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लखनऊ, 9 मई (हि.स.)। उप्र में चौथे चरण की जिन 13 सीटों पर मतदान होगा, उनमें एक अकबरपुर लोकसभा क्षेत्र है। अकबरपुर संसदीय सीट 1962 में अस्तित्व में आई। इस सीट पर अब तक हुए 15 संसदीय चुनाव में जहां सबसे बड़ी जीत लगभग 3 लाख वोटों के अंतर से हुई। वहीं एक मुकाबला ऐसा भी रहा जिसमें हार और जीत का फैसला मात्र 0.03 फीसदी वोटों के अंतर से हुआ था। साल 2019 में मछलीशहर सीट पर मात्र 181 वोटों से भाजपा प्रत्याशी की जीत हुई थी।
156 वोट के अंतर से दिल्ली पहुंचे राम अवध
10वीं लोकसभा के 1991 में हुए चुनाव में अकबरपुर संसदीय सीट को जीतने के लिए के लिए कुल 14 प्रत्याशी मैदान में उतरे। जिनमें 7 निर्दलीय थे। जीत जनता दल (जेडी) प्रत्याशी राम अवध के हाथ लगी। राम अवध को 133,060 (27.04%) वोट हासिल हुए। दूसरे स्थान पर रहे भाजपा के बेचन राम। बेचन राम के खाते में 132,904 (27.01%) वोट आए। मतगणना के अंतिम चक्र तक सबकी सांसें अटकी रही। अंत में फैसला रामअवध के पक्ष में आया। रामअवध मात्र 156 वोट के अंतर से ये चुनाव जीत गए। इस मुकाबले में बसपा तीसरे, जनता पार्टी चौथे और कांग्रेस पांचवें स्थान पर रही। जनता पार्टी और कांग्रेस प्रत्याशी की तो जमानत जब्त हो गई। इस चुनाव में 492,087 मतदाताओं ने वोट डालकर अपना सांसद चुना था। उल्लेखनीय है कि 1991 के लोकसभा चुनाव में यह देश की सबसे छोटी जीत थी। 2008 के परिसीमन के बाद ये सीट सामान्य सीट हो गई।
सबसे बड़ी जीत भाजपा के खाते में
अकबरपुर सीट पर अब तक हुए 15 चुनाव में सबसे बड़ी जीत भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के देवेन्द्र सिंह उर्फ भोले सिंह के खाते में दर्ज है। 2014 के आमचुनाव में देवेन्द्र सिंह को 481,584 (49.57%) वोट हासिल हुए। दूसरे स्थान पर रहे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रत्याशी अनिल शुक्ला वारसी को 202,587 (20.85%) वोट मिले। भाजपा उम्मीदवार ने 2 लाख 78 हजार 997 वोटों के अंतर से ये मुकाबला अपने पक्ष में कर लिया। सपा प्रत्याशी 15.13 फीसदी और कांग्रेस के राजाराम पाल 9.97 फीसदी वोट पाकर तीसरे और चौथे स्थान पर रहे। 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी देवेन्द्र सिंह यहां से जीते थे, तब उनकी जीत का अंतर 2 लाख 75 हाजर 142 वोट का था। वहीं 1977 के चुनाव में भारतीय लोकदल प्रत्याशी ने 2 लाख 11 हजार 826 वोट के अंतर से चुनाव जीता था।
हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/दिलीप