

राजस्थान क्षेत्रीय पर्यावरण संरक्षक विनोद मेलाना ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर से करनी चाहिए। उन्होंने हरे कचरे को अलग संगृहीत करने, पॉलिथीन के न्यूनतम उपयोग तथा जैव विविधता संरक्षण पर बल दिया। उन्होंने चीन का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि पारिस्थितिकी संतुलन से छेड़छाड़ के दुष्परिणाम पूरी खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करते हैं। साथ ही उन्होंने संघ के पाँच परिवर्तनों को भारत के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण बताया।

द्वितीय सत्र में हरित विस्तारक चंद्रशेखर ने कहा कि हमारे पूर्वज भले ही कम शिक्षित थे, किंतु वे प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अत्यंत सजग थे। उन्होंने राजस्थान के मरुस्थल के पर्यावरणीय महत्व पर प्रकाश डालते हुए उसे प्रकृति के साथ सामंजस्य का उदाहरण बताया। जयपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के प्राचार्य डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण की नींव बच्चों से रखी जानी चाहिए तथा बचपन से ही उनमें पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता विकसित करनी चाहिए।

विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रबंध माथुर ने वेदों से वर्तमान तक भारतीय दृष्टिकोण में पर्यावरण संरक्षण की अवधारणा पर व्याख्यान दिया तथा खेजड़ी वृक्ष के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय चेतना समाज की सोच बदलने की क्षमता रखती है।

इस अवसर पर सार्थक सुल्तानी एवं कुमकुम दाधीच ने भी पर्यावरण संरक्षण एवं एसआईपी (सोशल इंटर्नशिप प्रोग्राम) की जानकारी प्रतिभागियों को दी।

कार्यशाला में चित्तौड़ प्रांत संघचालक जगदीश राणा, महानगर संघ चालक खाजू लाल चौहान, विज्ञान भारती के क्षेत्रीय संरक्षक पुरुषोत्तम परांजपेय, निरंजन शर्मा

सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं पर्यावरण प्रेमियों ने उत्साहपूर्वक सहभागिता की।

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हिन्दुस्थान समाचार / संतोष