मदरसा नियुक्ति घोटाला : प्रधानाचार्य समेत तीन के खिलाफ मुकदमा दर्ज, बडे अधिकारियों की भी जांच शुरू
शिकायत, साजिश और मदरसा अधिकारियों की चुप्पी बलरामपुर 18 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के जनपद बलरामपुर में मदरसा नियुक्ति से जुड़ा एक फर्जीवाड़ा सामने आया है, जिसने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जवाबदेही और निगरानी तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए
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शिकायत, साजिश और मदरसा अधिकारियों की चुप्पी

बलरामपुर 18 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के जनपद बलरामपुर में मदरसा नियुक्ति से जुड़ा एक फर्जीवाड़ा सामने आया है, जिसने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जवाबदेही और निगरानी तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मामला नगर तुलसीपुर स्थित मदरसा जामिया अनवारूल उलूम से जुड़ा है, जहां लॉकडाउन जैसी आपात अवधि में नियमों को ताक पर रखकर नियुक्ति की गई।

मृतक आश्रित कोटा में सहायक शिक्षक पद पर नियुक्ति के मामले में मदरसा व मदरसा बोर्ड के अधिकारियों का बड़ा खेल प्रकाश में आया है, तुलसीपुर निवासी मोहम्मद हसन रजा की मृतक आश्रित कोटे से सहायक शिक्षक पद पर नियुक्ति होनी थी, जिसे फर्जी ढंग से अयोग्य घोषित करते हुए उसे कनिष्ठ लिपिक के पद पर तैनाती कर दी गई थी, सहायक शिक्षक को लेकर कोरोना काल में फर्जी बैठकें दिखाकर दूसरे की नियुक्ति की गई। मामले की शिकायत होने पर उपसचिव उत्तर प्रदेश शासन ने संज्ञान में लेते हुए तीन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया और इन तीनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। पूरे मामले को लेकर तत्कालीन रजिस्ट्रार मदरसा बोर्ड व अल्पसंख्यक अधिकारी के खिलाफ शासन स्तर पर जांच शुरू की गई है।

सामाजिक कार्यकर्ता व शिकायतकर्ता मोहम्मद इमरान ने बताया कि मृतक आश्रित कोटे से फर्जी नियुक्ति को लेकर अल्पसंख्यक अधिकारी सहित मदरसा बोर्ड के उच्च अधिकारियों को वर्ष 2020 से लगातार करता रहा है, कि कोरोना-काल (लॉकडाउन) में फर्जी तरीके से किसी अन्य को शिक्षक पद पर बैठा दिया गया और हसन रजा को जबरन लिपिक पद पर दिखा दिया गया। कुछ ही समय बाद उन्हें यह भी पता चला कि स्थानीय मदरसा प्रबंधन ने उनके फर्जी हस्ताक्षर बनाकर बोर्ड को नोटरी शपथ पत्र भेजा है, जिसमें यह दर्शाया गया कि वे शिक्षक पद के लिए अयोग्य हैं। शिकायतकर्ता का कहना है कि उन्होंने नियुक्ति तिथि के समय ही इस कूटरचना की शिकायत कर दी थी, लेकिन तत्कालीन जिला अल्पसंख्यक अधिकारी और मदरसा बोर्ड स्तर पर उनकी शिकायतों को दरकिनार कर दिया गया।

पांच साल बाद खुला राज

करीब पांच वर्षों बाद जब शासन स्तर पर मामले का संज्ञान लिया गया, तो शपथ पत्रों पर हस्ताक्षरों की विधि विज्ञान प्रयोगशाला से जांच कराई गई। रिपोर्ट में साफ हुआ कि विवादित हस्ताक्षर हसन रज़ा के नहीं हैं और फर्जी शपथ पत्र मदरसे के लिपिक अज़ीज़ अहमद अंसारी द्वारा स्वयं लिखकर तैयार किया गया था। यह निष्कर्ष आते ही तुलसीपुर थाने में मदरसे के प्रधानाचार्य मेराज अहमद, लिपिक अज़ीज़ अहमद अंसारी सहित अन्य के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की गई। हालांकि, अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है।

न्यायालय में याचिका के बाद कार्रवाई

तुलसीपुर निवासी मो० इमरान ने पूरे प्रकरण की शिकायत शासन से की और न्यायालय की शरण ली। इसके बाद उप सचिव उत्तर प्रदेश शासन स्तर से जांच कराई गई, जिसमें फर्जीवाड़ा सामने आया और एफआईआर के निर्देश दिए गए। एफआईआर के बाद तत्कालीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी और तत्कालीन रजिस्ट्रार मदरसा बोर्ड की भूमिका पर भी सवाल उठने लगा। कि जब फर्जी दस्तावेज़ बोर्ड तक पहुंचे और वर्षों तक शिकायतें लंबित रहीं, तो क्या यह सब बिना विभागीय संरक्षण के संभव था? मदरसा स्तर पर कार्रवाई कर क्या सिस्टम अपनी जिम्मेदारी से बच सकता है—या जांच की आंच ऊपर तक पहुंचेगी?

मामले को लेकर निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण अंकित अग्रवाल ने बताया कि तत्कालीन रजिस्ट्रार मदरसा बोर्ड व जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी की भूमिका को लेकर शासन स्तर पर विधिक जांच चल रही है।

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हिन्दुस्थान समाचार / प्रभाकर कसौधन