सितार वादन से छेड़े शास्त्रीय संगीत के स्वर, सजाई महफिल
- आकाशवाणी के सितार वादक ने जुगलबंदी से संगीत प्रेमियों का मोहा मन - संगीत प्रमियों व विद्यार्थियों
सितार वादन से छेड़े शास्त्रीय संगीत के स्वर, सजाई महफिल


- आकाशवाणी के सितार वादक ने जुगलबंदी से संगीत प्रेमियों का मोहा मन

- संगीत प्रमियों व विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं का किया समाधान, तबले की बताई बारीकियां

देहरादून, 28 अप्रैल (हि.स.)। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र सभागार में रविवार की सांझ सितार वादन की शाम सजी। आकाशवाणी के सितार कलाकार रॉबिन करमाकर ने सितार वादन से शास्त्रीय संगीत के स्वर छेड़ महफिल सजाई और जुगलबंदी से संगीत प्रेमियों का मन मोहा लिया। इनके साथ आकाशवाणी के कलाकार प्रदीप्त डे ने तबला पर संगत किया।

दरअसल, दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से समय-समय पर पुस्तक वाचन और चर्चा, वृत्तचित्र फिल्म, लोक परंपराओं और लोक कलाओं, इतिहास, सामाजिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर केंद्रित कार्यक्रमों के साथ शास्त्रीय संगीत से जुड़ी प्रस्तुतियां दी जाती रहती हैं। इसी क्रम में सितार वादन का यह विशेष आयोजन था। अपनी प्रस्तुति से पूर्व सितार कलाकार रॉबिन ने सितार के घरानों के वैशिष्ट्य के विषय में जानकारी दी और वादन के माध्यम से इनके बीच के अंतर को स्पष्ट किया।

रॉबिन ने सितार पर राग मारवा में आलाप और जोड़ के पश्चात दो बंदिशें कमशः मसीत खानी (विलम्बित तीन ताल) और रजाखानी (दुत तीन ताल) प्रस्तुत कीं। इस अवसर पर रॉबिन ने संगीत प्रमियों व संगीत के विद्यार्थियों से परस्पर संवाद किया और उनकी जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। तबला वादक प्रदीप्त डे ने भी विद्यार्थियों को तबले की बारीकियों से अवगत कराया। कार्यक्रम में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के निकोलस हॉफलैंड ने कलाकारों व संगीत प्रेमियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन आकाशवाणी देहरादून केंद्र के सहायक निदेशक अनिल भारती ने किया।

इस दौरान दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी, आकाशवाणी के पूर्व निदेशक विभूति भूषण भट्ट, लोक संगीतकार रामचरण जुयाल, साहित्यकार भारती पांडेय, अभिनंदा, दुर्गेश भट्ट, जगदीश बाबला, सुंदर सिंह बिष्ट आदि थे।

मीरा के प्रिय भजन और लोकप्रिय गढ़वाली गीत के स्वर से कार्यक्रम का समापन-

रॉबिन ने सितार पर मीरा के प्रिय भजन ''पायो जी मैंने राम रतन धन पायो'' और लोक संगीतकार स्व. केशव अनुरागी के लोकप्रिय गढ़वाली गीत ''ह्यू चली डांडियों की चली की'' धुन से कार्यक्रम का समापन किया।

हिन्दुस्थान समाचार/कमलेश्वर शरण/रामानुज