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हैलोवीन (31 अक्तूबर) पर विशेष
- योगेश कुमार गोयल
हैलोवीन ऐसा उत्सव है जो हर साल 31 अक्तूबर को मनाया जाता है। यह केवल एक पार्टी या वेशभूषा का पर्व नहीं है बल्कि इसमें इतिहास, रहस्य और संस्कृति का अनूठा संगम छिपा है। पश्चिमी ईसाई धर्म के ऑल सेंट्स डे की पूर्व संध्या पर मनाया जाने वाला यह पर्व आधुनिक समय में मनोरंजन और डरावने रस के साथ-साथ ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व भी रखता है। इसकी जड़ें प्राचीन सेल्टिक परंपराओं में हैं, जो आज के आधुनिक स्वरूप तक विकसित होती चली आई हैं।
हैलोवीन की उत्पत्ति लगभग सातवीं शताब्दी तक जाती है, जब सेल्टिक लोग अपने नए साल के जश्न ‘समाहिन’ के अवसर पर बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए अलाव जलाते और मुखौटे पहनते थे। यह पर्व मुख्यतः फसल के मौसम के अंत और ठंडी ऋतु के आगमन का संकेत देता था। उन्हें विश्वास था कि इस दिन मृतकों की आत्माएं धरती पर वापस आती हैं और जीवित लोगों की दुनिया के बीच की सीमा धुंधली हो जाती है। इसलिए, वे अपने घरों और गांवों को आग और धुएं से सुरक्षित रखते, डरावने मुखौटे पहनते और जश्न मनाते।
समाहिन उत्सव के दौरान लोग रात में बड़े अलाव जलाते और उनसे निकलने वाली रोशनी और धुआं बुरी आत्माओं को भटकाने के काम आता। इसके साथ ही, लोगों ने अपने चेहरे पर डरावने मुखौटे पहनकर आत्माओं को भ्रमित करने और सुरक्षित रहने की परंपरा बनाई। यह सामूहिक उत्सव न केवल सामाजिक एकता का प्रतीक था बल्कि जीवन और मृत्यु, अंधकार और प्रकाश के बीच के संबंध को भी दर्शाता था। सेल्टिक परंपराओं में रोमनों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। रोमनों ने सेल्टिक क्षेत्रों में अपने धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों को समाहित किया। इनमें से एक प्रमुख उत्सव था ‘फेरालिया’, जो खोई हुई आत्माओं की स्मृति और सम्मान में मनाया जाता था। रोमन परंपराओं के शामिल होने से हैलोवीन उत्सव को नया अर्थ मिला, जिसने इसे अधिक सामाजिक और सांस्कृतिक रूप दिया।
हैलोवीन आधुनिक समय में केवल धार्मिक या आध्यात्मिक पर्व नहीं रहा, यह अब एक वैश्विक उत्सव बन गया है, जिसमें रचनात्मकता, डर और मनोरंजन का समावेश है। कद्दू को काटकर चेहरे उकेरे जाते हैं और उसके भीतर मोमबत्तियां लगाई जाती हैं। यह केवल सजावट नहीं बल्कि प्राचीन विश्वास के अनुसार बुरी आत्माओं को डराने और उन्हें घर से दूर रखने का माध्यम भी है। अजीब तरह के चेहरे और प्रकाश का खेल रात के अंधकार में डर और रहस्य को बढ़ा देता है। हैलोवीन के दौरान ‘ट्रिक-ऑर-ट्रीटिंग’ का चलन सबसे मजेदार और बच्चों के लिए प्रिय परंपरा है। यह परंपरा मध्यकालीन यूरोप से आई है, जब लोग मृतकों की आत्माओं के सम्मान में अपने घरों पर भोजन और मिठाई छोड़ते थे। धीरे-धीरे यह खेल-खेल में बच्चों के लिए मिठाई और उपहार लेने की परंपरा में बदल गया। आज, बच्चे डरावने वेशभूषा में अपने पड़ोसियों के घर जाकर मिठाई लेने का आनंद लेते हैं और यदि उपहार न मिले तो हल्की शरारत करना भी इस परंपरा का हिस्सा बन गया है।
हैलोवीन की रंगत में काले और नारंगी रंग का विशेष महत्व है। नारंगी रंग फसल और पतझड़ के मौसम का प्रतीक है जबकि काला अंधकार, मृत्यु और रहस्य को दर्शाता है। सांस्कृतिक रूप से हैलोवीन ने दुनियाभर में अपनी पैठ बना ली है। अमेरिका में इसे बड़े उत्साह और व्यावसायिकता के साथ मनाया जाता है। घरों और दुकानों में डरावनी सजावट की जाती है, थीम आधारित पार्टियां आयोजित की जाती हैं और बच्चों के साथ-साथ व्यस्क भी इस उत्सव में शामिल होते हैं। इसके अलावा, हॉरर फिल्मों की स्क्रीनिंग और हैलोवीन खेल जैसे भूतिया घर की सैर, डरावनी कहानी सुनाना और परंपरागत खेल इस उत्सव की आकर्षक विशेषताएं हैं।
हैलोवीन के आधुनिक उत्सव में खाद्य संस्कृति का भी एक अलग ही महत्व है। कैंडी, कैंडी सेब, मिठाई और अन्य स्वादिष्ट व्यंजन इस दिन का मजा बढ़ाते हैं। बच्चों के लिए यह दिन केवल डर और मजा ही नहीं बल्कि साझा करने और आनंद लेने का भी प्रतीक है। मोमबत्तियां, अलाव और सजावट से जुड़े तत्व इसे एक सामूहिक और सामाजिक अनुभव में बदल देते हैं, जो परिवार और मित्रों के साथ बिताए गए समय को यादगार बनाता है।
हैलोवीन केवल डर और मनोरंजन का पर्व नहीं है, बल्कि यह मानव संस्कृति और इतिहास का प्रतीक भी है। समय के साथ हैलोवीन का महत्व बदलता रहा है लेकिन इसका मूल संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है। चाहे आप जैक-ओ-लालटेन बनाएं, ट्रिक-ऑर-ट्रीटिंग करें या केवल दोस्तों के साथ डरावनी कहानियां साझा करें, हैलोवीन हर बार नए अनुभव और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह उत्सव जीवन की जटिलताओं, अंधकार और प्रकाश के बीच संतुलन का प्रतीक है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश