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नई दिल्ली, 9 मई (हि.स.)। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की बैठक में आज पाकिस्तान को दिए जाने वाले दो कर्ज़ कार्यक्रमों की समीक्षा की गई। इसमें एक अरब डॉलर का एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (ईएफएफ) और 1.3 अरब डॉलर का नया रेज़िलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी (आरएसएफ) शामिल था। भारत ने पाकिस्तान के खराब ट्रैक रिकॉर्ड और कर्ज़ के दुरुपयोग की आशंका को लेकर इन कर्ज़ कार्यक्रमों के प्रभावी होने पर गंभीर सवाल उठाए।
भारत ने इस मुद्दे पर मतदान से दूरी बनाई। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की चिंताओं को रिकॉर्ड में दर्ज किया।
भारत ने चेताया कि कर्ज़ की धनराशि का दुरुपयोग कर उसे सीमा पार आतंकवाद में लगाया जा सकता है। इस तरह की फंडिंग से वैश्विक मूल्यों की अनदेखी होती है और आतंक को परोक्ष समर्थन मिलता है।
भारत ने कहा कि पाकिस्तान बीते 35 वर्षों में 28 साल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज़ लेता रहा है। केवल पिछले पांच वर्षों में ही चार कार्यक्रम हुए हैं। यदि पहले के कार्यक्रम सफल होते, तो पाकिस्तान को बार-बार मदद की ज़रूरत नहीं पड़ती। भारत ने यह भी कहा कि पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था आर्थिक नीतियों में गहरी दखल देती है, जिससे सुधार की प्रक्रिया प्रभावित होती है। पाकिस्तान की सेना न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक फैसलों में भी बड़ी भूमिका निभा रही है।
भारत ने कहा कि वास्तव में, 2021 की संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में सेना से जुड़े व्यवसायों को “पाकिस्तान में सबसे बड़ा समूह” बताया गया है। स्थिति बेहतर नहीं हुई है; बल्कि पाकिस्तान की सेना अब पाकिस्तान की विशेष निवेश सुविधा परिषद में अग्रणी भूमिका निभाती है।
भारत ने उस रिपोर्ट का भी ज़िक्र किया जो पाकिस्तान द्वारा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष संसाधनों के लंबे समय तक उपयोग का मूल्यांकन करती है। रिपोर्ट में कहा गया कि पाकिस्तान को कर्ज़ देने में राजनीतिक विचार हावी रहते हैं। इससे न केवल कोष की साख पर असर पड़ता है, बल्कि वैश्विक संस्थाओं के सामने नैतिक प्रश्न भी खड़े होते हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / अनूप शर्मा