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प्रयागराज, 31 अक्टूबर (हि.स.)। बड़ा वॉल्ड ऑफ नेक्रोसिस सहित स्यूडोपैंक्रियाटिक सिस्ट का यह ऑपरेशन काफी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि सिस्ट में दीवार की सड़न और पुराना पैंक्रियाटाइटिस दोनों ही मौजूद थे। लेप्रोस्कोपिक तकनीक से ऐसे जटिल केस को सफलतापूर्वक संभालना पूरे विभाग के लिए गर्व की बात है। यह जानकारी शुक्रवार को डॉ. वैभव श्रीवास्तव ने दी।
डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि
प्रयागराज के करछना निवासी 50 वर्षीय महिला बीते एक महीने से पेट दर्द से अत्यधिक परेशान थीं। पहले उन्होंने करछना के एक निजी अस्पताल में तीन दिन तक उपचार कराया। कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद उन्हें 6 अक्टूबर को स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय के सर्जरी विभाग में भर्ती कराया गया। जांच के दौरान किए गए सीईसीटी स्कैन में उनके पेट में एक बड़ा वॉल्ड ऑफ नेक्रोसिस सहित स्यूडोपैंक्रियाटिक सिस्ट पाया गया। ऐसी स्थिति अधिकतर एक्यूट पैंक्रियाटाइटिस के बाद उत्पन्न होती है, जिसमें अग्न्याशय की सूजन के कारण स्रावित द्रव और मृत ऊतक मिलकर एक थैली जैसी संरचना बना लेते हैं।
यदि इसका समय पर उपचार न किया जाए तो यह संक्रमण, रक्तस्राव या आस-पास के अंगों पर दबाव जैसी गंभीर जटिलताएँ पैदा कर सकता है जिनके अत्यंत गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ऐसे मामलों में लेप्रोस्कोपिक सिस्टोगैस्ट्रोस्टॉमी जैसी सर्जरी ही जीवन-रक्षक उपाय होती है, जिसमें बिना पेट खोले एक नली के माध्यम से सिस्ट की दीवार को पेट की दीवार से जोड़ दिया जाता है ताकि उसके अंदर जमा द्रव सुरक्षित रूप से निकल सके।
मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के सह आचार्य डॉ. संतोष सिंह ने बताया कि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सर्जरी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर वैभव श्रीवास्तव ने 16 अक्टूबर को लेप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टॉमी और लेप्रोस्कोपिक सिस्टोगैस्ट्रोस्टॉमी एक बार में ही किया। ऑपरेशन के बाद रोगी को दो दिन आईसीयू में रखा गया। फिर सामान्य वार्ड में शिफ्ट किया गया। अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं। सामान्य आहार ले रही हैं और ऑपरेशन के दसवें दिन उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया।
मरीज का आपरेशन डाक्टर वैभव श्रीवास्तव के नेतृत्व में डॉ. तरुण कालरा, डॉ. मोनिका, डॉ. अनमोल और डॉ. नृपेन्द्र ने सफल बनाया। एनेस्थीसिया टीम का नेतृत्व डॉ. अरविंद यादव ने किया, जिनके साथ डॉ. आकांक्षा और डॉ. शहनाज़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामबहादुर पाल