छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पादरी और पास्टर के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले होर्डिंग्स से संबंधित याचिका को किया खारिज
पादरी और पास्टर के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाला  होर्डिंग्स


बिलासपुर, 28 अक्टूबर (हि.स.)।छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने मंगलवार को पादरी और पास्टर के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले होर्डिंग्स से संबंधित याचिका को खारिज कर दिया है।यह मामला चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विभू दत्त गुरु की डिवीजन बेंच में सुना गया। कोर्ट ने इस मामले को आज(मंगलवार ) यह कहते हुए निराकृत कर दिया है कि याचिकाकर्ता चाहें तो पहले ग्राम सभा या एसडीएम के समक्ष आवेदन दें।यह मामला चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस विभू दत्त गुरु की डिवीजन बेंच में सुना गया।

याचिकाकर्ता दिग्बल तांडी के अधिवक्ता ने अदालत में पक्ष रखा। ईसाई समाज से जुड़े संगठनों ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि गांव में पादरी और पास्टर के प्रवेश पर रोक लगाया जाना अनुचित है। बोर्ड में साफ लिखा है कि गांव में ईसाई धर्म के पादरी,पास्टर एवं धर्मांतरण के लिए आने वाले धर्मांतरित व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है, ऐसे किसी भी धार्मिक आयोजन पर रोक लगाई जाती है।याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस तरह का फरमान असंवैधानिक और अधिकारों का उल्लंघन है। इससे धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट पहुंच रही है। याचिका में मांग की गई थी कि होर्डिंग को तत्काल हटाया जाए और ग्राम पंचायत पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए जाएं।वहीं प्रतिवादी ग्राम पंचायत और शासन की ओर से कहा गया कि पेसा एक्ट के तहत होर्डिंग्स और पोस्टर लगाए हैं।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा — “इस तरह के नियम बनाने का अधिकार ग्राम पंचायत को नहीं है।” दोनों पक्षों की तरफ से वकीलों ने अदालत में अपनी दलीलें पेश की । जिसमें पैसा एक्ट अधिनियम 2022 के नियमों का हवाला दिया गया ,जिसमें अपनी संस्कृति की संरक्षण करने का अधिकार शामिल बताया गया है। पूरा मामला बस्तर से जुड़ा है जहां अवैध और दबावपूर्ण धर्मांतरण रोकने के लिए बोर्ड लगाया गया था। जिसे लोगों के मौलिक अधिकार के खिलाफ मानते हुए एक याचिका लगाई गई। जिसे जनहित याचिका के रूप में सुनवाई की गई। 13 अक्टूबर 2025 को हुई पूर्व में सुनवाई में उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी शासन और अन्य को रिटर्न दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था और उसके बाद,प्रत्युत्तर, यदि कोई हो, दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया। इसके बाद आज मंगलवार को इस मामले में सुनवाई हुई ।मामले की सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार ने तर्क दिया कि ग्रामीण धर्मांतरण को रोकने के लिए अपनी आदिवासी संस्कृति और परंपराओं की रक्षा कर रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि बाहरी पादरी और पास्टर प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराते हैं।

अदालत ने याचिकाकर्ताओं को मामले को पहले संबंधित ग्राम सभा या एसडीएम के पास उठाने का निर्देश दिया। इसके बाद भी अगर समाधान नहीं होता है तो वे कानूनी कार्रवाई शुरू कर सकते हैं। इस याचिका को खारिज कर दिया गया ।

हिन्दुस्थान समाचार / Upendra Tripathi