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धमतरी, 11 जून (हि.स.)। पति के दीर्घायु व परिवार के सुख समृद्धि की कामना को लेकर 11 जून को मराठा समाज की महिलाओं ने वट पूर्णिमा पर वट सावित्री का पर्व मनाया। महिलाओं ने विधि-विधान से बरगद वृक्ष की पूजा की।
बरगद पेड़ की 21 बार परिक्रमा करते हुए कच्चा धागा बांधा। पूजन के बाद एक-दूसरे को सिंदूर लगाया गया। शृंगार देकर बड़ों से आशीर्वाद लिया। समूह में बैठकर सत्यवान और सावित्री की कथा सुनी। घर लौटकर पूजन के बाद उपवास तोड़ा। महिलाओं ने बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया।
शहर के कई स्थानों पर महिलाएं समूह में पूजा करती हुई दिखाई दी। वट पूर्णिमा पर मराठा समाज की महिलाओं ने इतवारी बाजार स्थित बरगद पेड़ के नीचे पूजन किया। सुहागिनों ने सोलह शृंगार किया। महाराष्ट्र पंचांग के अनुसार वट पूर्णिमा पर ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वट सावित्री व्रत पूजन करने की परंपरा है। मराठा समाज की महिलाएं महाराष्ट्र पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत पूर्णिमा पर मनाती आ रही है। बरगद पेड़ के पूजन-अर्चना के बाद सुहागिनों के आंचल में आम, गेंहू और शृंगार डाला गया। एक-दूसरे का तिलककर बड़ों का आशीर्वाद लिया गया।
बरगद का पेड़ देववृक्ष माना जाता है:
मराठा समाज की वंदना पवार, मदालसा भोंसले सुनीति पवार, रचना चौहान सहित अन्य महिलाओं ने बताया कि हिंदू शास्त्रों के अनुसार वट वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास माना गया है। वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ देव का वृक्ष माना गया है। देवी सावित्री भी इसी वृक्ष में निवास करती हैं। मान्यता के अनुसार वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था। तब से ये व्रत वट सावित्री के नाम से जाना जाता है। इस दिन विवाहित अखंड सौभाग्य के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
पंडित राजकुमार तिवारी ने बताया कि यह परंपरा पर्यावरण संरक्षण के लिए भी प्रेरित करती है। विशाल बरगद वृक्ष पर सभी तरह के पक्षी, जीव जंतु अपना आशियाना बनाते हैं। बरगद का पूजन करना यानी सभी का सम्मान करते हुए अपने परिवार को सुखी करना है। पर्यावरण में मौजूद सभी घटकों को बगैर परेशान किए ही मानव समाज सुखी रह सकता है।
हिन्दुस्थान समाचार / रोशन सिन्हा