बिना प्रक्रिया अपनाए पंचायत सदस्यों को हटाने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने जताई आपत्ति
हाईकोर्ट जयपुर


जयपुर, 4 अगस्त (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने पंचायत सदस्यों को हटाने से जुड़े कई मामलों पर संज्ञान लेते हुए कहा है कि वर्ष 1996 के राजस्थान पंचायती राज नियमों के नियम 22 में निर्धारित अनिवार्य प्रक्रिया का पालन किए बिना इन्हें हटाने के आदेश पारित किए जा रहे हैं। जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने पाया कि जांच अधिकारी इन नियमों से भलीभांति अवगत नहीं हैं, जिससे आदेशों में गंभीर त्रुटियां हो रही हैं। कोर्ट ने पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव, संभागीय आयुक्तों और जिला कलेक्टरों को निर्देश दिया कि वे सभी पंचायत समितियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को नियम 22 के महत्व के बारे में सूचित करें, ताकि भविष्य में चुने हुए जनप्रतिनिधियों को हटाते समय ऐसी गलतियों से बचा जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुना हुआ प्रतिनिधि जनता की आवाज़ होता है और उसे उसके पद से हटाने में अत्यधिक सावधानी व निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता को हटाने के आदेश को रद्द करते हुए नियम 22 की पालना करते हुए मामले में पुनः विचार करने को कहा है। अदालत ने कहा की कई मामलों में पंचायत सदस्यों को हटाने के आदेश नियम 22 की आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किए बिना पारित किए गए। ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अधिकारी इन नियमों से भलीभांति परिचित नहीं हैं। सभी संभागीय आयुक्तों, जिला कलेक्टरों और पंचायती राज विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देशित किया जाता है कि वे सभी पंचायत समितियों के सीईओ को इस नियम का सख्ती से पालन कराने के निर्देश दें, ताकि भविष्य में इस प्रकार की त्रुटियों से बचा जा सके। अदालत ने यह आदेश ग्राम पंचायत पंवार, पंचायत समिति देवली के प्रशासक पूरणमल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

याचिका में कहा गया कि उसे वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों पर नियम 22 के तहत प्रक्रिया अपनाए बिना पद से हटा दिया गया। उसे चार्जशीट दिए जाने के बाद कोई विधिवत जांच नहीं की गई न गवाहों के बयान दर्ज किए गए न ही अन्य साक्ष्यों पर विचार किया गया। केवल याचिकाकर्ता के उत्तर के आधार पर उसे पद से हटा दिया गया। जबकि नियम 22 के अनुसार राज्य सरकार कार्रवाई से पहले मुख्य कार्यकारी अधिकारी या किसी अन्य अधिकारी से प्रारंभिक जांच करवा सकती है और एक महीने के भीतर रिपोर्ट मंगवाती है। यदि राज्य सरकार को यह प्रतीत होता है कि धारा 38(1) के तहत कार्रवाई आवश्यक है तो स्पष्ट आरोप तय किए जाते हैं और संबंधित सदस्य से जवाब मांगा जाता है। इसमें साक्ष्यों की जांच, गवाहों से पूछताछ, विस्तृत जांच रिपोर्ट और प्रत्येक आरोप पर स्पष्ट निष्कर्ष देने की प्रक्रिया शामिल है।

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हिन्दुस्थान समाचार / पारीक