नए प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम अब ‘सेवा तीर्थ’, केंद्रीय सचिवालय होगा ‘कर्तव्य भवन’
नई दिल्ली, 2 दिसंबर (हि.स.)। केंद्र सरकार ने शासन व्यवस्था में प्रशासनिक नहीं, बल्कि वैचारिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के नए परिसर का आधिकारिक नाम ‘सेवा तीर्थ’ घोषित किया है। इसी के साथ केंद्रीय सचिवा
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना की जानकारी लेते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (फाइल फोटो)


नई दिल्ली, 2 दिसंबर (हि.स.)। केंद्र सरकार ने शासन व्यवस्था में प्रशासनिक नहीं, बल्कि वैचारिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के नए परिसर का आधिकारिक नाम ‘सेवा तीर्थ’ घोषित किया है। इसी के साथ केंद्रीय सचिवालय को अब ‘कर्तव्य भवन’ के नाम से जाना जाएगा। सरकार ने कहा है कि ये बदलाव सत्ता के बजाय जिम्मेदारी और पद के बजाय सेवा की भावना को प्रबल करने वाले हैं।

यह नया परिसर, जिसे सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत ‘एग्जीक्यूटिव एन्क्लेव’ के नाम से विकसित किया जा रहा था, अब अंतिम चरण में है। इसी परिसर में प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ कैबिनेट सचिवालय, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय तथा ‘इंडिया हाउस’ भी स्थित होंगे, जहां विदेश से आने वाले उच्चस्तरीय प्रतिनिधियों के साथ महत्वपूर्ण वार्ताएं आयोजित की जाएंगी।

सरकार ने देशभर के राजभवनों के नाम बदलकर ‘लोक भवन’ करने का निर्णय भी पहले ही लिया था। इसी क्रम में प्रधानमंत्री कार्यालय का ‘सेवा तीर्थ’ और केंद्रीय सचिवालय का ‘कर्तव्य भवन’ नामकरण नागरिक-प्रथम प्रशासनिक दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने वाला कदम माना जा रहा है।

सरकार ने कहा है कि सेवा, कर्तव्य और नागरिक-प्रथम की सोच आज प्रशासनिक भाषा का आधार बन चुकी है। नामकरण बदलाव इसी मानसिकता को प्रतिबिंबित करते हैं, जहां शासन को 'सत्ता के केंद्र' की बजाय ‘सेवा के स्थल’ के रूप में देखा जाए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले वर्षों में कई ऐतिहासिक बदलाव हुए हैं— रेस कोर्स रोड का नाम ‘लोक कल्याण मार्ग’, राजपथ का ‘कर्तव्य पथ’ और राजभवन का ‘लोक भवन’ किया गया। अंडमान-निकोबार के रॉस द्वीप का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप और 21 बड़े निर्जन द्वीपों का नाम परम वीर चक्र विजेताओं के सम्मान में रखा गया।

सरकार का मानना है कि ये परिवर्तन औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति और भारत की मूल संस्कृति- कर्तव्य, सेवा और राष्ट्र-प्रतिबद्धता को केंद्र में लाने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार