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गोपालगंज, 21 अक्टूबर (हि.स.)। बिहार विधानसभा चुनाव के नामांकन और नाम वापसी की प्रक्रिया पूरी होते ही अब चुनावी समर का असली रंग सामने आने लगा है। जिले के 6 विधानसभा क्षेत्र में 46 उम्मीदवार चुनाव मैदान में रह गए है। जिले के राजनीतिक गलियारों में इन दिनों चर्चाओं का विषय यह है कि मन मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए यानी पार्टी के भीतर एक-दूसरे से औपचारिक सौहार्द बनाए रखते हुए भी अंदर ही अंदर असंतोष की आग धधक रही है।
राजद, कांग्रेस और भाजपा तीनों प्रमुख दलों के भीतर टिकट वितरण के बाद बगावत के स्वर तेज हो गए हैं। जिन नेताओं को पार्टी ने टिकट नहीं दिया, उनमें से कई ने पहले निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन कर पार्टी नेतृत्व को चुनौती दी और फिर नाम वापसी कर यह संदेश देने की कोशिश की कि वे अब भी पार्टी के साथ हैं। लेकिन अंदरूनी हलचलों से स्पष्ट है कि कई बागी नेता अब भी अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचाने में जुटे हैं।
जिले में व्यवसायी वर्ग से किसी पार्टी ने अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है। जबकि पिछले उप चुनाव में राजद ने अपना उम्मीदवार व्यवसायी को बनाया था। जिसको देखते हुए राजग में जिले के एक दर्जन व्यवसायी टिकट के दावेदार थे, उसी प्रकार महागठबंधन में भी उम्मीदवारों की लाइन लगी थी। लेकिन जिले के व्यवसायियों को खाली हाथ लौटना पड़ा। इसको लेकर व्यवसायी वर्ग में दोनों दल के प्रति नाराजगी देखी जा रही है।
राजद में यह असंतोष सबसे अधिक दिखाई दे रहा है। पार्टी के पूर्व विधायक और कद्दावर नेता रेयाजुल हक राजू खुले तौर पर चुनाव मैदान में हैं। बताया जा रहा है कि उन्होंने पार्टी द्वारा नए उम्मीदवार को तरजीह देने के निर्णय को अवास्तविक बताया है और अपने जनाधार के बल पर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता भी दो खेमों में बंटे नजर आ रहे हैं।
इसी तरह भाजपा में भी असंतोष की लहर है। पार्टी के पूर्व जिला अध्यक्ष एवं वरिष्ठ नेता अनुपलाल श्रीवास्तव, जो लगभग 40 वर्षों से भाजपा संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाते रहे हैं, इस बार टिकट न मिलने से नाराज हैं और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में डटे हुए हैं। उनका यह कदम भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है, क्योंकि वे स्थानीय स्तर पर मजबूत पकड़ रखने वाले नेता माने जाते हैं। कांग्रेस में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। कई पुराने और समर्पित नेताओं ने टिकट वितरण को लेकर असंतोष जताया है। हालांकि, शीर्ष नेतृत्व ने बागी रुझान पर संयम की अपील की है, परंतु कई नेता अंदर से विरोध की रणनीति अपनाते दिख रहे हैं। चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि टिकट से वंचित नेताओं का यह रवैया सीधे तौर पर दलों की एकजुटता को प्रभावित करेगा। इनमें से कुछ नेताओं ने भले ही नामांकन वापस ले लिया हो, पर उनके समर्थक अब भी सक्रिय हैं और संगठनात्मक गतिविधियों में शिथिलता दिखाई दे रही है। भले ही मंच से सभी दल एकजुटता की बातें कर रहे हो, परंतु जमीनी हकीकत यह है कि नेताओं के बीच मन भले न मिले, पर हाथ मिलाने की मजबूरी ने इस चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है।
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हिन्दुस्थान समाचार / Akhilanand Mishra