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जबलपुर, 16 दिसंबर (हि.स.)। दो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला लिया, जहां एक बालिग और दूसरी नाबालिग युवती के मामलों में कोर्ट ने उनकी मर्जी को मान्य किया। कोर्ट ने उनकी इच्छा के आधार पर निर्णय लिया।
बंदी प्रत्यक्षीकरण में एक युवती बालिग और दूसरी नाबालिग के मामले सामने आए। इनमें दोनों युवतीयों के परिवार की मर्जी के विरुद्ध घर छोड़ने वाली बात एक सी थी। एक मामले में कोर्ट में बालिग युवती की इच्छा के सामने अधिवक्ता मां ने मर्मिक दलीलें दी परन्तु उसका कोई असर नहीं हुआ। दूसरी ओर एक नाबालिग बच्ची के स्वास्थ्य और संरक्षण का तो कोर्ट ने ध्यान रखा, लेकिन यहां भी मर्जी नाबालिग की ही मानी गई।
पहला मामले में एक महिला अधिवक्ता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में बताया गया कि उनकी बेटी घर से चली गई थी, जिसके बाद पुलिस उसे उसके प्रेमी के साथ दूसरे प्रदेश से बरामद कर कोर्ट में पेश किया गया। अधिवक्ता मां ने कोर्ट को बताया कि कैसे बेटी इंस्टाग्राम फ्रेंड के लिए घर छोड़कर चली गई। महिला अधिवक्ता ने कोर्ट को उस समय का सम्पूर्ण घटनाक्रम बताया कि कैसे बहाना बनाकर वह अचानक गायब हो गई। लेकिन युवती ने साफ शब्दों में कहा कि वह मां या परिवार के साथ नहीं रहना चाहती। इसके जबाब में युवती द्वारा अपनी 10वीं की मार्कशीट पेश करते हुए बताया कि वह बालिग है और अपनी मर्जी से प्रेमी के साथ लिव इन में रही है। युवती ने कोर्ट को बताया कि अभी उसके प्रेमी की उम्र 21 वर्ष नहीं है इसलिए वह शादी नहीं कर रही पर उसके साथ ही रहना चाहती है। कोर्ट के सामने अधिवक्ता मां ने भावुक होकर अपनी पीड़ा रखी। परन्तु डिविजन बेंच ने महिला अधिवक्ता को स्वयं के मामले में संयम बरतने को कहा और भावनाओं पर नियंत्रण के लिए बोला।
कोर्ट ने पुलिस से पूछा कि युवती को जिस जगह से लाया गया, वहां कोई असुरक्षित या संदिग्ध स्थिति तो नहीं थी। पुलिस के इनकार करने के बाद कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया की लड़की की मर्जी के विरुद्ध कहीं रहने के लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता।
दूसरे एक अन्य मामले में जिसमे एक नाबालिग लड़की घर से लापता हो गई थी। पुलिस द्वारा बरामदगी के बाद उसे कोर्ट में लाया गया, तो उसने बताया कि पहले वह भोपाल गई, फिर स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या स्तन में गांठ का पता चलने के बाद इलाज के लिए इंदौर पहुंची। पैसों की कमी और पारिवारिक हालात ने उसे भटकने पर मजबूर कर दिया था। कोर्ट ने न सिर्फ उसके इलाज की चिंता की, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि उसका उपचार जबलपुर मेडिकल कॉलेज के कैंसर यूनिट में कराया जाए। कोर्ट ने उसे समझाया कि वह अभी 17 वर्ष की है और कानून के मुताबिक उसे परिवार या सुरक्षित संरक्षण में रहना होगा। लेकिन युवती ने मां के साथ रहने से साफ मना कर दिया उसने बताया कि उसके साथ मारपीट की जाती है।
जस्टिस विवेक अग्रवाल ने सरकारी वकील के सुझाव पर राजकुमारी बाई निकेतन की सुविधाओं की जांच के बाद युवती को वहां भेजने का आदेश दिया। इस मामले में जस्टिस विवेक अग्रवाल की हृदय स्पर्शी बात सामने आई। उन्होंने पुलिस से पूछा- जब आप इसे लेकर आए, तो क्या इसने खाना खाया?। शासकीय अधिवक्ता के द्वारा इसके दिए गए जवाब के बाद उनको तत्काल भोजन की व्यवस्था करने और उसके खर्च की भरपाई स्वयं जज से लेने के मौखिक निर्देश दिए।
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हिन्दुस्थान समाचार / विलोक पाठक