नाटक ’बाजी’ में झलका मनुष्य का आत्मबोध, नाट्य समारोह का हुआ समापन
नाटक का मंचन


प्रयागराज, 11 जून (हि.स.)। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के नाट्य समारोह का समापन बुधवार को बैकस्टेज संस्था के असरदार नाट्य प्रयोग बाजी से हुई। नाट्य प्रस्तुति का मुख्य विचार जीवन के मूल्य और धन के प्रति इंसान की लालसा को समझने के साथ आत्मिक विकास के बीच अंतर दिखाना रहा।उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, संस्कृति मंत्रालय,भारत सरकार द्वारा आयोजित छह दिवसीय नाट्य समारोह का समापन बुधवार को प्रवीण शेखर के निर्देशन में मंचित नाटक ‘बाजी’ के साथ हुआ। यह प्रस्तुति महान रूसी नाटककार एंटन चेखव की कालजयी कृति ‘द बेट’ पर आधारित थी, जिसने दर्शकों को गहराई तक उद्वेलित किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि नैनी जेल अधीक्षक एस.पी. सिंह उपस्थित रहे। सहायक निदेशक सुरेंद्र कश्यप व कार्यक्रम प्रभारी एम.एम. मणि ने उन्हें स्मृति चिन्ह व पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया। ‘बाजी’ एक ऐसी शर्त की कथा है जो मानवीय जीवन की मूलभूत सच्चाइयों को उद्घाटित करती है। एक सामाजिक पार्टी में यह बहस उठती है कि मृत्यु दंड बेहतर है या आजीवन कारावास। इसी बहस के दौरान एक अमीर व्यक्ति और एक युवा वकील के बीच शर्त लगती है कि यदि वकील 10 वर्षों तक बिना किसी मानवीय संपर्क के कैद में रहे तो उसे 20 लाख रुपये मिलेंगे। कैद की अवधि में वकील किताबें पढ़ता है, संगीत सुनता है और आत्मचिंतन करता है। वहीं दूसरी ओर अमीर व्यक्ति को व्यापार में घाटा होता है और वह शर्त हारने के डर से मानसिक द्वंद्व से गुजरता है। यहां तक कि वकील को मारने का विचार भी उसके मन में आता है। लेकिन जब शर्त पूरी होने में केवल एक दिन शेष रह जाता है, वकील एक पत्र छोड़ कर चला जाता है-यह कहते हुए कि अब धन का उसके लिए कोई मूल्य नहीं।लेखक ने नाटक के माध्यम से यह गूढ़ संदेश दिया कि जीवन की आत्मिक गहराइयां, पुस्तकों का ज्ञान, आत्मनिरीक्षण और मन की शांति - धन और भौतिकता से कहीं ऊपर हैं। ‘बाजी’ में न केवल जीवन और मृत्यु जैसे गंभीर विषयों पर विचार हुआ, बल्कि आत्मा की गरिमा, आस्था और अस्तित्व की व्याख्या भी हुई। नाटक में सतीश तिवारी और चाहत जायसवाल ने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। उनके साथ अमर सिंह, दिलीप श्रीवास्तव और सिद्धांत चंद्रा ने भी प्रभावी भूमिकाएं निभाईं। लाइट डिजाइनिंग टोनी सिंह द्वारा किया गया, जबकि नाट्य रूपांतरण अविनाश चंद्र मिश्र ने किया। मंच संचालन की जिम्मेदारी मधुकांक मिश्रा ने निभाई।

हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र