वेदारम्भ से पहले नरोत्तमानंद गिरि वेद विद्यालय में छात्रों का हुआ उपनयन संस्कार
--भिक्षा लेकर बटुकों ने अहंकार का त्याग, विनम्रता और समाज से सहयोग सीखने का संदेशप्रयागराज, 09 मई (हि.स.)। झूंसी स्थित परमानंद आश्रम परिसर स्थित श्री स्वामी नरोत्तमानंद गिरि वेद विद्यालय के श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में आज प्रातः वेदाध्ययन शुरू करने
उपनयन संस्कार


--भिक्षा लेकर बटुकों ने अहंकार का त्याग, विनम्रता और समाज से सहयोग सीखने का संदेशप्रयागराज, 09 मई (हि.स.)। झूंसी स्थित परमानंद आश्रम परिसर स्थित श्री स्वामी नरोत्तमानंद गिरि वेद विद्यालय के श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में आज प्रातः वेदाध्ययन शुरू करने से पहले नव-प्रवेशित छात्रों का सामूहिक उपनयन संस्कार विधि संस्था के प्राचार्य ब्रजमोहन पांडेय की देख-रेख में सम्पन्न हुआ।उपनयन संस्कार छात्रों के अभिभावकों की मौजूदगी में वेद विद्यालय के विद्वान वैदिक आचार्यगणों द्वारा कराया गया। इस दौरान छात्रों के अभिभावक, निकट सम्बन्धी भी बड़ी संख्या में मौजूद रहे। यज्ञोपवीत धारण करने के पश्चात ही छात्र वेदाध्ययन कर सकता है। ‘उपनयन’ संस्कार के दौरान सभी नवीन बटुकों ने भिक्षा ग्रहण की। भिक्षा लेकर बटुकों ने अहंकार का त्याग, विनम्रता और समाज से सहयोग सीखने का संदेश प्राप्त किया। भिक्षा मांगने से व्यक्ति में अहंकार कम होता है और विनम्रता आती है। जब बालक अपनी माता से भिक्षा मांगता है, तो माता उसे अन्न देकर प्रेम का अर्थ भी समझाती है।

उपनयन संस्कार के बाद बालक माता-पिता की सम्पत्ति पर निर्भर नहीं रहता, बल्कि अपने ज्ञान और गुरु के मार्गदर्शन में जीवन यापन करता है। परमानन्द आश्रम के प्रबंधक मोहन ब्रह्मचारी से आशीर्वाद प्राप्त किया। उपनयन संस्कार विधि करीब 5 घंटे तक चली, जिसके बाद विधिपूर्वक भंडारे-प्रसाद का वितरण किया गया।

विद्यालय के प्राचार्य ब्रजमोहन पांडेय ने कहा कि त्रैवर्णिक के मुख्य संस्कारों में सर्वप्रथम संस्कार ‘उपनयन’ है। ‘उपनयन’ संस्कार होने पर ही त्रैवर्णिक बालक द्विज कहलाता है। शास्त्रों के अनुसार इस संस्कार से ही बालक का विशुद्ध ज्ञानमय जन्म होता है। इस ज्ञानमय जन्म के पिता आचार्य तथा माता गायत्री हैं। यज्ञोपवीत का अर्थ है ब्रह्म (ईश्वर) ज्ञान के पास ले जाना। यज्ञोपवीत संस्कार से पूर्व बटुकों का मुंडन करवाया गया। बाद में भगवान गणेश सहित देवताओं का पूजन, यज्ञवेदी एवम बटुकों को अधोवस्त्र के साथ माला पहनाकर बैठाया गया। इसके बाद विनियोग मंत्र ब्रह्मचर्य के पालन की शिक्षा के साथ विभिन्न धार्मिक आयोजन हुए। गायत्री मंत्र की दीक्षा देने के बाद बटुकों ने भिक्षा लेकर गुरु को अर्पित किया। इसके बाद गुरु ने उनके कानों में गुरु मंत्र देकर उन्हें दीक्षा दी।

शास्त्रों में संस्कारों की संख्या तो बहुत है फिर भी विद्वान प्रमुख रूप से 16 संस्कारों को मानते हैं। इनमें से एक संस्कार ‘उपनयन’ संस्कार है। इसमें विधि पूर्वक विद्यारंभ कराया जाता है। तीन सूत्रों वाले यज्ञोपवीत को गुरु मंत्र धारण करने के पश्चात शिष्य धारित करता है। तीनों धागे एक ग्रन्थि से बंधे होते हैं, जिसे ब्रह्मग्रन्थि कहते हैं। यह ग्रन्थि सृष्टि के देवता ब्रह्मा जी का प्रतीक है। यज्ञोपवीत संस्कार बालक को ब्रह्मचर्य व्रत के पालन की शिक्षा देता है। तीनों सूत्र ब्रह्मा विष्णु महेश का प्रतीक है।

कार्यक्रम का संयोजन आचार्य शिवानंद द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर चारों वेद के वरिष्ठ आचार्य खिमलाल न्योपाने (अथर्ववेद), अवनीश कुमार पांडेय (ऋग्वेद), जीवन उपाध्याय (यजुर्वेद), गौरव चंद्र जोशी (यजुर्वेद), ब्रजमोहन पाण्डेय (सामवेद), कृष्ण कुमार मिश्र, अवनि कुमार सिंह, अंजनी कुमार सिंह, अजय मिश्र समेत अनेक छात्रों के अभिभावक, आश्रमवासी एवं स्थानीय गणमान्य लोग मौजूद रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र