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- “वन अधिकार अधिनियम 2006” पर संभाग स्तरीय कार्यशाला सम्पन्न
भोपाल, 14 मई (हि.स.)। वन विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने कहा है कि वन अधिकार अधिनियम की मंशा के अनुरूप वनवासियों को उनकी भूमि के वाजिब हक मिले, यह सुनिश्चित किया जाए। वनग्रामों को राजस्व ग्राम घोषित करने की प्रक्रिया में तेजी लाई जाए। उन्होंने संबंधित विभागों से समन्वय के साथ काम कर वन ग्रामों का सीमांकन वर्षा शुरू होने से पहले कराने के निर्देश दिए। वर्णवाल ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम 2006 को जमीन पर प्रभावी रूप से लागू करने के लिए समुदाय की भागीदारी अनिवार्य है, इसलिए उनके लिए वन अधिकारों के प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कराए जाएँ।
अपर मुख्य सचिव वर्णवाल बुधवार को भोपाल आयुक्त कार्यालय सभाकक्ष में संभाग स्तरीय वन अधिकार समितियों का प्रशिक्षण सह कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने व्यक्तिगत वन अधिकार, सामुदायिक वन संसाधन अधिकार एवं सामुदायिक अधिकारों की मान्यता हेतु आवश्यक प्रक्रियाओं को शीघ्र पूर्ण करने पर जोर दिया।
कार्यशाला में संभागायुक्त संजीव सिंह, संचालक जनजाति क्षेत्रीय विकास योजना वंदना वैद्य, मुख्य वन संरक्षक राजेश कुमार खरे, उपायुक्त विकास भोपाल संभाग डॉ. विनोद यादव, एटीआरईई संस्था के डॉ. शरद लेले आदि उपस्थित थे। कार्यशाला में भोपाल एवं नर्मदापुरम संभाग के कलेक्टर्स, जिला पंचायत के सीईओ, वन मंडलाधिकारी एवं संबंधित अधिकारी उपस्थित थे।
वर्णवाल ने कहा कि संबंधित सभी अधिकारी वन ग्रामों के सर्वे, सीमांकन एवं दस्तावेज़ीकरण कार्य में स्थानीय आदिवासी व ग्रामवासियों को शामिल कर उनकी सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित करें। उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य में वन अधिकारों को जमीनी स्तर पर लागू करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और इसके लिए सभी आवश्यक संसाधन एवं सहयोग समयबद्ध रूप से मुहैया कराया जाएगा।
संभाग आयुक्त संजीव सिंह ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम की भावना के अनुरूप हमें वनों में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों को, जो वन अधिकारों का उपयोग नहीं कर रहे, उन्हें जागृत करना है और उनके वन अधिकारों को मान्यता देना है । उन्होंने कहा कि वन अधिकार अधिनियम का मुख्य उद्धेश्य अनुसूचित जनजातियों और पीढ़ियों से वनों में निवास करने वाले अन्य परंपरागत वन निवासियों के वन अधिकारों एवं वन भूमि के उपभोग को सुनिश्चित करना, जैव विविधता का संरक्षण, पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखना और अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों की खाद्य सुरक्षा एवं आजीविका सुनिश्चित करना है।
संभाग आयुक्त सिंह ने बताया कि वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत वनवासियों को दो प्रकार के अधिकार पत्र प्रदान किए जाते हैं – व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र और सामुदायिक वन अधिकार पत्र। व्यक्ति अधिकार पत्र निवास, कृषि तथा निवास एवं कृषि दोनों के लिए प्रदान किया जाता है। इसी प्रकार सामुदायिक अधिकार पत्र निस्तार, गौण वन उत्पाद, मछली एवं अन्य जल उत्पाद तथा चारागाह अधिकार, वनग्रामों, सामुदायिक वन संरक्षण का प्रबंधन संरक्षण एवं प्रबंधन, जैव विविधता तथा सांस्कृतिक विविधता से संबंधित बौद्धिक संपदा तथा पारंपरिक ज्ञान, पुनर्वास आदि के लिए प्रदान किया जाता है। वन अधिकार के दावों के निराकरण के लिए राज्य, जिला, उप खण्ड एवं ग्राम वन अधिकार समितियों का गठन किया गया है। ग्राम वनाधिकार समिति से प्राप्त दावों को ग्राम सभा में प्रस्तुत किया जाता है। ग्राम सभा के अनुमोदन उपरांत आगे की कार्रवाई होती है।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर