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चतरा, 29 नवंबर (हि.स.)। झारखंड और बिहार के सीमा में चतरा जिले के कान्हाचट्टी प्रखंड की कभी पहचान उग्रवाद और पिछड़ेपन के लिए होती थी। कान्हाचट्टी का उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र गडिया अमकुदार पोस्ते की खेती का सेफ जोन के लिए जाना जाता था। अफीम की खेती व तस्करी के लिए यह इलाक़ा पुलिस और प्रशासन के लिए सरदर्द था। ग्रामीण गांजा और पोस्ते की खेती कर अच्छे खासे पैसे कमाते थे। पोस्ता के फल में चीरा लगाकर अफीम निकालने के धंधे में कई संलिप्त थे। पुलिस व प्रशासन के बढ़ते दबाव व जागरूकता के कारण अब ग्रामीण पोस्ते की खेती को छोड़कर सब्जियों की खेती की ओर रूख कर लिए हैं। जिन खेती में कभी नशे की खेती होती थी उन खेतों में किसान मूंग, मसूर, आलू, टमाटर व अन्य नकदी फसलों की खेती करना प्रारंभ कर दिए हैं।
एसपी विकास पांडे ने बताया कि आज से दो तीन वर्ष पूर्व गडिया, अमकुदर व आसपास के गांवों में पोस्ते की सफेद फलों की चादर से क्षेत्र ढका रहता था। दूर से ही अफीम का सुगंध महकने लगता था। लेकिन आज की फिजां ही कुछ और बयां कर रही है। ग्रामीण टमाटर, मटर, आलू की खेती कर आत्मनिर्भर बनने की राह पर हैं। हालांकि पोस्ते की खेती कर ग्रामीण भले ही मालामाल हुआ करते थे। लेकिन इसकी खेती करने की जुर्म में गडिया अमकूदार, सिकिद, पथेल, नारे धैवैया आदि दर्जनों गावों के करीब डेढ़ सौ से अधिक ग्रामीणों पर एनडीपीएस एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल भेजा गया। आज के तीन चार वर्ष पूर्व पोस्ते की खेती करने व कराने के लिए उक्त गांव सेफ जोन माना जाता था।
पुलिस की मानें मो पहले इन गांवों में पहुंचने का रास्ता नहीं था। अब इन गांवों तक पहुंचने के लिए सड़कें, पुल पुलिया बन चुकी है। अपराधियों व उग्रवादियों पर नकेल कसने के लिए गडिया गांव में सीआरपीएफ का स्थायी कैंप स्थापित किया गया है। पुलिस के द्वारा ग्रामीणों के साथ बैठक कर पोस्ते की खेती नहीं करने के लिए जागरूकता चलाया जाता है और ग्रामीणों को संकल्प भी दिलाया गया है।
एसपी विकास पांडे ने बताया कि चतरा में नशे की खेती के खिलाफ निरंतर अभियान चलाया जाता है। ग्रामीणों के बीच जागरूकता अभियान चलाकर इससे होने वाले नुकसान से उन्हें अवगत कराया जा रहा है। पुलिस अफीम की खेती को रोकने के लिए पुरी मुस्तैदी से कार्य कर रही है।
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हिन्दुस्थान समाचार / जितेन्द्र तिवारी