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कोलकाता, 11 दिसंबर (हि.स.)। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए गुरुवार को कहा है कि प्रेम संबंध होने के बावजूद नाबालिग किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध के लिए वैध सहमति नहीं दे सकती। अदालत ने साफ किया कि नाबालिग की ओर से दी गई सहमति कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं होती और पॉक्सो कानून के तहत उसे मान्यता नहीं दी जा सकती।
यह मामला वर्ष 2014 का है, जब एक नाबालिग लड़की प्रेम संबंध में थी। वर्ष 2016 में उसके प्रेमी के साथ शारीरिक संबंध बनाए। आरोप है कि इसके बाद कई बार नाबालिग की आपत्ति के बावजूद युवक ने जबरन संबंध बनाए, जिससे वह गर्भवती भी हुई। इसके बाद आरोपित ने पितृत्व स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इसके बाद नारकेलडांगा थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई गई। निचली अदालत ने युवक को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
इस फैसले काे चुनौती देते हुए आरोपित पक्ष ने उच्च न्यायालय में नाबालिग की उम्र व सहमति को आधार बनाकर अपील दाखिल की थी। इस अपील की सुनवाई न्यायमूर्ति राजाशेखर मन्था और न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता की खंडपीठ में चल रही थी।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि पीड़िता के बयान और डीएनए रिपोर्ट अगर आरोप साबित कर दें तो फिर किसी अन्य साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रेम संबंध का अस्तित्व नाबालिग की सहमति को वैध नहीं बनाता। नाबालिग सहमति दे भी दे तो भी वह कानूनन मान्य नहीं है।
खंडपीठ ने निचली अदालत की ओर से दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। साथ ही राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को 15 दिनों के भीतर पीड़िता को 1.80 लाख रुपये देने का निर्देश दिया है। आरोपित को अतिरिक्त दो लाख रुपये क्षतिपूर्ति के तौर पर देने होंगे। यदि वह फिलहाल जमानत पर है, तो उसे तुरंत आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है।--------------------
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर