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—छात्रों को उनकी जैविक घड़ी के काम करने के तरीके के बारे में जानकारी दी गई
वाराणसी,18 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सेंटर फॉर जेनेटिक डिसऑर्डर्स में गुरूवार को एक दिवसीय विज्ञान कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें सरकारी और दूरदराज के क्षेत्रों के स्कूलों से 75 से अधिक छात्रों ने भाग लिया।
इस कार्यशाला में डॉ. चंदना बसु (वैज्ञानिक, सीजीडी) ने छात्रों को डीएनए की आकर्षक दुनिया से परिचित कराया। डॉ. प्रज्ञा वर्मा ( वैज्ञानिक, जूलॉजी विभाग बीएचयू) ने छात्रों को उनकी जैविक घड़ी के काम करने के तरीके के बारे में बताया। डॉ. पुरबी सैकिया (सहायक प्रोफेसर, बॉटनी विभाग )ने हर्बेरियम तकनीकों और उनके महत्व के बारे में सिखाया। छात्रों ने इन प्रयोगों को स्वयं किया और विशेषज्ञों से सवाल भी किया। छात्रों को जूलॉजी विभाग के जूलॉजिकल म्यूजियम और विज्ञान संस्थान के बॉटनी विभाग के डिजिटल हर्बेरियम में भ्रमण कराया गया।
इस कार्यशाला ने छात्रों को क्रोनोटाइप को बेहतर समझने और डीएनए के दैनिक जीवन पर प्रभाव को जानने में मदद की। डॉ. पूरबि ने बताया कि हर्बेरियम शीटें जंगली पौधों का वैज्ञानिक रिकॉर्ड होता है, ताकि समय के साथ जैव विविधता में बदलाव को ट्रैक किया जा सके। इस प्रक्रिया में युवाओं की भागीदारी से हम पर्यावरणीय जागरूकता, जिज्ञासा और भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमारे प्राकृतिक धरोहर की सुरक्षा की जिम्मेदारी को बढ़ावा देते हैं। छात्रों को जूलॉजिकल म्यूजियम में संरक्षित नमूनों को देखकर भी बहुत उत्साहित किया गया। इससे उन्हें वन्यजीव संरक्षण और जैव विविधता को संरक्षित करने की जिम्मेदारी के बारे में अवगत कराया गया ।
बीएचयू के सीजीडी के कोऑर्डिनेटर डॉ. अख्तर अली ने कहा कि हर बच्चा अपने आप में एक वैज्ञानिक है, यदि वह अपनी जिज्ञासा का पालन करता है और सवाल पूछता रहता है। बीएचयू वैज्ञानिकों ने इस दौरान विशेषज्ञों ने स्कूली छात्रों को विज्ञान पढ़ने के लिए भी प्रेरित किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी