आईआईटी खड़गपुर में “आत्मान्वेषण यात्रा” —उपनिषदों के सार के माध्यम से आत्म-खोज की अनोखी नाट्य प्रस्तुति
आईआईटी खड़गपुर में आत्मान्वेषण यात्रा की विहंगम दृश्य


आईआईटी खड़गपुर में आत्मान्वेषण यात्रा भव्य रूपांतरण


आईआईटी खड़गपुर में आत्मान्वेषण यात्रा भव्य रूप से आयोजित


आईआईटी खड़गपुर में आत्मान्वेषण यात्रा


खड़गपुर, 2 नवम्बर (हि.स.)।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर में रविवार को भारतीय ज्ञान प्रणाली उत्कृष्टता केंद्र (सीओई-आईकेएस) के तत्वावधान में “आत्मान्वेषण यात्रा” नामक एक भव्य और आध्यात्मिक नाट्य प्रस्तुति का आयोजन किया गया। नेताजी सभागार में आयोजित यह कार्यक्रम भारतीय दर्शन और आधुनिक अभियांत्रिकी शिक्षा के अद्भुत संगम का प्रतीक रहा।

इस पांच घंटे (सुबह 8:30 बजे से दोपहर 1:45 बजे तक) चले कार्यक्रम का मूल विचार एवं निर्देशन डॉ. ऋचा चोपड़ा, कोर फैकल्टी, एवं पाठ्यक्रम “द एसेंस ऑफ दी उपनिषद” की अध्यापिका द्वारा किया गया। कार्यक्रम में विभिन्न विभागों—समुद्री अभियांत्रिकी, रासायनिक अभियांत्रिकी, यांत्रिक अभियांत्रिकी, एयरोस्पेस, सिविल तथा कृषि एवं खाद्य अभियांत्रिकी — के कुल 68 छात्रों ने भाग लिया। छात्रों ने उपनिषदों के गूढ़ तत्वों और संदेशों को नाट्य, संगीत और अभिनय के माध्यम से जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया, जिसे दर्शकों ने तालियों की गूंज के साथ सराहा।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और वैदिक संस्कृत मंत्रोच्चारण से हुआ, जिसने पूरे वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया। इसके पश्चात रामकृष्ण मठ, बेलूर के स्वामी विद्याप्रदानानंद जी महाराज ने आशीर्वचन दिया और समापन सत्र में “उपनिषदों की आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता” पर प्रेरणादायी प्रवचन दिया।

इस अवसर पर आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रो. सुमन चक्रवर्ती, डीन (प्रशासन) प्रो. के. एल. पाणिग्रही, सीओई-आईकेएस के अध्यक्ष प्रो. अरिजीत दे, तथा अन्य वरिष्ठ प्रोफेसर एवं विभिन्न संस्थानों के प्रतिनिधि उपस्थित थे।

प्रो. सुमन चक्रवर्ती ने अपने संबोधन में कहा कि आत्मान्वेषण यात्रा केवल एक नाट्य प्रस्तुति नहीं, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी-2020) की उस भावना का साकार रूप है, जो बहुआयामी एवं समग्र शिक्षा की दिशा में हमें आगे बढ़ाती है। आईआईटी खड़गपुर में हमारा उद्देश्य केवल तकनीकी रूप से दक्ष अभियंता या वैज्ञानिक तैयार करना नहीं, बल्कि ऐसे सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकसित करना है जो नैतिकता, संवेदना और अध्यात्म से समृद्ध हों। जब आधुनिक विज्ञान की तर्कशीलता उपनिषदों की आत्म-चिंतनशीलता से जुड़ती है, तभी सच्चा नवाचार संभव होता है।

डीन (प्रशासन) प्रो. के. एल. पाणिग्रही ने छात्रों की रचनात्मकता और समर्पण की सराहना करते हुए कहा कि यह प्रस्तुति विद्यार्थियों के भीतर छिपे संस्कार, अनुशासन और सौंदर्यबोध का उत्कृष्ट प्रमाण है।

इस अवसर पर आईआईटी मंडी, आईआईटी (आईएसएम) धनबाद, आईआईटी गुवाहाटी, एनआईटी जमशेदपुर, एनआईटी राउरकेला, तथा एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, झारग्राम (रामकृष्ण मिशन के अंतर्गत) सहित देश के 10 से अधिक संस्थानों के 200 से अधिक प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।

कार्यक्रम के अंत में डॉ. ऋचा चोपड़ा को आईआईटी समुदाय की ओर से अत्यंत आध्यात्मिक और हृदयस्पर्शी शब्दों में धन्यवाद ज्ञापित किया गया। उनकी इस अनूठी पहल ने तकनीकी शिक्षा में भारतीय दर्शन की जीवंतता को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक नया अध्याय जोड़ा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / अभिमन्यु गुप्ता