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अररिया 21 अक्टूबर(हि.स.)। दीपावली के मौके पर ग्रामीण क्षेत्रों में हुक्का पाती खेलने का पौराणिक रीति रिवाज है।इस बार भी दीपावली की रात हुक्का पाती खेलने की धूम रही। बड़ी संख्या में घर को पुरुषों और महिलाओं ने जूट की संठी लकड़ी से बनी हुक्का पाती जलाकर तर्पण किया और मां लक्ष्मी से सुख, समृद्धि की मंगलकामना की।
ग्रामीण परिवेश में आज भी दिवाली में हुक्का पाती खेलने का रिवाज़ है। समस्त ग्रामवासी अपने अपने घर से जूट की संठी की लकड़ी से बनी हुक्का को अपने पूजा घर के चिराग से सुलगाते हैं। हुक्का को सुलगाने के बाद ग्रामीण इलाकों में घर का दलिदर (दरिद्र) अर्थात दरिद्रता बाहर जा, बाहर से लक्ष्मी घर आ का आह्वान करते हैं।जिसके बाद गांव के बाहर सभी अपने-अपने हाथ में सुलगते हुए हुक्का लेकर जमा होते हैं और फिर वहीं उसे एकसाथ जलाते हैं। कुछ नौजवान धधकते हुए आग की लौ को फांदते हैं और अपनी वीरता का परिचय देते हैं। यह सब एक रस्म है, जिसमें रिस्क भी है। हुक्का पाती के बाद पटाखे और आतिशबाजी की जाती है।
जानकार पंडित मनीष पांडेय बताते हैं कि हुक्का-पाती जैसे प्राचीन रीति-रिवाज आज भी हमारी सांस्कृतिक विरासत और लोक परंपरा का जीवंत उदाहरण हैं। यह न केवल हमें हमारे अतीत से जोड़ते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी हमारी संस्कृति और परंपरा से जोड़े रखती है। यह परंपरा घर में लक्ष्मी के स्वागत का प्रतीक होने के साथ-साथ दरिद्रता को बाहर करने और समृद्धि की कामना करने का माध्यम भी है।
हिन्दुस्थान समाचार / राहुल कुमार ठाकुर