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जबलपुर, 01 अगस्त (हि.स.)। मध्य प्रदेश के गैर-सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों और कर्मचारियों को आज भी सातवें वेतन आयोग का लाभ नहीं मिल पाया है। जबकि इस मामले को लेकर माध्यमिक शिक्षक संघ ने 2018 में ही हाईकोर्ट में शरण ली थी। जस्टिस नंदिता दुबे ने शिक्षकों के पक्ष में आदेश दिया था कि शिक्षक पहले सरकार के समक्ष सातवें वेतन आयोग के लाभ के लिए अभ्यावेदन दे और सरकार उस पर 60 दिनों में फैसला ले। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि यदि शिक्षक इस लाभ के हकदार हैं, तो उन्हें दो महीने के भीतर इसका भुगतान किया जाए।
सरकार ने यह तो माना कि यह शिक्षक सातवें वेतनमान के लिए योग्य हैं। लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी केवल आवेदन पर विचार की बात कहकर भुगतान भूल गये। शिक्षक संघ ने दोबारा हाईकोर्ट की शरण ली। इस बार सरकार ने बताया कि सातवें वेतनमान के 287 करोड़ रुपए के एरियर को 2016 से 2024 तक 5-6 किश्तों में देने पर विचार किया जा रहा है। इसके बाद कोर्ट को बताया गया कि विभाग ने प्रशासनिक और मंत्री स्तर से मंजूरी मिल चुकी है बस कैबिनेट की अंतिम स्वीकृति बाकी है। कोर्ट ने इसे साफ तौर पर टालमटोल और आदेश की अवहेलना मानते हुए डीपीआई कमिश्नर को तलब किया।
इस बार सरकार ने जस्टिस दुबे के साल 2019 के फैसले को ही चुनौती दे दी। 30 जुलाई को चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की बेंच में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं के वकील के सी गिड़याल ने कोर्ट को बताया कि प्रशासनिक प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और मंत्री से अप्रूवल मिल गया है। लेकिन अब अवमानना के चलते यह बताया जा रहा है कि इस मामले में कैबिनेट की स्वीकृति जरुरी है। दूसरी ओर अपील लगाकर मामले को लटकाने की कोशिश की जा रही है। याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ अधिवक्ता के.सी. गिडयाल ने कोर्ट से आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य के मुख्य सचिव को अदालत में पेश होने का आदेश दिया जाए। उनका कहना था कि इस मामले में अंतिम फैसला सरकार को ही लेना है। हालांकि कोर्ट ने कहा कि पहले लोक शिक्षण आयुक्त का जवाब सुना जाएगा, उसके बाद मुख्य सचिव की पेशी पर फैसला होगा। मामले की अगली सुनवाई 12 अगस्त 2025 को होगी।
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हिन्दुस्थान समाचार / विलोक पाठक