Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
देश में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के चार स्लैब 5 प्रतिशत, '12 प्रतिशत', 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत में से 'दूसरे' की इस समय जमकर चर्चा हो रही है। इससे मध्य व निम्न वर्ग में आशा का संचार होने लगा है। दरअसल समाज का मध्यम और निम्न वर्ग सबसे अधिक प्रभावित इसी स्लैब से है।इसका कारण भी है कि दैनिक उपभोग की अधिकांश वस्तुएं इसी स्लैब में आती है। खाने-पीने की वस्तुओं के साथ ही जूते-चप्पल, कपड़े आदि भी इसी स्लैब में आते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार 12 प्रतिशत के स्लैब पर निर्णय से सरकार पर 40 से 50 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का असर पड़ेगा।
माना जा रहा है कि केंद्र सरकार के इस स्लैब पर नए इरादे से बाजार में इन वस्तुओं की मांग बढ़ेगी और मांग बढ़ने से काफी मात्रा में राजस्व पूर्ति हो सकेगी। वैसे भी फ्री बीज के नाम पर बहुत कुछ जा रहा है तो फिर यदि बड़ी आबादी को राहत और लोकहित में कोई निर्णय किया जाता है तो वह अधिक लाभकारी होता है। जानकारों के अनुसार जीएसटी काउंसिल की आगामी बैठक में 12 प्रतिशत वाले स्लैब को या तो विलोपित करने पर विचार किया जा सकता है या फिर इसमें से आम उपभोग की वस्तुओं को पांच प्रतिशत की स्लैब के दायरे में लाया जा सकता है। यदि इस स्लैब को विलोपित नहीं भी किया जाता तो सीधे आम उपभोग की वस्तुओं और सेवाओं को अन्य स्लैब में समायोजित किया जा सकता है। बढ़ती मंहगाई के कारण आम नागरिकों खासतौर से मध्य और निम्न मध्य वर्ग को राहत दिलाने के लिए इस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।
समूचे देश में कर की एकरूपता के लिए पहली जुलाई 2017 को जीएसटी को लागू किया गया था। अब तक जीएसटी काउंसिल की बैठकों में अनवरत सुधार व बदलाव किया जा रहा है। अगली बैठक होने से पहले ही 12 प्रतिशत के स्लैप में बदलाव की चर्चा को सकारात्मक माना जाना चाहिए।जीएसटी यानी एक राष्ट्र एक कर की अवधारणा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय सामने आई थी। यह लागू हुई प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में। हालांकि आम नागरिकों की मांग के बावजूद पेट्रोल-डीजल को अभी तक जीएसटी के दायरे में नहीं लाया जा सका है। पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ने पक्ष-विपक्ष हल्ला तो बोलते हैं पर कभी इन पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने के सार्थक प्रयास नहीं करते।
समान कर प्रणाली की अवधारणा सबसे पहले फ्रांस में आई। 1954 में फ्रांस में जीन वेप्टिस्ट कालवर्ट जीएसटी की अवधारणा सामने लाए और इस समान कर प्रणाली की सकारात्मकता का ही परिणाम है कि दुनिया क 160 देशों में जीएसटी जैसी समान कर प्रणाली प्रचलन में है। भारत में 12 प्रतिशत का स्लैब इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि दैनिक उपभोग की अधिकांश वस्तुएं इसी कर दायरे में आती हैं। एक हजार रुपये से अधिक के कपड़े, जूते से लेकर घी, तेल, मक्खन, डेयरी उत्पाद,सब्जियां, फल, मेवे सहित खाद्य पदार्थ, पेय पदार्थ, 20 लीटर पैक में पीने के पानी की बोतल, कॉटन हैंड, बैग जूट का सामान, पत्थर और लकड़ी आदि की मूर्तियां, चश्मा, बच्चों की पेंसिल, स्लेट, खेल का सामान, यहां तक कि क्लीन एनर्जी डिवाइस सहित बहुत सारी वस्तुएं इस दायरे में आती है।
सीधी सी बात यह है कि यह वस्तुएं ऐशो-आराम की वस्तुएं तो हैं नहीं और कम से कम मध्यवर्गीय परिवार तो इन्हें खरीदता ही है तो निम्न वर्ग परिवार भी दूसरी कटौती या अपना पेट काटकर इन्हें खरीदता है। ऐसे में 12 प्रतिशत के स्लैब में बदलाव की चर्चा निश्चित रूप से सकारात्मक संदेश है। आगामी जीएसटी काउंसिल की बैठक में 12 प्रतिशत के स्लैब में अगर बदलाव करते हुए बड़े वर्ग को राहत दी जाती है तो यह देश की अर्थव्यवस्था को राहत देने वाला, एमएसएमई सेक्टर को बढ़ावा देने वाला और आम जन के हित का निर्णय होगा।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद