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लव कुमार मिश्र
मार्च 18 देश के
लिए एक साधारण दिन नहीं था, जब 1974
में आज ही के दिन पटना जल उठा था। स्वतंत्रता संग्राम के बाद पहली बार जगह-जगह
पुलिस फायरिंग हुई, सरकारी और निजी संपति को बड़े पैमाने पर
आग लगाई गई।
18 मार्च 1974 को बिहार विधान मंडल का बजट
सत्र शुरू होना था। वित्त मंत्री दरोगा प्रसाद राय, जो मुख्यमंत्री भी रहे, को बजट पेश करना था। राज्यपाल रामचंद्र धोन्दुबा भंडारे को सत्र का
उद्घाटन करना था। पटना का राज भवन विधान मंडल के पश्चिम में स्थित है,बीच में मुख्य सचिवालय है।
बिहार के छात्रों ने गुजरात के मोरबी से शुरू
हुए नव निर्माण आंदोलन से प्रेरित होकर, महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी की समस्या को लेकर बिहार विधान मंडल का घेराव करने
की घोषणा कर दी थी। इसके पहले पटना विश्वविद्यालय के व्हीलर सेनेट हाल में देश के
निर्वाचित विश्वविद्यालय छात्र संघ के नेताओं का सम्मेलन हुआ,जिसमें दिल्ली से अरुण जेटली भी आए थे।
छात्र संगठनों की घोषणा को देखते हुए अब्दुल
गफूर की सरकार ने विधान मंडल के चारों तरफ, पश्चिम में
सचिवालय और हार्डिंग रोड, पूर्व में आर ब्लॉक, दक्षिण में यारपुर, उत्तर में मंगलेश रोड पर
जबरदस्त बैरीकेडिंग कर दी थी। केंद्रीय रिजर्व पुलिस और मजिस्ट्रेट सभी जगह पोस्ट
किए गए थे।
आंदोलित छात्रों के समूहों ने प्रातः काल से
ही चारों तरफ घेरा डाल दिया था। इसके चलते सुरक्षा बलों से झड़पें होने लगी थीं।
इस बीच पलामू से आए अक्षय कुमार सिंह और आरा के छात्र अवधेश कुमार सिंह ने राज्य
पथ परिवहन की नगर सेवा की बस के ड्राइवर को हटाकर उस पर कब्जा कर लिया और उस बस को
चारों तरफ घुमना शुरू कर दिया था।
इस बीच राज्यपाल का काफिला पश्चिम साइड से
सचिवालय में प्रवेश करने के लिए निकला। उसी गेट पर लालू प्रसाद यादव, जो पटना
विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे,ने रोकने का
प्रयास किया। सुरक्षा अधिकारियों ने लाठी चार्ज करवाया, तब
महामहिम विधानसभा प्रांगण पहुंच पाए। राज्यपाल ने जैसे ही अभिभाषण शुरू किया, तीनों तरफ से सुरक्षा घेरा तोड़0कर छात्रों का समूह भी विधान सभा परिसर
में पहुंच गया। विधान सभा के भीतर प्रवेश करने का प्रयास हुआ। आक्रोशित छात्रों को
देख वित्त मंत्री ने अपने आपको को टॉयलेट में बंद कर लिया और राज्यपाल को बिना
भाषण पढ़े लौटना पड़ा।
इस बीच बाहर आगजनी शुरू हो गई। सुरक्षा बलों
ने मंत्रियों और विधायकों को सुरक्षित उनके आवास पहुंचा दिया। उपद्रवी छात्रों ने
विधानसभा के सामने स्थित पेट्रोल पंप, जो बिहार के एक मुख्य सचिव के पिता का था, जला
डाला। मंगलेश रोड और हार्डिंग रोड स्थित सरकारी भवन भी शिकार हुए। स्टेशन के करीब
हार्डिंग पार्क स्थित यार्ड में रेलगाड़ी को भी आग के हवाले कर दिया गया। यह
पैसेंजर गाड़ी दीघा घाट जाती थी।
छात्रों ने गार्डिनर रोड पर सर्किट हाउस में
भी आग लगा दी। अभी हाल ही विजय शंकर दुबे ट्रांसफर होकर पटना में जिला अधिकारी
होकर आए थे और परिवार सहित सर्किट हाउस में रहते थे। वे अन्य जगहों पर हुए आगजनी रोकने की
व्यवस्था कर रहे थे कि उन्हें वायरलेस सेट पर खबर मिली कि सर्किट हाउस के पांच
नंबर रूम में भी आग लगा दी गई है।
बाद में छात्रों के समूहों ने बुद्ध मार्ग
स्थित एक और पेट्रोल पंप, प्रदीप और सर्चलाइट प्रेस में
भी आग लगा दी। फिर वे फ्रेजर रोड में इंडियन नेशन और आर्यावर्त अखबारों के भवन में
आग लगाते हुए राजस्थान होटल को भी आग के हवाले कर दिया।
पटना हाइकोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश
राकेश कुमार ने बताया कि बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड का मैट्रिकुलेशन का सेंटर
राम मनोहर राय सेमिनरी में था,परीक्षा समाप्त होने पर
गर्दनी बाग वापस पैदल लौटना पड़ा। न बस,न टमटम ,न रिक्शे थे,पूरे रस्ते सीमा सुरक्षा बल और सेना के
जवान,जगह जगह आगजनी के सबूत।
झारखंड में अवकाश प्राप्त प्रधान मुख्य वन
संरक्षक,नरेन्द्र मिश्र ने याद किया- ‘हम लोग साइंस कॉलेज में पढ़ते थेष कावेंडिश
हॉस्टल के बॉर्डन थे। कर्फ्यू लग गया था,कैंपस में भी पुलिस
आ गई थी। छात्रावासों में तलाशी चालू हुई। मैं हॉस्टल के करीब कृष्ण घाट से गंगा
नदी में नाव पकड़ा और उस पार सोनपुर पहुंचा,फिर वहीं से अपने घर दरभंगा।
इधर शहर में अफवाह फैला दी गई कि लालू प्रसाद
यादव भी पुलिस की गोली से मारे गए हैं। छात्र संघ के अध्यक्ष को उस वक्त भी उसके हॉस्टल
या निवास में फोन की सुविधा होती थी। तीन बजे दोपहर मैंने उनके नंबर पर फोन किया
तो लालू जी ने फोन उठाया, मैंने उनके कुशलक्षेम की
जानकारी ली और उनके मारे जाने की अफवाह के बारे में बताया। उन्होंने दावा किया कि
खबर तो उन्होंने ही फैलाई थी,मारे जाने की अफवाह के बाद ही
बड़े पैमाने पर आग लगी।
बाद में लालू को शहर के पूर्व में लोहानीपुर
से पकड़ा गया,अन्य छात्र नेताओं के साथ फ्रेजर रोड स्थित
बांकीपुर केंद्रीय कारागार में बंद किया गया। डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स और मीसा की
धारा लगाई गई। एक सप्ताह बाद जब जयप्रकाश नारायण वेल्लोर से अपना इलाज कर लौटे तब
आंदोलन का रूप ले चुके संघर्ष का नेतृत्व दे दिया गया, जो
कालांतर में जेपी बनाम इंदिरा गांधी हो गया।
मुझे स्मरण है गंगा नदी किनारे स्थित अनुग्रह
नारायण संस्थान में जनवरी 1974 में एक सेमिनार हुआ था। जयप्रकाश नारायण भी आए, पर हॉल में सौ लोग भी नहीं थे। लेकिन आंदोलन के दौरान इनकी सभा में तिल
रखने की भी जगह नहीं मिलती थी। वह छात्र आदोंलन कालांतर में जेपी का आंदोलन बना और
आखिरकार उस आंदोलन की परिणति केन्द्र में इंदिरा गांधी के शासन को उखाड़ फेंकने से
हुई।
हिन्दुस्थान समाचार / जितेन्द्र तिवारी