जीवन में रामत्व
ऋचा सिंह श्रीराम को सनातन धर्म में विष्णु का अवतार माना गया है। लोग उनको भगवान और आराध्य मान कर पूजा
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ऋचा सिंह

श्रीराम को सनातन धर्म में विष्णु का अवतार माना गया है। लोग उनको भगवान और आराध्य मान कर पूजा-अर्चना करते हैं। लेकिन जब हम राम के सम्पूर्ण जीवन का अवलोकन करते हैं तो पाते हैं कि राम केवल पूजा के विषय नहीं हैं, वह अनुकरणीय हैं हर स्थिति काल में जीवन को दिशा प्रदान करने वाले प्रेरणा पुंज हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि राम ने स्वयं को एक राजा और भगवान के अवतार के रूप में नहीं अपितु जननायक के रूप में स्थापित किया। हम उनके संपूर्ण जीवन में देखते हैं कि कैसे उन्होंने कठिन स्थितियों में भी मर्यादा के नूतन आयाम स्थापित किए। राजकुल में जन्म लेने के बाद भी राम ने अपना जीवन राजसी वैभव में नहीं बिताया। उनका बाल्यकाल आश्रम में व्यतीत हुआ, गुरुकुल में वह राजकुमारों की भांति नहीं अपितु सामान्य बालकों की भांति अपने और आश्रम के सारे कार्य करते थे। जब वह युवा हुए और राज्याभिषेक का समय आया तो उन्हें पिता के वचन के लिए वनगमन करना पड़ा। राम का जीवन मानवीय संबंधों के मार्गदर्शन में प्रेरणा देता आया है जिसके कारण वह लोक चेतना और परम्परा में सदैव जीवंत रहते हैं।

जो लोक में व्याप्त है वह कालजयी है, वही सर्वमान्य है, वही अनुकरणीय है, वही वंदनीय है। लोक परंपरा में भी हम पाते हैं कि जन्मोत्सव, विवाह, हवन, कीर्तन, मांगलिक आयोजन आदि में महिलाएं जो मंगल गीत गाती हैं उसमें भी राम का नाम और उनका संबंध मूल्य ही समाहित है। ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम राम जो लोक के मन में हैं, जो जन-जन के हृदय में बसते हैं। देखें तो राम ही त्योहार हैं, उल्लास हैं, उत्सव हैं, भक्ति हैं, शक्ति हैं, पूजा हैं, ज्ञान हैं, प्रेरणा हैं और जीवन के प्रकाश स्तम्भ हैं। राम केवल जन-जन की भावना नहीं या सनातन धर्म को मानने वालों की आस्था का केंद्र नहीं बल्कि भगवान राम तो जीवन जीने का तरीका है। फिर चाहे वह संबंध मूल्यों को निभाना हो, धर्म के मार्ग पर चलना हो या फिर अपने दिए हुए वचन को पूर्ण करने के साथ कर्त्तव्य का निर्वहन हो। राम सिर्फ कहने में ही मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं है बल्कि हर मायने में वह एक उत्तम और आदर्श पुरुष है वह जीवन के मार्ग को प्रशस्त करने वाले प्रकाश हैं। राम के जीवन आदर्शों को अनुकूल स्थिति में अपने आचरण में लाना जीवन को सरल और सहज बनाता है। राम का जीवन आदर्श, नैतिकता और व्यवहार का उच्चतम मापदंड है जो हर स्थिति में प्रासंगिक है। गुरु-शिष्य, राजा-प्रजा, स्वामी-सेवक, पिता-पुत्र ,पति -पत्नी, भाई-भाई, मित्र-मित्र के आदर्शों के साथ धर्म नीति, राजनीतिक,अर्थनीति के साथ सत्य, त्याग, सेवा, प्रेम, क्षमा, शौर्य, परोपकार, दान आदि मूल्यों का सुंदर समन्वित आदर्श रूप राम के संपूर्ण जीवन में समय-समय पर देखने को मिलता है। राम के जीवन के पुरुषोत्तम होने की विशेषताओं का संदर्भ रामायण में अनेक स्थानों पर देखने को मिलता है, जिसका जीवन में अनुकरण करने पर समरसता पूर्ण समन्वित और खुशहाल व्यक्तित्व का निर्माण होता है। राम का जीवन इतना अद्भुत और विशाल है कि उनके जीवन के प्रसंगों को बार-बार देखने और सुनने से भी मन नहीं भरता।

आज ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी ने कितनी भी प्रगति कर ली हो लेकिन जब व्यक्ति भावनात्मक रूप से खुद को कमजोर पाता है तब वह श्रीराम के जीवन आदर्शों में ही समाधान ढूंढने का प्रयास करता है। राम तो प्रभु का अवतार थे लेकिन जब उन्होंने भी मानव शरीर में धरती पर जन्म लिया तब उन्हे भी सामाजिक, पारिवारिक, सांसारिक बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन राम ने हर स्थिति में स्थित प्रज्ञ होकर कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया, उनके जीवन में यह विशेष और अनुकरणीय है । राम का जीवन हर मानव के हृदय में मन मस्तिष्क में इसलिए बसा हुआ है क्योंकि उनकी कथाएं लोक में व्याप्त हैं। हजारों वर्षों से राम कथा का जतन एवं संवर्धन कलाओं के माध्यम से, गीतों के माध्यम से, मंचन के माध्यम से आम जनमानस के बीच होता रहा है। देखा जाए तो लोक संस्कृति के विभिन्न प्रकारों में रामायण प्रदर्शित होता है जिसमें अपनी भिन्न भिन्न परंपराएं ,अपनी विशिष्ठ वेशभूषा, भाषा के साथ जनजीवन के कई आयाम देखने को मिलते हैं। जिससे जनमानस अपने आप को समृद्ध करता आया है। लोकमंगल की भावना में भी राम के जीवन की अनंत कहानियों द्वारा बच्चों में मूल्यों को रोपित करने की परम्परा चली आ रही है। राम केवल लोगों की भावनाओं में समाए हुए देव नहीं है जिनके प्रति सिर्फ आस्था रखकर पूजा किया जाय बल्कि राम सही मायने में उत्तम पुरुष हैं जो हमें जीवन जीना सिखाते हैं। हम देखें तो राम का जीवन ही ऐसा है जो जनमानस से रिश्ता जोड़कर रखता है।

श्रीराम के लिए समाज के सभी वर्ग समान थे, उनके लिए कोई छोटा या बड़ा नहीं था जैसा हम उनके जीवन में पाते हैं कि निषाद राज , केवट, शबरी माता, जटायु बानर सेना इसके उदाहरण हैं। उनके राज्य में सभी वर्गों में समानता और समान अवसर प्राप्त थे सभी को अपने विचार अभिव्यक्त की स्वतंत्रता प्राप्त थी। राम ने समाज के प्रत्येक वर्ग को आपस में जोड़कर रखने का संदेश दिया उन्होंने प्रेम, भाईचारे का संदेश दिया। राम का व्यक्तित्व ऐसा था जहां प्रेम और विश्वास में भीलनी माता शबरी अपने राम के लिए चख कर मीठे बेर एकत्र करती थीं। इस आस में कि भक्ति और प्रेम के भूखे उनके राजा राम एक दिन उनकी कुटिया में अवश्य आयेंगे। राम प्रेम के जूठे बेर ग्रहण कर ऐसे नैतिकता के सुकृत संदेश प्रेषित करते हैं जो लोक चेतना में आज भी जीवंत होकर व्यक्ति को नर से नारायण बनने की प्रेरणा देते हैं।

श्रीराम का जीवन सामाजिक चेतना, समृद्धि ,सद्गुण और सहानुभूति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा स्रोत है। राम को पिता के वचन के लिए वैभवशाली जीवन त्याग करने में एक क्षण नहीं लगा। आज के युग में अपने छोटे से अधिकार को लोग त्यागना नहीं चाहते लेकिन राम ने समाज, परिवार में पुत्र और भाई के रूप में एक आदर्श प्रस्तुत किया। राज्य छोटे भाई को सौंप कर राम ने भरत से न ही कभी ईर्ष्या की ओर न ही द्वेष बल्कि हमेशा भरत के प्रति प्रेम रखा और उन्हें राज संभालने के लिए प्रेरणा देते रहे। राम का व्यक्तित्व इतना विराट था कि उनमें संपूर्ण प्राणियों के लिए स्नेह और सम्मान का भाव था। राम मनुष्य से ही नहीं पशु, पक्षियों और प्रकृति के प्रति भी स्नेह और लगाव रखते थे। कुछ प्रसंगों द्वारा हमें यह ज्ञात होता है कि माता सीता का हरण होने के बाद राम पशु-पक्षियों और प्रकृति से भी संवाद कर रहे हैं और माता सीता के बारे में पूछ रहे हैं। राम सेतु निर्माण में गिलहरी से संबंधित एक अत्यंत रोचक प्रसंग है। ऐसे अनगिनत प्रसंग हमें राम के जीवन से जुड़े हुए दिखाई और सुनाई पड़ते हैं जो समरसता, स्नेह और प्रेम के पर्याय हैं।

बच्चों को राम के जीवन से, राम के आदर्शों से प्रेरणा दें जिससे वो भारतीय होने पर गर्व कर सकें। विश्व बंधुत्व का भाव रखकर अपने जीवन में रामत्व के मानवीय गुणों को धारण करें। रामत्व की प्राणप्रतिष्ठा अपने मन रूपी मंदिर और जीवन में करें। साथ ही राम के जीवन मूल्यों को स्वयं के जीवन में जीकर प्रमाणित करें। यही श्रीराम की सच्ची पूजा और यही जीवन में रामत्व के भाव की प्रामाणिकता होगी।(लेखिका, बेसिक शिक्षा परिषद, उप्र में शिक्षिका हैं।)