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प्रो. मनीषा शर्मावफ्फ कानून के विरोध में पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला हिंसा की आग में झुलस रहा है। हिंसा को लेकर भाजपा- टीएमसी के बीच में आपसी आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। इस कानून के विरोध में पश्चिम बंगाल में हिंदुओं पर किए जा रहे अत्याचार काफी निंदनीय है ।टीवी, सोशल मीडिया पर तस्वीरों और वीडियो में जो कुछ दिख रहा है वह देख रूह कांप जाती है। हिंसा प्रभावित क्षेत्रों से हजारों की संख्या में हिंदू पलायन कर चुके हैं। वहां कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। हाथों में हथियार लिए लोग गाड़ियों को फूंक रहे हैं, दुकानों को जला रहे हैं, रेलवे ट्रैक को बाधित किया गया, पुलिस वालों तक को निशाना बनाया गया।वास्तव में यहां देखने में यही आ रहा है कि हिंदू लोगों की सुरक्षा की किसी को परवाह नहीं है उनके पास दो ही विकल्प है मौत या पलायन। इस पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री अपनी एक्स पोस्ट में लिखती हैं कि याद रखें हमने वह कानून नहीं बनाया है जिस पर लोग नाराज हैं। यह कानून केंद्र ने बनाया है इसलिए आप जो जवाब चाहते हैं केंद्र सरकार से मांगना चाहिए।दूसरी ओर भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि ममता बनर्जी बंगाल को दूसरा बांग्लादेश बनाना चाहती हैं। मुर्शिदाबाद में हिंसा सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का नतीजा है। मुर्शिदाबाद में हिंदू परिवार को टारगेट कर हमला किया जा रहा है। कानून की आड़ में पश्चिम बंगाल में हिंदुओं पर हो रही हिंसा में ममता सरकार सियासी रोटियां सेंक रही है। पश्चिम बंगाल में तुष्टिकरण की नीति के तहत सत्ता और वोट बैंक की खातिर हिंदुओं पर जघन्य अपराध किया जा रहे हैं और अराजकता की सारे सीमाएं पार हो गई है पर विपक्ष से लेकरतथाकथित बौद्धिक वर्ग आंखों पर पट्टी बांधे बैठा है।इसके पूर्व बांग्लादेश में हिंदुओं पर जिस तरह के अत्याचार हुए और अब पश्चिम बंगाल मेंजो कुछ चल रहा है इन हालातों से मुंह फेर कर वैश्विक शक्तियां और हमारे देश के मानवधिकार के रक्षक बौद्धिक वर्ग का प्रतिकार ना करना बताता है कि असंवेदनशीलता और उदासीनताकी स्थिति क्या है। हमारे देश का एक किस्म का बौद्धिक वर्ग हमारे समाज में अल्पसंख्यको के उत्पीड़न को लेकर हमेशा सजग रहता है। छोटी सी बात को को भी तूल देकर मानवाधिकार का हनन बताकर उग्र रूप से वैश्विकमंच पर फैला दिया जाता है। ये लोग धर्म, जाति और भाषाके नाम पर हमेशा समाज में दरार डालने में लगे रहते है यह भूलकर कि वह भी इसी समाज का एक हिस्सा है और उसी समाज में रहते है।इस तरह के प्रगतिशील और मानवाधिकारके हिमायती बौद्धिक वर्ग को बांग्लादेश नहीं दिखता, पश्चिम बंगाल नहीं दिखता, हिंदुओं पर हो रहा अत्याचार नहीं दिखता, हिंदुओं के प्रति ये कट्टरता और नफरत नहीं दिखती। उन्हें सिर्फ भारत की हिन्दू सरकार दिखती है जो अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्य करती हैं, उनका उत्पीड़न करती है। जो लेखक, पत्रकार सत्य कहते हैं उसे ये सरकार का अंध भक्त और घृणा फैलाना वाला मानते हैं ।इन तथाकथित बौद्धिक वर्ग और मानवाधिकारों के रक्षको ने इस देश में जो एक तरफा विमर्श दिन रात हिंदुत्व के विरुद्धतथ्यहीन बातों से खड़ा किया उसने हमें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया है । कुछ वोट बैंक की राजनीति करने वाले लोगों द्वारा अल्पसंख्यकों को वफ्फ के विषय में झूठी,आधारहीन बाते कर एक टूल की तरह प्रयोग कर देश की शांति भंग करने का कार्य किया जा रहा रहा है। क्या प्रेम, सहिष्णुता ,शांति,भाईचारे, धर्मनिरपेक्षता की बात करना बहुसंख्यक आबादी के लिए ही है? क्या बहुसंख्यक हिंदू आबादी को चैन से जीने का कोई अधिकार नहीं है? आज वह अपने ही देश में, अपने ही लोगों के बीच अपने जीवन की रक्षा के लिए हाथ फैलाए खड़ी हैं इससे बड़ी दयनीयता की स्थिति और क्या हो सकती हैं।धर्म, जाति ,जिहाद के नाम पर संपूर्ण विश्व में लाखों गैर मुस्लिम बुरी तरह से अत्याचारों का शिकार होकर मारे गए लेकिन शिक्षण ,शिक्षण संस्थानोंके पाठ्यक्रम और मुख्य धारा में ये तथ्यगायब है।इसलिए इस वास्तविकता से लोग और युवा पीढ़ी परिचित नहीं है। भविष्य के लिए भी यह स्थिति अत्यंत चिंतनीय है । हमने कभी भी इतिहास के अनुभव से सबक नहीं लिए। हम इसी में खुश रहते हैं कि ये मेरे घर,मेरे मोहल्ले में और मेरे साथ नहीं हो रहा है। यह चुप्पी अत्यंत घातक है।वैश्विक परिदृश्य की बात करें तो इजरायल और हमास युद्ध पर वैश्विक शक्तियों की चुप्पी को देख स्पेनिश लेखक अल्वारो पेनास ने लिखा कि इजरायल के अंततः विनाश की आशंका वास्तविक है इसके प्रति अमेरिका व यूरोपीय बौद्धिक उदासीन है लेकिन वह यह नहीं समझ रहे कि इजरायल के बाद अगला नंबर उनका ही होगा । इसके पूर्व भी हमने सोचा नहीं था कि बांग्लादेश के हिंदुओं के विनाश का अगला चरण भारत में इस तरह से देखने को मिलेगा ।
(लेखिका, केंद्रीय विवि अमरकंटक में पत्रकारिता विभाग की विभागाध्यक्ष हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी