भारतीय ज्ञान परम्परा को जानने का एकमात्र साधन संस्कृत - प्रो. सन्तोष शुक्ल
भारतीय ज्ञान परम्परा को जानने का एकमात्र साधन संस्कृत - प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल*


भारतीय ज्ञान परम्परा को जानने का एकमात्र साधन संस्कृत - प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल*


भारतीय ज्ञान परम्परा को जानने का एकमात्र साधन संस्कृत - प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल*


भारतीय ज्ञान परम्परा को जानने का एकमात्र साधन संस्कृत - प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल*


भारतीय ज्ञान परम्परा को जानने का एकमात्र साधन संस्कृत - प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल*


भारतीय ज्ञान परम्परा को जानने का एकमात्र साधन संस्कृत - प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल*


गोरखपुर, 1 अगस्त (हि.स.)। संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग में आज संस्कृत सप्ताह के उद्घाटन अवसर पर अध्यक्षता कर रहे संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग के अध्यक्ष प्रो. राजवन्त राव ने अनेक संस्कृत ग्रन्थों के छोटे-छोटे पात्रों के संवादों एवं आख्यानों का प्रमाण देते हुए सामाजिक चेतना को उद्घाटित किया । शास्त्रों की सामाजिकता को आधुनिकता से जोड़ते हुए शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया। जीवन के समस्त पक्षों को सरलतम शब्दों में भावगम्य बनाते हुए कहा कि संस्कृत ग्रन्थों में रस छंद अलंकार सम्पूर्ण मानव जाति को जीवन मूल्यों का संदेश देते हैं ।

मुख्य वक्ता के रूप में जवाहरलाल नेहरू केंद्रीय विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. संतोष कुमार शुक्ल ने संस्कृत साहित्य के विविध आयामों पर बात करते हुए उसके संरक्षण एवं संवर्धन की चिंता व्यक्त की । आपने कहा संस्कृत एक भाषा या साहित्य मात्र नहीं अपितु एक ऐसा साधन है कि विश्व के समस्त ज्ञान को इसके माध्यम से जाना जा सकता है । संस्कृत का व्याकरण विश्व के समस्त व्याकरणों में सर्वश्रेष्ठ है। भाषा विज्ञान में भाषाओं के उत्पत्ति क्रम में संस्कृत सर्वश्रेष्ठ स्थान पर विराजमान है । संपूर्ण भारतीय ज्ञान परंपरा में जहां-जहां हमारी गति है वहां मूल में संस्कृत ही है । संख्या प्रविधि संस्कृत का आयाम है । प्रथम भारतीय इतिहास पुराणों के रूप में संस्कृत के पास ही है परंतु जिस प्रकार संस्कृत का विकास होना चाहिए था उस प्रकार नहीं हो सका ऐसी चिंता भी व्यक्त की । विविध आयाम से ग्रन्थों के संस्कृत भाषा में निर्माण की आवश्यकता है । लोगों ने संस्कृत के ग्रन्थों से ही लेकर उसे अपना आविष्कार बताया ।

अन्त में सभी से आह्वान किया कि एक व्यक्ति को एक संस्कृत ग्रंथ अवश्य पढ़ना चाहिए। परम्परा का संरक्षण एवं सम्वर्द्धन , अन्तःशाष्त्रीय अध्ययन, पाश्चात्य शास्त्रों का संस्कृत भाषा में अनुवाद , शास्त्रों को प्रचार प्रसार ।

इन्ही बातों को व्याख्यापरक ढंग सें प्रस्तुत करते हुए संस्कृत दिवस की शुभकामनाएं देकर अपनी बात को समाप्त किया ।

कार्यक्रम का संचालन विभाग की शोध छात्रा भूमिका द्विवेदी नें, स्वागत विभागीय समन्वयक डॉ देवेन्द्र पाल ने एवं धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम की संयोजक डॉ रंजन लता ने किया । इस अवसर पर विभाग के समस्त शिक्षक एवं स्नातक,परास्नातक तथा पीएच डी के छात्र उपस्थित रहे ।

यह आयोजन एक सप्ताह तक चलेगा जिसमें अनेक प्रतियोगिताएं तथा महत्वपूर्ण व्याख्यानों का आयोजन होगा ।

हिन्दुस्थान समाचार / प्रिंस पाण्डेय