एयर मार्शल ने ऑपरेशन 'सिंदूर' को उभरती चुनौतियों के अनुकूल भारत की तत्परता का प्रदर्शन बताया
वायु सेना के उप प्रमुख एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित सेमिनार को संबोधित करते हुए


- वायु सेना उप प्रमुख ने वैश्विक संघर्षों से पाकिस्तान के खिलाफ शुरू किये गए ऑपरेशन 'सिंदूर' से तुलना की

नई दिल्ली, 11 जून (हि.स.)। वायु सेना के उप प्रमुख एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित ने हाल के वैश्विक संघर्षों से पाकिस्तान के खिलाफ शुरू किये गए ऑपरेशन 'सिंदूर' से तुलना करते हुए बुधवार को वर्तमान युद्ध परिदृश्यों में निगरानी और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक प्रणालियों की रणनीतिक भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आधुनिक युद्ध का फायदा उसी को मिलता है, जिसमें पहले देखने, सबसे दूर देखने और सबसे सटीक रूप से देखने की क्षमता होती है। एयर मार्शल ने ऑपरेशन 'सिंदूर' को इन उभरती चुनौतियों के अनुकूल ढलने के लिए भारत की तत्परता का प्रदर्शन बताया।

एयर मार्शल दीक्षित ने आज नई दिल्ली में निगरानी और इलेक्ट्रो ऑप्टिक्स इंडिया सेमिनार में ऑपरेशन 'सिंदूर' की समानता आर्मेनिया-अजरबैजान युद्ध, रूस-यूक्रेन संघर्ष और इजरायल-हमास संघर्ष से की। उन्होंने कहा कि जब हम आर्मेनिया-अजरबैजान से लेकर रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास तक के वैश्विक संघर्षों और ऑपरेशन सिंदूर में अपने स्वयं के अनुभवों को देखते हैं, तो एक सच्चाई बिल्कुल साफ तौर पर सामने आती है कि जो पक्ष पहले देखता है, सबसे दूर देखता है और सबसे सटीक रूप से देखता है, वही जीतता है। एयर मार्शल ने ऑपरेशन सिंदूर को इन उभरती वास्तविकताओं के अनुकूल ढलने के लिए भारत की तत्परता का प्रदर्शन बताया।

उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने समकालीन युद्ध में गहन निगरानी के महत्व को साबित किया है। ऑपरेशन सिंदूर से मिले सबक ने उस बात को पुख्ता किया है कि आधुनिक युद्ध ने प्रौद्योगिकी की बदौलत दूरी और भेद्यता के बीच के रिश्ते को मौलिक रूप से बदल दिया है। युद्ध के मौजूदा सिद्धांतों को चुनौती दी जा रही है और नए सिद्धांत उभर रहे हैं। आज स्कैल्प, ब्रह्मोस और हैमर जैसी सटीक और निर्देशित मिसाइलों ने भौगोलिक बाधाओं को लगभग निरर्थक बना दिया है, क्योंकि बियॉन्ड विजुअल रेंज की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल (बीवीआर एएएम) और सुपरसोनिक हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों के हमले आम हो गए हैं।

एयर मार्शल दीक्षित ने कहा कि जब हथियार सैकड़ों किलोमीटर दूर लक्ष्य पर सटीक निशाना साध सकते हैं, तो सामने, पीछे और पार्श्व युद्ध क्षेत्र और गहराई वाले क्षेत्रों की पारंपरिक अवधारणा अप्रासंगिक हो जाती हैं। हमें संभावित खतरों का पता लगाना, पहचानना और ट्रैक करना चाहिए, न कि जब वे हमारी सीमाओं के पास आते हैं। यह अवधारणा पहले भी मौजूद थी, लेकिन आज हमारे पास इसे साकार करने के साधन हैं। उन्होंने कहा कि जब हाइपरसोनिक मिसाइलें मिनटों में सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर सकती हैं और ड्रोन प्रतिक्रिया देने से पहले अपने लक्ष्यों तक पहुंच सकते हैं, तो वास्तविक समय की निगरानी न केवल फायदेमंद हो जाती है, बल्कि अस्तित्व के लिए आवश्यक भी हो जाती है।

उन्होंने कहा कि भविष्य की ओर देखने से स्पष्ट हो जाता है कि अकेले सरकारी प्रयास हमारे सामने आने वाले तकनीकी परिवर्तन की गति को पूरा नहीं कर सकते हैं। हमारा निजी क्षेत्र हमारे निगरानी विकास में एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में उभरता है। उन्होंने कहा कि सियाचिन ग्लेशियर से लेकर गर्म शुष्क रेगिस्तानों से लेकर हिंद महासागर तक हमारी निगरानी प्रणालियों को सभी वातावरणों में प्रभावशीलता बनाए रखनी चाहिए। -------------

हिन्दुस्थान समाचार / सुनीत निगम