हमीरपुर के एक गांव में होलिका दहन के आठवें दिन मनाई जाती है होली
- सैकड़ों सालों से कायम है रंग और गुलाल से होली खेलने की परम्परा हमीरपुर, 25 मार्च (हि.स.)। हमीरपुर ज
फोटो-25एचएएम-1एक गांव में आठवें दिन ही मनाई जाती है होली


- सैकड़ों सालों से कायम है रंग और गुलाल से होली खेलने की परम्परा

हमीरपुर, 25 मार्च (हि.स.)। हमीरपुर जिले का एक ऐसा गांव जहां इस गांव में होलिका दहन के आठवें दिन ही पूरा गांव सामूहिक रूप से रंग और गुलाल से होली खेलता है। दिन भर गांव की चौपाल में फाग की महफिलें भी सजती है। इस गांव में आठवें दिन होली खेलने की परम्परा भी सैकड़ों साल पुरानी है जिसमें क्षेत्र के सत्रह गांवों के लोग शामिल होते है।

हमीरपुर के कुरारा थाना क्षेत्र के दर्जनों गांवों में होली जलते ही रंग गुलाल से बच्चे और युवक सराबोर हो जाते हैं। मगर क्षेत्र का एक ऐसा गांव जहां सैकड़ों सालों से होली का त्योहार होलिका दहन के आठवें दिन मनाए जाने की परम्परा कायम है। गांव के समाजसेवी राकेश द्विवेदी ने बताया कि गांव में सैकड़ों सालों से होली जलने के आठवें दिन ही यहां रंगों की होली खेली जाती है। गांव में होली पर कई कार्यक्रम भी होते हैं। जिसमें आसपास के 17 गांवों के लोग शामिल होते हैं। फाग गाने वालों की टोलियां भी निकलती हैं। चौपालों में फाग गायकों की महफिलें सजती हैं। उन्होंने बताया कि गांव में यहीं एक ऐसा त्योहार है जिसे पूरा गांव सामूहिक रूप से होली के रंग और गुलाल से सराबोर होता है।

गांव के रमेश द्विवेदी समेत अन्य बुजुर्गों ने बताया कि इस गांव में होली का त्योहार अनोखे ढंग से मनाए जाने की परम्परा है। जिसमें पुरानी परम्परा का हिस्सा भी एक दर्जन से अधिक गांवों के लोग बनाते हैं। पिछले कई सालों से अब यह परम्परा कमजोर होने लगी है। इसके बावजूद गांव में आठवें दिन ही रंगों की होली खेली जाती है।

होली त्योहार की दूज तक हुआ था भीषण संग्राम

कण्डौर गांव के बुजुर्गों ने बताया कि राजा हम्मीरदेव और यवनों के बीच भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें वीसलदेव व सिंहलदेव ने राजगढ़ से आकर यहां हम्मीरदेव के पक्ष में युद्ध किया था। युद्ध भी होली की दूज तक चला था। युद्ध जीतने के बाद उपहार में सिंहलदेव और वीसलदेव को कुरारा क्षेत्र के बारह-बारह गांवों की जागीर दी गई थी। वीसलदेव का विवाह भी हम्मीरदेव की बेटी रामकुंवर के साथ हुआ था। नौंवी पीढ़ी के कोर्णाक देव के नाम पर ही कुरारा का नाम पड़ा था। उन्होंने अपने सभी गांव अपनी संतानों को बांट दिए थे। जिसमें कुरारा, रिठारी, जल्ला, चकोठी, पारा, कण्डौर, पतारा, झलोखर व नौंवी संतान को टीकापुर, वहदीना, कुम्हऊपुर व बैजे इस्लामपुर आदि गांव दिए गए थे।

भीषण संग्राम के बाद गांव में रंग खेलने की पड़ी परम्परा

तीन हजार से ज्यादा की आबादी वाले कण्डौर गांव में भीषण संग्राम के बाद होली का रंग खेलने की परम्परा पड़ी, जो आज भी यह कायम है। बताया कि हमीरपुर जिले के विदोखर गांव में पन्द्रह दिनों तक होली का रंग चलता है, जबकि कहीं-कहीं आठ दिनों तक होली खेली जाती है। लेकिन यहां कण्डौर गांव में सिर्फ एक दिन ही होली का रंग चलता है। होली जलने के आठवें दिन रिठारी, पारा, मोराकांदर, परसी, टीकापुर, वहदीना, हरेहटा, कुरारा, जल्ला व चकोठी सहित सत्रह गांवों के गौरवंश के लोग कण्डौर गांव में होली का रंग खेलने जाते है। फाग गाने वालों की तमाम टोलियां भी गांव में निकलती हैं। साथ ही एक जगह फाग की महफिलें सजती हैं, जिसमें रात में भी होली त्योहार का जलसा होता है।

हिन्दुस्थान समाचार/पंकज/मोहित