मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद में 22 अप्रैल को भी जारी रहेगी सुनवाई
प्रयागराज, 16 अप्रैल (हि.स.)। मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट


प्रयागराज, 16 अप्रैल (हि.स.)। मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई सोमवार को भी जारी रहेगी।

न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन के समक्ष मुकदमे की पोषणीयता के लिए सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत मुस्लिम पक्ष की ओर से उठाए गए तर्कों के जवाब में मंगलवार को हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि मुकदमा चलने योग्य है और पूजा स्थल अधिनियम के साथ वक्फ अधिनियम के तहत अर्जी के सम्बंध में याचिका केवल मुकदमे में पक्षों के साक्ष्य से ही निर्धारित की जा सकती है।

विष्णु शंकर जैन ने कहा कि सिर्फ यह कह देने से कि अब वहां मस्जिद है, वक्फ कानून लागू नहीं होगा। केवल उसे ध्वस्त कर देने से सम्पत्ति का धार्मिक चरित्र नहीं बदला जा सकता। उन्होंने आगे कहा कि यह देखना और तय करना होगा कि कथित वक्फ डीड वैध है या नहीं। यदि सम्पत्ति वक्फ की वैध सम्पत्ति नहीं है तो वह वैध वक्फ नहीं होगी। इन सभी बातों को मुकदमे में देखा जाना चाहिए और इस प्रकार यह मुकदमा चलने योग्य है। लिमिटेशन के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह मुकदमा समय से दाखिल किया गया है।

वर्ष 1968 के कथित समझौते की जानकारी वादी को 2020 में हुई और जानकारी के तीन साल के भीतर मुकदमा दाखिल किया गया है। यह भी कहा गया कि यदि सिबायत या ट्रस्ट लापरवाही बरतता है और अपना कर्तव्य नहीं निभा रहा है, तो देवता स्वयं अपने किसी के माध्यम से आगे आ सकते हैं और मुकदमा कर सकते हैं और ऐसे मामले में सीमा का सवाल ही नहीं उठता है।

इससे पहले मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश तस्लीमा अजीज अहमदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बहस में कहा था कि मुकदमा परिसीमा से वर्जित है। उन्होंने तर्क दिया था कि मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि यह वक्फ अधिनियम के साथ-साथ पूजा स्थल अधिनियम 1991 के प्रावधानों द्वारा वर्जित है। और कहा था कि 1974 में तय किए गए एक दीवानी मुकदमे में समझौते की पुष्टि की गई है। समझौते को चुनौती देने की सीमा तीन साल है लेकिन मुकदमा 2020 में किया गया है। इस प्रकार यह मुकदमा काल बाधित है।

यह भी कहा गया कि शाही ईदगाह मस्जिद की संरचना को हटाने के बाद कब्जे के साथ मंदिर की बहाली और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा किया गया है। मुकदमे की प्रार्थना से पता चलता है कि विवादित स्थल पर मस्जिद की संरचना है और प्रबंधन समिति का उस पर कब्जा है। इस तरह वक्फ सम्पत्ति पर एक विवाद उठाया गया है और कहा गया कि वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे और ऐसे में वक्फ न्यायाधिकरण को मामले की सुनवाई का अधिकार है, न कि सिविल कोर्ट को।

हिन्दुस्थान समाचार/आर.एन/राजेश