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कोलकाता, 23 मई (हि. स.)। एक 12 वर्षीय बच्चे की मरणोपरांत अंगदान की पहल ने तीन लोगों को नई ज़िंदगी दी। दक्षिण कोलकाता के अलीपुर निवासी उमंग गालाडा, जो कि एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी माध्यम स्कूल में आठवीं कक्षा का छात्र था, बचपन से ही किडनी की बीमारी से पीड़ित था। लगातार इलाज के बावजूद उसकी हालत बिगड़ती रही और आख़िरकार उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया।
उमंग का 28 मार्च से एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। चिकित्सकों ने सलाह दी थी कि जल्द से जल्द किडनी ट्रांसप्लांट ज़रूरी है। उसकी मां स्वयं डोनर बनना चाहती थीं, लेकिन ब्लड ग्रुप मेल नहीं होने के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका। काफी प्रयासों के बाद 15 मई को किडनी ट्रांसप्लांट हुआ भी, लेकिन इसके कुछ दिन बाद ही उसकी तबीयत और बिगड़ने लगी और अंततः मंगलवार को उसकी ब्रेन डेड की पुष्टि हुई।
इस दर्दनाक परिस्थिति में भी उमंग के माता-पिता ने एक बड़ा निर्णय लिया। उन्होंने अपने बेटे के अंगों को दान करने का निश्चय किया। इसके तहत रीज़नल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइज़ेशन (ईस्ट) से संपर्क किया गया। विशेषज्ञों ने बताया कि उसका लीवर और आंखें दान की जा सकती हैं। उमंग का लीवर मुंबई के एक नन्हे बच्चे को ट्रांसप्लांट किया गया, जबकि उसकी आंखों से दो लोगों को दृष्टि मिली।
उमंग की मां, जो बेटे के ग़म में टूट चुकी हैं, ने कहा कि मेरा बेटा पढ़ाई में बहुत अच्छा था। उसे एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में बहुत रुचि थी। वह अक्सर बीमारी के कारण घर पर ही रहता था, लेकिन हमने उसे हमेशा व्यस्त रखा ताकि वह मानसिक रूप से मजबूत बना रहे। मुझे विश्वास है कि जिन लोगों को उसके अंग मिले हैं, उन्हें उसकी सकारात्मक ऊर्जा भी मिलेगी।
इस घटना ने न केवल अंगदान के महत्व को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखा दिया कि एक नन्ही उम्र में भी कोई अपने बाद दूसरों को जीवनदान दे सकता है। उमंग भले ही आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी आंखों से अब दो लोग दुनिया को देख पा रहे हैं और उसका लीवर एक मासूम के जीवन की नई शुरुआत बन गया है।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर