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मुंबई, 12 मई (हि.सं.)। महाराष्ट्र के जेलों में क्षमता से अधिक बंद कैदियों पर बांबे हाई कोर्ट ने चिंता जताई है। कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि बिना सुनवाई के किसी कैदी को लंबे समय तक हिरासत में रखना एक प्रकार की सजा है। अदालतों को जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते समय संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
अपने भाई की हत्या के आरोप में गिरफ्तार विकास पाटिल को जमानत देते हुए न्यायाधीश मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने यह टिप्पणी की। वर्तमान में मामलों को निपटाने में काफी समय लग रहा है, जिसके परिणामस्वरूप जेलों में कैदियों की संख्या बढ़ रही है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कैदियों की लंबी अवधि तक हिरासत में रहने और जेलों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अदालत नियमित रूप से ऐसे मामलों की सुनवाई करती है। अदालत ने मुंबई के आर्थर रोड जेल के अधीक्षक की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट का हवाला दिया। जेल की स्वीकृत क्षमता से छह गुना अधिक कैदी बंद थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रत्येक बैरक में केवल 50 कैदियों को रखने की अनुमति थी, लेकिन उसमें 220 से 250 कैदी रखे गए। अदालत ने यह भी कहा कि यह प्रथा उन कैदियों की स्वतंत्रता से संबंधित है जो लंबे समय से जेल में बंद हैं और इससे कैदियों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार भी प्रभावित होते हैं।
कोर्ट ने दो पूर्व कैदियों के अपराध के साक्ष्य का हवाला दिया, जिसमें मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे व्यक्तियों के लिए लंबी जेल अवधि का मुद्दा उठाया गया था। लंबी अवधि का कारावास जमानत देने का विकल्प नहीं हो सकता। लंबे समय तक कारावास से शीघ्र सुनवाई के अधिकार का उद्देश्य नष्ट हो जाता है। किसी कैदी को प्रमाण पत्र देकर उसे लम्बे समय तक हिरासत में रखना एक प्रकार की सजा है। अदालत ने बिना सुनवाई के सजा सुनाने की वैधता पर भी प्रकाश डाला। आरोपी को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक उसका अपराध सिद्ध न हो जाए। अदालत ने यह भी कहा कि यह आपराधिक न्यायशास्त्र का एक मुख्य सिद्धांत है और चाहे कानून कितना भी सख्त क्यों न हो, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
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हिन्दुस्थान समाचार / वी कुमार