2050 तक आबादी में 20 प्रतिशत होंगे बुजुर्ग : समय की मांग है वयस्कों का टीकाकरण
जयपुर, 4 मई (हि.स.)। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड) की इंडिया एजिंग रिपो
 population will be elderly.


जयपुर, 4 मई (हि.स.)। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड) की इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 के अनुसार भारत में 2036 तक 50 साल से ऊपर के लोगों की संख्या 2020 के 26 करोड़ से बढ़कर 40.4 करोड़ होने की उम्मीद है। 2050 तक हर पांच में से एक व्यक्ति (20 प्रतिशत) 50 वर्ष से अधिक उम्र का होगा। ऐसे में भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बढ़ती उम्र की इस आबादी की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।

बढ़ती उम्र के साथ आने वाली प्रमुख चुनौतियों में निमोनिया, इन्फ्लूएंजा और शिंगल्स जैसी संक्रामक बीमारियों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता है। ये संक्रमण बुजुर्गों पर व्यापक शारीरिक, मानसिक और आर्थिक दुष्प्रभाव डाल सकते हैं। शिंगल्स मूलतः पुराने चिकन पॉक्स वायरस की पुनः सक्रियता से होने वाला दर्दनाक संक्रमण है। यह संक्रमण ‘पोस्टहेरपेटिक न्यूराल्जिया’ नाम की एक दर्दनाक जटिलता का कारण भी बन सकता है।

यह संक्रमण न केवल जीवन की गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव डालते हैं, बल्कि इनसे भारत के हेल्थकेयर सिस्टम पर भी बोझ पड़ता है। हृदय रोग, सांस की बीमारी और डायबिटीज जैसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित उम्रदराज वयस्क संक्रामक रोगों के प्रति और भी अधिक संवेदनशील होते हैं। 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में संक्रामक रोग से संबंधित मौतों में 95 प्रतिशत से अधिक मौतें बड़ी उम्र के लोगों की होती हैं। ये बीमारियाँ न केवल कमजोर करती हैं, बल्कि इनसे एनसीडी से जुड़े लक्षण भी बढ़ते हैं, जिससे अस्पताल में भर्ती होने की आशंका बढ़ जाती है।

संक्रामक रोगों की इस चुनौती से निपटने की दिशा में वयस्कों का टीकाकरण एक आशाजनक समाधान है। लेकिन इन टीकों को लेकर समाज में स्वीकार्यता चिंताजनक रूप से बहुत कम है। सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) के दम पर बच्चों को लगने वाले टीकों के मामले में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, लेकिन वयस्कों के टीकाकरण में स्थिति अब भी चिंताजनक है। वयस्कों के टीकाकरण पर एपीआई-इप्सोस के 2023 सर्वेक्षण के डाटा से पता चलता है कि 50 वर्ष और उससे अधिक आयु के 71 प्रतिशत लोग वयस्कों को लगने वाले टीकों के बारे में जानते हैं, फिर भी मात्र 16 प्रतिशत ने ही ऐसा कोई टीका लगवाया है। जागरूकता और स्वीकार्यता के बीच इस अंतर को देखते हुए बढ़ती उम्र की आबादी के बीच लक्षित अभियानों की जरूरत सामने आई है।

राजस्थान स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) सुधीर भंडारी कहते हैं बढ़ती उम्र के साथ प्रतिरक्षा शक्ति में गिरावट से हम संक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं, लेकिन टीकाकरण हमारी प्रतिरक्षा शक्ति को मजबूतकर सकता है। दुर्भाग्य से भारत में वयस्कों के टीकाकरण के प्रति जागरूकता कम है। वह सभी वयस्कों से कहना चाहते है कि वैक्सीन से रोकी जा सकने वाली इन्फ्लूएंजा, शिंगल्स और न्यूमोकोकल जैसी बीमारियों के लिए उपलब्ध टीकाकरण के विकल्पों के बारे में अपने डॉक्टरों से परामर्श करें।

इस वर्ष के विश्व टीकाकरण सप्ताह के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की थीम‘ह्यूमनली पॉसिबल सेविंग लाइव्स थ्रू इम्यूनाइजेशन’ (मानवीय रूप से संभव टीकाकरण के माध्यम से जीवन रक्षा) बीमारियों को रोकने और जीवन रक्षा में टीकाकरण के महत्व पर जोर देती है।टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम (ईपीआई) के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर डब्ल्यूएचओ ने देशों से भावी पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए टीकाकरण कार्यक्रमों में निवेश का आह्वान किया है।

भारत में वयस्क टीकाकरण की आवश्यकता सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर मुद्दा है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। 2036 तक भारत में बुजुर्गों की आबादी 40.4 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इसलिए अब कदम उठाने का समय आ गया है। जागरूकता को बढ़ावा देकर, संवाद को प्रोत्साहित करके और वयस्क टीकाकरण को प्राथमिकता देकर, हम अपनी बुजुर्ग होती आबादी के स्वास्थ्य एवं कल्याण की रक्षा कर सकते हैं और भारत में स्वस्थ बुढ़ापे का आधार तैयार कर सकते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश/संदीप