नेपाल का संविधान जारी होने के बाद विवाहित महिला को भी पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट
काठमांडू, 16 जुलाई (हि.स.)। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवाहित महिला को भी अपने पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार देने की बात कही है। हालांकि यह कानून नेपाल के नए संविधान के जारी होने के दिन से लागू करने का फैसला सुनाया
नेपाल के सुप्रीम कोर्ट


काठमांडू, 16 जुलाई (हि.स.)। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवाहित महिला को भी अपने पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार देने की बात कही है। हालांकि यह कानून नेपाल के नए संविधान के जारी होने के दिन से लागू करने का फैसला सुनाया गया है।

पिता की संपत्ति पर अधिकार मांगने के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नेपाल का संविधान जारी होने के दिन से ही वह कानून लागू किया जाए जिसमें पिता की संपत्ति पर विवाहित बेटियों को भी बराबर का अधिकार देने की बात उल्लेख है।

इस समय नेपाल में बेटियों को अपने पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार देने का कानून है। सरकार ने इसमें संशोधन करते हुए सिर्फ अविवाहित बेटियों को ही नहीं बल्कि विवाहित बेटियों को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार देने का प्रावधान रखा।

सरकार द्वारा इस संशोधन को किए जाने के बाद अदालत में संपत्ति को लेकर लंबित तमाम मुद्दों में जिला अदालत और उच्च अदालत ने बेटियों को संपत्ति में अधिकार देने का फैसला भी सुनाया। लेकिन इस कानून को कब से लागू माना जाए इसको लेकर विवाद होने के बाद अदालत ने पांच जजों की बेंच गठित कर इस पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाया है।

पांच जजों में से तीन जजों ने बहुमत से यह फैसला सुनाया है कि सरकार का यह कानून संविधान जारी होने के दिन से लागू किया जाए। जबकि दो जजों का मत यह था कि पिता की संपत्ति पर सभी बेटियों का बराबर का अधिकार होना चाहिए इसमें संविधान में दिन तारीख या साल नहीं लिखा है तो इसमें विवाहित या अविवाहित नहीं देखना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश सपना प्रधान मल्ल, मनोज कुमार शर्मा, सारंगा सुवेदी, अब्दुल अजीज तथा महेश शर्मा पौडेल के फूल बेंच ने इस पर अपना फैसला सुनाते हुए बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी देने के संसद के कानून को सही बताया है।

हालांकि इनमें से न्यायाधीश सपना प्रधान मल्ल तथा महेश शर्मा पौडेल ने इस फैसले में सभी विवाहित महिलाओं को भी यह अधिकार दिए जाने की बात कही है। लेकिन अन्य तीन जजों ने जब से यह संविधान जारी हुआ है उस समय से विवाहित महिलाओं को यह अधिकार मिलने की बात बहुमत से फैसला किया है।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / पंकज दास