चैत्र रामनवमी पर ऐतिहासिक सीताकुंड धाम पर जुटी श्रद्धालुओ की भीड़
पूर्वी चंपारण,17अप्रैल(हि.स.)। चैत्र रामनवमी पर्व जिले के प्राय:सभी मंदिरो में पूजा अर्चना के लिए श्
जीर्ण शीर्ण अवस्था में पड़ा पूर्वी चंपारण स्थित ऐतिहासिक सीताकुंड


पूर्वी चंपारण,17अप्रैल(हि.स.)। चैत्र रामनवमी पर्व जिले के प्राय:सभी मंदिरो में पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालुओ की लंबी कतार देखने को मिला।

रामनवमी पर्व पर जिले के चकिया अनुमंडल के पीपरा स्थित बेदीबन मधुबन पंचायत का सीताकुंड धाम पर परंपरागत रूप से लगने वाले मेला मुख्य आकर्षण का केन्द्र रहा।जहां हर वर्ष की भांति यहां भव्य मेला का आयोजन किया गया। एक अनुमान के अनुसार प्रभु श्रीराम के चरित्र से जुड़े इस स्थल पर लाखो की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे और पूजा-अर्चना करने के बाद मेला का आनंद लिया। बताया गया कि रामनवमी पर यहां प्राचीन काल से ही मेला का आयेजन होता आ रहा है।जहां न केवल पूर्वी चंपारण बल्कि पड़ोसी जिला के साथ यूपी और नेपाल से भी श्रद्धालु पहुंचते है।इसके साथ ही इस मेले में बिहार समेत कई राज्यो के दूकानदार यहां पहुंचकर हस्त शिल्प,काष्ठ शिल्प व औषधीय जड़ी बूटियो की दूकान संजाते है। उल्लेखनीय है,कि पूर्वी चंपारण जिले के सीताकुंड स्थल का अति पौराणिक महत्व है।बताया जाता है,कि प्रभु श्रीराम एवं माता जानकी से शादी रचाकर जनकपुर से अयोध्या लौटने क्रम में उनकी बारात एक रात सीताकुंड में रुकी थी। फिर उसके अगले दिन यहां अवस्थित बेदिवन गढ़ पर चौठारी की रश्म पूरी की गई थी। उस समय यह क्षेत्र राजा जनक के भाई कुशध्वज के साम्राज्य में था।मान्यता के अनुसार यहां एक आम का पेड़ था, जिसके पत्ते कंगन की तरह होते थे।इसके साथ ही यहां स्थित कुंड के बारे में बताया जाता है,कि चौठारी की रस्म के पूर्व माता सीता के स्नान के लिए यहां सात कुंड का निर्माण कराया गया था। वही कुंड के दक्षिण-पूर्व की दिशा में विराजित महादेव गिरिजानाथ के शिवलिंग भी उसी समय स्थापित किये गये थे,जहां प्रभु श्रीराम और माता सीता ने उनकी पूजा-अर्चना की थी। बताते चले कि सीताकुंड नामक यह पौराणिक स्थल 18 एकड़ में फैले एक किलानुमा खंडहर के बीच अवस्थित है।स्थानीय पत्रकार मंकेश्वर पांडेय व पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य प्रसाद रत्नेश्वर के अनुसार सीताकुंड का पौराणिक महत्व है। हालांकि यह आज भी उपेक्षित है।रामायण सर्किट में 18 एकड़ क्षेत्र में करीब 15 फीट ऊंचे टीलेनुमा क्षेत्र में अवस्थित सीताकुंड को वह विशिष्ट स्थान नही है। जो इसे मिलना चाहिए।यहां अवस्थित प्राचीन मंदिर, पुरातात्विक शिलालेख, कई प्राचीन प्रतिमाएं, व भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण में मिली सामग्रियां सब इसके प्राचीन होने का पुख्ता प्रमाण दे रही हैं। लेकिन बिहार सरकार के उदासीन रवैया के कारण इसका विकास अवरूद्ध है।बताया गया कि वर्ष 1346 ईस्वी में एक शिलालेख कॉर्निंघम ने पाया था। वर्ष 1990 में पुरातत्ववेत्ता डॉ पीके मौन को यहां एक पंचमार्क तांबे का सिक्का मिला था। वहीं वर्ष 1995 में भी पांच मौर्यकालीन पंचमार्क सिक्के मिले थे,जिनमें चार तांबे का एवं एक कांस्य का तक्षशिला किस्म का सिक्का था। कुंड के आसपास के शिलालेख ब्राह्मी लिपि के पूर्व के कई संकेताक्षर अंकित हैं। यहां मिली मौर्यकालीन मूर्तियां भी इसकी प्राचीन होने का प्रमाण देती है।

हिन्दुस्थान समाचार/आनंद प्रकाश