गांधी की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रखती थी ब्रिटिश सरकार !

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प्रयाग पाण्डे
महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के अचूक शस्त्र के आगे सर्वशक्तिमान ब्रिटिश साम्राज्य सदैव भयाक्रांत रहता था। एक लंगोटधारी फकीर की निजी यात्रा से औपनिवेशिक शासन की सांसें थम सी जाती थीं। ब्रिटिशर्स को उनके 'कभी नहीं डूबने वाले सूर्य' के अस्ताचल को बढ़ने का गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता था। महात्मा के सत्य और अहिंसा रूपी अस्त्र से भयभीत ब्रिटिश सरकार उनकी प्रत्येक गतिविधि पर सदैव पैनी नजर रखती थी। ब्रिटिश सरकार द्वारा गांधी की प्रत्येक यात्राओं की जासूसी की जाती थी। गांधी की 1929 की कुमाऊं यात्रा के दौरान ब्रिटिश सरकार ने जासूसी कराई थी। इस यात्रा के दौरान सीआईडी के दो अफसरों ने गांधी जी का पीछा किया था। गांधी की जासूसी कराने का यह मुद्दा 1929 में संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) की विधान परिषद में भी उठा था। विधान परिषद में तत्कालीन सरकार ने गांधी के कुमाऊं के करीब बीस दिन के पूरे दौरे में खुफिया विभाग के अधिकारियों द्वारा उनका पीछा किए जाने की बात स्वीकारी थी।
गांधी जी ने 1929 में कुमाऊं की यात्रा की थी। उन्होंने 14 जून से 5 जुलाई, 1929 तक कुमाऊं के विभिन्न नगरों में प्रवास किया। गांधी जी की इस यात्रा का उद्देश्य दरिद्र नारायण के लिए चंदा एकत्र करना था। इस यात्रा के दौरान गांधी जी नैनीताल, भवाली, गरमपानी, ताड़ीखेत, अल्मोड़ा बागेश्वर और कौसानी समेत अनेक स्थानों में गए। वहां सार्वजनिक सभाओं को संबोधित किया। हजारों लोगों से मिले। दरिद्र नारायण के लिए चंदा एकत्र किया। गांधी जी ने 12 दिन कौसानी में विश्राम किया। उन्होंने यहीं 'अनाशक्ति योग' की प्रस्तावना भी लिखी।
खुफिया विभाग द्वारा गांधी जी की कुमाऊं यात्रा के दौरान उनका पीछा करने का खुलासा उसी साल दिसंबर, 1929 में संयुक्त प्रांत विधान परिषद में पंडित गोविंद बल्लभ पंत द्वारा प्रस्तुत एक तारांकित प्रश्न से हुआ था। तब गोविंद बल्लभ पंत संयुक्त प्रांत विधान परिषद में स्वराज्य पार्टी के नेता थे। पंडित पंत ने तारांकित प्रश्न संख्या-एक, दिनांक 13 दिसंबर,1929 द्वारा सरकार से जानना चाहा कि महात्मा गांधी जी के 14 जून से 5 जुलाई, 1929 के कुमाऊं दौरे खुफिया विभाग के अधिकारियों द्वारा उनका पीछा किया गया था?
प्रश्न के उत्तर में सरकार ने माना कि सीआईडी के दो अधिकारी गांधी जी के दौरे से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों की जानकारी के लिए लगातार उपस्थित रहे।सरकार ने स्वीकार किया कि सीआईडी के अधिकारी गांधी जी के कौसानी प्रवास के दौरान कौसानी में ही ठहरे थे। ब्रिटिश सरकार ने यह भी माना कि सीआईडी के इन अधिकारियों ने उसी दिन यात्रा शुरू की, जिस दिन गांधी जी ने अपने सहयोगियों के साथ यात्रा प्रारंभ की थी। कई मौकों पर सीआईडी अधिकारियों की मोटर गांधी जी की मोटर के बहुत पास पहुंच गई थी।
सरकार ने कहा कि गांधी जी की यात्रा से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं की रिपोर्ट बनाने की मंशा से भेजे गए सीआईडी अधिकारियों पर साढ़े तीन सौ रुपये का खर्च हुआ। सरकार का तर्क था कि गांधी जी ने ऐसे स्थानों का दौरा किया, जहां जिला पुलिस तैनात नहीं है। कुमाऊं के कुछ छोटे हिस्से ही जिला पुलिस के क्षेत्राधिकार में आते हैं, इसलिए विशेष अधिकारियों को वहां भेजना पड़ा। इस पर पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने सरकार से पूछा जब नैनीताल, अल्मोड़ा और रानीखेत में पूर्णकालिक पुलिस अधिकारी कार्यरत हैं तो सीआईडी के अधिकारियों को क्यों भेजा गया। इस पर सरकार का कहना था कि नैनीताल, अल्मोड़ा और रानीखेत में कार्यरत पुलिस अधिकारी कभी दौरे पर नहीं जाते हैं, अगर इन दो सीआईडी अधिकारियों की जगह उन्हें भेजा जाता, तो भी यात्रा भत्ता उतना ही होता, जितना इन अधिकारियों को भेजने में हुआ।
इस मुद्दे पर गोविंद बल्लभ पंत ने विधान परिषद में लंबी और दमदार बहस की। उन्होंने ब्रिटिश सरकार की इस कार्यवाही को मूर्खतापूर्ण बताया। इस मामले में घिरता देख विधान परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष ने इस प्रश्न को विराम दे अगले प्रश्न पर चर्चा प्रारंभ कर दी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार द्वारा महात्मा गांधी जी की जासूसी कराने का यह मुद्दा शांत नहीं हुआ। संयुक्त प्रांत की राजनीति में बहुत दिनों तक यह विषय गरमाया रहा।
 
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)