राष्ट्रीय शिक्षक दिवस पर : अमरेली के शिक्षक चंद्रेशकुमार बोरीसागर ने नवाचार से शिक्षण को बनाया रोचक
राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने शिक्षा में इनोवेटिव कार्य करने के लिए दी प्रेरणा: राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शिक्षक बोरीसागर अहमदाबाद, 4 सितंबर (हि.स.)। ‘पंखीडा तुं उडीने जाजे गामे गाम रे... गामना बाळकोने कहेजे भणवा आवो रे... मारा देशना बाळको तमे भणवा आवो र
अमरेली के बाढडापरा प्राथमिक विद्यालय के कार्यकारी मुख्य शिक्षक चंद्रेशकुमार भोलाशंकर बोरीसागर ने शिक्षा क्षेत्र में नवीनता का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया


राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने शिक्षा में इनोवेटिव कार्य करने के लिए दी प्रेरणा: राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शिक्षक बोरीसागर

अहमदाबाद, 4 सितंबर (हि.स.)। ‘पंखीडा तुं उडीने जाजे गामे गाम रे... गामना बाळकोने कहेजे भणवा आवो रे... मारा देशना बाळको तमे भणवा आवो रे... वहेला आवो... नियमित आवो... रोजे आवो रे... देशना बाळको रे तमे भणवा आवो रे...’ (अर्थात् – पंछी, तू उड़ कर गांव-गांव जाना और बच्चों से कहना कि स्कूल में पढ़ने आओ)। गुजरात के प्रसिद्ध लोकगीत ‘पंखीडा तुं उडीने जाजे पावागढ रे...’ को शैक्षणिक लोक जागृति के लिए इस प्रकार उपयोग में लेकर अमरेली के बाढडापरा प्राथमिक विद्यालय के कार्यकारी मुख्य शिक्षक चंद्रेशकुमार भोलाशंकर बोरीसागर ने शिक्षा क्षेत्र में नवीनता का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है।

श्रेष्ठ विद्यालय से श्रेष्ठ राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रयासरत चंद्रेशकुमार ने ऐसे अनेक नूतन प्रयोगों से बोरिंग (ऊबाऊ) एवं कष्टदायक लगने वाले शिक्षा कार्य में नए प्राण फूंक कर उसे रुचिकर बनाया है। इन प्रयोगों का सकारात्मक प्रभाव बच्चों के गढ़न में देखने को मिल रही है और शिक्षा क्षेत्र में उनके ऐसे ही संनिष्ठ प्रयासों के फलस्वरूप उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2024 दिए जाने की घोषणा की गई है। इस वर्ष देशभर से कुल 50 शिक्षकों को पुरस्कार दिए जाएंगे, जिनमें गुजरात से चंद्रेशकुमार बोरीसागर एवं आणंद के वडाला स्थित हाईस्कूल के शिक्षक विनय शशिकांत पटेल का चयन किया गया है।

“गायन, वदन एवं अभिनय से मैं शिक्षा को सरल बनाता हूँ”

संगीत की साधना करने वाले चंद्रेशकुमार ने शिक्षा कार्य के लिए किए गए अपने प्रयागों के बारे में जानकारी देते हुए कहा, “मुझे संगीत में रुचि है और मैं संगीत के माध्यम से शिक्षा कार्य को सरल बना देता हूँ। मैंने मोटर साइकिल पर चलता-फिरता स्कूल बना कर गीतों के माध्यम से शिक्षा कार्य के लिए बच्चों को प्रोत्साहित किया। इसमें मैंने स्थानीय लोकगीतों का उपयोग शिक्षा के गीतों के रूप में किया। क्लास रूम में संगीत के उपयोग से बच्चों को समझाने में मुझे काफी सफलता मिली है। गायन, वादन एवं अभिनय से मैं शिक्षा को सरल बनाता हूँ, कारण कि संगीत गहन विषय को भी सहज बना देता है।”

“राष्ट्रीय शिक्षा नीति से स्वर्णिम सूर्य का उदय हुआ”

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्व का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से स्वर्णिम सूर्य (सोने के सूरज) का उदय हुआ है। इस नीति में चैप्टर 4.7 के अंतर्गत कला के माध्यम से पढ़ाई को आनंदप्रद बनाने की बात है। चैप्टर 4.8 में खेल-कूद के माध्यम से शिक्षा तथा बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की बात की गई है। इस दृष्टिकोण से मैं जो इनोवेटिव करता था, उसे आगे ले जाने के लिए मुझे नई ऊर्जा व प्रेरणा मिली है। भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को साथ लेकर बच्चों के वर्तमान व भविष्य का दृढ़ निश्चय करने की दिशा में यह बहुत ही महत्वपूर्ण है।”

कैरम बोर्ड की गोटियों तथा पेड़ की डालियों पर मूलाक्षर, विद्यालय परिसर में स्पीकर पर गूंजती है अंग्रेजी कविता

बाढडापरा प्राथमिक विद्यालय के परिसर में भाषा को सुन कर सीखने के अभ्यास के रूप में क्लास रूम के बाहर कभी-कभी स्पीकर पर अंग्रेजी कविताएँ बजाई (चलाई) जाती हैं। ये कविताएँ सुन कर बच्चे अंग्रेजी भाषा को अधिक बेहतर ढंग से सीख रहे हैं। इसके अतिरिक्त; पेड़ की डालियो तथा कैरम की गोटियों पर मूलाक्षर (बाराखड़ी) लिख कर नए प्रयोग किए गए हैं। इन मूलाक्षरों पर बच्चों की दृष्टि पड़ती है, तो वह उनके मस्तिष्क में आसानी से अंकित हो जाती है और उसे सीखने में भी बच्चों को रुचि पैदा होती है। बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए विभिन्न खेल-कूद गतिविधियों तथा होमवर्क में लेखन व पठन के साथ सुन कर बोलने तथा अभिनय का कार्य भी दिया जाता है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के इन प्रयोगों से अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय