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शिमला, 16 दिसंबर (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में पटवारी भर्ती परीक्षा की फीस को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। शोषण मुक्ति मंच ने भर्ती प्रक्रिया में अनुसूचित जाति और गरीब वर्ग के अभ्यर्थियों को परीक्षा शुल्क में कोई राहत न दिए जाने पर कड़ा ऐतराज जताया है। मंच का कहना है कि सभी वर्गों के लिए 800 रुपये की समान फीस तय करना सामाजिक न्याय और आरक्षण की भावना के खिलाफ है।
मंच के अनुसार आर्थिक रूप से कमजोर, दलित और वंचित वर्ग पहले से ही सीमित संसाधनों के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। ऐसे में अधिक परीक्षा शुल्क उनके लिए एक बड़ी बाधा बन सकता है और कई योग्य अभ्यर्थी केवल फीस के कारण परीक्षा में बैठने से वंचित रह सकते हैं। मंच ने आरोप लगाया कि यह फैसला आरक्षण व्यवस्था को धीरे-धीरे कमजोर करने की दिशा में उठाया गया कदम है।
इस मुद्दे पर हुई एक बैठक में सामाजिक संगठनों ने चिंता जताई कि यदि भर्ती प्रक्रियाओं में कमजोर वर्गों के हितों की अनदेखी होती रही, तो इसका सीधा असर समान अवसर के अधिकार पर पड़ेगा। बैठक में सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष को और तेज करने का संकल्प भी लिया गया।
मंच ने सरकार से मांग की है कि सभी सरकारी भर्तियों में, चाहे वे नियमित हों या आउटसोर्स या विभिन्न योजनाओं के तहत की जा रही हों, आरक्षण रोस्टर को सख्ती से लागू किया जाए। साथ ही परीक्षा शुल्क में अनुसूचित जाति और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को उचित राहत दी जाए, ताकि वे बिना आर्थिक दबाव के भर्ती प्रक्रियाओं में भाग ले सकें।
शोषण मुक्ति मंच ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने पटवारी भर्ती परीक्षा की फीस से जुड़ा यह फैसला वापस नहीं लिया, तो प्रदेश भर में व्यापक जन आंदोलन किया जाएगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा