स्ट्रीट डॉग और बंदरों को लेकर बने ठोस नीति
योगेश कुमार सोनी स्ट्रीट डॉग्स और बंदरों की वजह से कई लोगों बेमौत मारे जा रहे हैं। गली-मोहल्लों में लावारिस कुत्तों के हमला करने से अलग-अलग जगह पर कई लोगों की जान जा चुकी है। आश्चर्य की बात यह है कि इस तरह के हादसे को लेकर किसी भी मुकदमा दर्ज नहीं ह
योगेश कुमार सोनी


योगेश कुमार सोनी

स्ट्रीट डॉग्स और बंदरों की वजह से कई लोगों बेमौत मारे जा रहे हैं। गली-मोहल्लों में लावारिस कुत्तों के हमला करने से अलग-अलग जगह पर कई लोगों की जान जा चुकी है। आश्चर्य की बात यह है कि इस तरह के हादसे को लेकर किसी भी मुकदमा दर्ज नहीं हो सकता है। चूंकि जानवर ने हमला किया है तो किसको जिम्मेदार माना जाए? महत्वपूर्ण यह है कि हर राज्य का नगर निगम इसके लिए बजट पारित करता है। इस पैसे से ही कुत्तों की नसबंदी और उन्हें अन्य प्रकार के इंजेक्शन लगाए जाते हैं, जिससे वह अगर किसी इनसान को काटे भी तो मौत न हो लेकिन इस क्षेत्र का संबंधित विभाग बिलकुल भी काम नहीं करता। पूर्व में हुई घटनाओं के यदि वीडियो देखें तो मन विचलित और दुखी हो जाता है। इस तरह के कुत्तों की वजह से देश के अलग-अलग हिस्सों में सालाना हजारों मौतें हो रही हैं और कई परिवार बर्बाद हो रहे हैं। आखिर इस तरह से किसी मौत होने पर उस परिवार को कितना दुख होता होगा यह बताना बहुत मुश्किल है। लावारिस कुत्तों को पकड़ने और नियंत्रित करने के लिए उचित व्यवस्था नहीं है, जिससे वह और भी आक्रामक होते जा रहे हैं। राज्य सरकारों को आदेश है कि रेबीज के खतरे से बचने के लिए लावारिस कुत्तों का इलाज करना चाहिए लेकिन पशु विभाग इस मामले को लेकर कहीं भी गंभीर नजर नही आता। 'द लैंसेट इन्फेक्शियस डिजीज जर्नल' में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में रेबीज के कारण हर साल लगभग 6000 लोगों की मौत होती है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की ओर से मार्च, 2022 से अगस्त, 2023 तक देशभर के 15 राज्यों के 60 जिलों में एक सर्वे किया गया था। और यह वो आंकड़े हैं जो रजिस्टर्ड हुए हैं इसके अलावा बहुत सारे ऐसे केस हैं जो सरकार की निगाह में ही नहीं आते। इसके अलावा यदि बंदरों की बात करें तो बीते दशक में बंदर हिंसक होते जा रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर के अलावा तमाम राज्यों खासतौर पर महानगरों में बंदरों ने आतंक मचा रखा है। लोगों की जान जाने का कारण तो बनते हैं लेकिन आर्थिक नुकसान भी बहुत कर रहे हैं। घरों की छत पर जो सामान रखा होता है उसको नष्ट कर देते हैं। इसके अलावा जिन घरों में घुस जाते हैं वहां खाने का सारा सामान चट कर जाते हैं और भारी नुकसान भी कर देते हैं। इसके अलावा सड़कों पर दोपहिया वाहनों पर जा रहे लोगों पर हमला कर देते हैं जिससे वह गिर जाते हैं। जब भी कोई वाहन से गिरता है तो उसको काटते भी हैं। बंदरों के काटने से बचाव के प्रयास में कुछ लोग छत से गिरकर भी मर जाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बंदरों की वजह से हर वर्ष लगभग 55,000 लोग मारे जाते हैं। यह बड़ा व चिंताजनक आंकडां है। इसके अलावा करोड़ों रुपये का नुकसान भी होता है। इस समय उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बंदरों का आतंक सबसे ज्यादा बढ़ा हुआ है और स्वास्थ्य विभाग ने जो आंकड़े जारी किए हैं, उससे तो यह एक संपूर्ण आपदा लगती है चूंकि हर घंटे में एक व्यक्ति बंदर के काटने का शिकार हो रहा है। सोचिए, हर घंटे एक नया मामला सामने आ रहा है। बीती फरवरी और मार्च में शहर के अलग-अलग सरकारी अस्पतालों में हर महीने करीब 600 बंदर काटने के नए मामले आए। अगर निजी अस्पतालों के आंकड़े भी जोड़ लिए जाएं, तो ये संख्या 750 तक पहुंच गया। हालांकि देश में ऐसे और भी उदाहरण दिए जा सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि महानगरों में विकास के चलते जंगलों का काटा जा रहा है। इससे कई प्रजाति के पक्षी और जीव लुप्त हो रहे हैं। मगर बंदरों ने गांवों, कस्बों और शहरों का रुख किया। राज्यों के पशु विभाग के अधिकारियों के अनुसार बंदरों को कहीं दूसरी जगह शिफ्ट नहीं किया जा सकता। यदि दिल्ली के परिवेश की बात करें तो जो बंदर दूसरे राज्यों से अपनी मर्जी से आते हैं और यदि विभाग उनको पकड़कर अपने वाहन में वहीं छोड़ना चाहे तो नहीं छोड़ सकता। वाहनों को सीमा पर ही रोक दिया जाता है और वापस भेज दिया जाता है। इन सब बातों के आधार पर यह तो तय हो जाता है कि शासन-प्रशासन के पास अभी तक लावारिस कुत्तों और बंदरों को लेकर कोई ठोस रणनीति नहीं है। यदि ऐसा ही चलता रहा और इनकी जनसंख्या बढ़ती रही तो निश्चित तौर पर यह मानव जीवन पर एक बड़ा खतरा बन सकता है और लावारिस जानवरों को लेकर यह एक अप्रत्याशित लड़ाई मानी जाएगी। यदि इस मामले पर जल्द ही गंभीरता नहीं दिखाई गई तो आने वाले समय में एक बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। राज्य सरकार इनके लिए कोई ऐसी जगह चिह्नित करे जहां यह आराम से रह सकते हों या फिर इनकी जनसंख्या वृद्धि को लेकर कोई ठोस कदम उठाए। इसके अलावा कई लोगों ने अलग ब्रीड के कुत्ते पाले हुए हैं। इन्होंने भी लोगों पर हमले किए हुए हैं। कुछ लोगों पर तो लाइसेंस भी नहीं और यदि अधिकतर लोगों के पास है तो उस प्रजाति के कुत्ते खतरनाक हैं। पिटबुल, रॉटविलर टेरियर, बैंडोग अमेरिकन बुलडॉग, जापानी टोसा, बैंडोग नियपोलिटन मास्टिफ वुल्फ डॉग-बोअरबो-ल प्रेसा कैनारियो फिला ब्रासील-रो-टोसा इन- केन कोरसो -गो अर्जेंटीनो जैसे कुत्तों को प्रतिबंधित करना और उनके पालन-पोषण के लाइसेंस को रद्द करना समय की मांग है। कई जगह तो ऐसी हैं जहां हमलावर कुत्तों व बंदरों की वजह से लोगों ने उन रास्ते से जाना ही बंद कर दिया। बावजूद इसके शासन-प्रशासन इस पर कोई भी एक्शन लेने को तैयार नहीं है, लेकिन अब इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद