सावधान रहें पशुपालक, हरियाणा में भेड़-बकरियों में फैल रही फुट रॉट बीमारी
फुट रॉट बीमारी से पीड़ित भेड़।


बढ़ते मामलों के मद्देनजर लुवास ने पशुपालकों के लिए जारी की एडवाइज़री

हिसार, 22 अक्टूबर (राजेश्वर बैनीवाल)। हरियाणा के कई जिलों में भेड़ और बकरियों में फुट

रॉट (पैर सड़न) नामक संक्रामक बीमारी फैल रही है। हाल ही में सामने आए इन मामलों के

साथ ही विशेषज्ञ भी सतर्क हो गए हैं। इस बीमारी में भेड़ व बकरियाों के पैरों में संक्रामक

रोग हो जाता है। हाल के मानसून मौसम के कारण बने गीले व कीचड़युक्त वातावरण में फुट रॉट बीमारी

के तेजी से फैलने की आशंका बढ़ गई है। यह रोग मुख्यतः डिकेलोबैक्टर नोडोसस एवं फ़्यूज़ोबैक्टीरियम

नेक्रोफोरम नामक जीवाणुओं के संक्रमण से होता है, जो पशुओं के खुरों को प्रभावित करता

है।यदि समय पर इसका उपचार न किया जाए, तो इससे पशुओं में लंगड़ापन, तेज दर्द और दूध

व ऊन उत्पादन में भारी गिरावट हो सकती है। फुट रॉट के प्रमुख लक्षणों में चलने में

कठिनाई, खुरों के आसपास सूजन व लालिमा, दुर्गंधयुक्त सड़न, खुर की ऊपरी सतह का अलग

होना और कभी-कभी बुखार एवं बेचैनी देखी जाती है।

यहां पर आए गए रोग के लक्षण

हरियाणा के अलावा साथ लगते राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में भी इन रोग के लक्षण

पाए गए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार फिलहाल य​​ह रोग विशेष रूप से हरियाणा के हिसार,

भिवानी, जींद और राजस्थान के सीमावर्ती जिलों चूरू व हनुमानगढ़ में अधिक मात्रा में

पाया गया है।

विशेषज्ञ हुए सक्रिय

फुट रॉट बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए यहां के लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा

एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) ने पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सलाह जारी की

है।विश्वविद्यालय के पशु जन-स्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश

खुराना ने बुधवार काे बताया कि विश्वविद्यालय की विशेषज्ञ टीमें लगातार फील्ड में सक्रिय हैं और

प्रभावित पशुओं की जांच एवं उपचार कर रही हैं।

पशुपालकों को ये दी सलाह

लुवास की ओर से पशुपालकों को सलाह दी गई है कि वे पशुओं के रहने के स्थान को

साफ-सुथरा और सूखा रखें। नियमित रूप से फुट बाथ कराना अत्यंत आवश्यक है, जिसमें 10

प्रतिशत जिंक सल्फेट, 4 प्रतिशत फॉर्मेलिन या 0.5 प्रतिशत लाल दवा के घोल से खुरों

की सफाई की जानी चाहिए। संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें, खुरों की नियमित

सफाई करें और घावों को मक्खियों से सुरक्षित रखें। बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत

निकटतम पशु चिकित्सक से संपर्क करें।

टीमें कर रही पहचान

डॉ. खुराना ने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय की टीमें पीपीआर, चिचड़ी जनित

रोग और आंतरिक परजीवियों से होने वाले अन्य संक्रामक रोगों की भी पहचान कर रहीं हैं।

इसके साथ ही पशुपालकों को समय पर रोकथाम एवं बचाव संबंधी जानकारी प्रदान की जा रही

है। फुट रॉट बीमारी से संबंधित लुवास के वैज्ञानिक डॉ रमेश और डॉ पल्लवी ने पशुपालकों

से अपील की है कि वे इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए स्वच्छता, जैव-सुरक्षा एवं

आवश्यक सतर्कता बरतें। अधिक जानकारी एवं सहायता के लिए पशुपालक विश्वविद्यालय में संपर्क

कर सकतें हैं अथवा निकटतम पशु चिकित्सालय में जाकर परामर्श ले सकतें हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर