प्रेरणा पुंज हैं हिन्दू राष्ट्र विचारक डॉ. हेडगेवार
-जन्मतिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ( इस वर्ष 22 मार्च) विशेष मृत्युंजय दीक्षित भारत के सबसे विशाल, सम
मृत्युंजय दीक्षित


-जन्मतिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ( इस वर्ष 22 मार्च) विशेष

मृत्युंजय दीक्षित

भारत के सबसे विशाल, समाजसेवी व राष्ट्रभक्त संगठन, 'राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ' के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म युगाब्द 4991 की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नागपुर के एक गरीब वेदपाठी परिवार में हुआ था। डॉ. हेडगेवार के पिता का नाम श्री बलिराम पंत व माता का नाम रेवतीबाई था। हेडगेवार जी का बचपन बहुत ही गरीबी में बीता किन्तु गरीबी के उस वातावरण में भी व्यायाम, कुश्ती, लाठी चलाना आदि में उनकी रुचि रही। बचपन में विभिन्न भवनों पर फहरा रहे यूनियन जैक को देखकर वे सोचते थे कि हमारे भारत वर्ष का हिन्दुओं का झंडा तो भगवा ही है क्योंकि भगवान राम और कृष्ण, शिवाजी, महाराणा प्रताप सभी की जीवन लीलाएं इसी झंडे की छत्रछाया में संपन्न हुई हैं और यहीं से उनके ह्रदय में यूनियन जैक को उतार फेंकने की योजना तैयार होने लगी।

डॉ. हेडगेवार की प्रारम्भिक शिक्षा अंग्रेजी विद्यालय नीलसिटी में हुई, जहां उन्होंने महारानी विक्टोरिया के 60वें जन्मदिन पर बांटी गई मिठाई को कूड़ेदान में फेंक दिया था। सन 1901 में इंग्लैंड के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के समय लोगों द्वारा खुशी मनाये जाने पर वो बहुत दुखी हुए।

1902 में प्लेग की महामारी के कारण उनके माता-पिता का देहावसान हो गया। हेडगेवार जी के बड़े भाई क्रोधी स्वभाव के थे। इसके कारण उन्होंने घर छोड़ दिया और अपने मित्रों के साथ रहने लगे। उन्होंने लोकमान्य तिलक के पत्र के लिए धन एकत्र करने का काम प्रारंभ किया और स्वदेशी वस्तुओं की दुकान खोलने में भी सहायता की।

19 सितम्बर 1905 को अंग्रेज सरकार ने बंगाल को विभाजित कर दिया जिसका पूरे देश में व्यापक विरोध हुआ। पूरा भारत वंदेमातरम् के नारे से गूंज उठा था। डॉ. हेडगेवार ने नागपुर के किले से अंग्रेजों के झंडे उतारकर भगवा झंडा लगाने का प्रयास किया। विद्यालय में निरीक्षक के आने पर छात्रों ने वंदेमातरम् के नारे लगाए। कुछ ही दिनों में डॉ. हेडगेवार नागपुर में तिलक के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उन्होंने ने 1906 में दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह अपनी पढ़ाई के लिए ट्यूशन और एक विद्यालय में नौकरी करने लगे । सन 1908 में अंग्रेज सरकार ने उनके पीछे गुप्तचर लगा दिए।

बड़े क्रांतिकरियों के साथ सम्पर्क में आने के लिए वह 1910 में कलकत्ता पहुंच गए। विद्यालय के पश्चात वह अन्य विद्यार्थियों से सम्पर्क करते थे। सन 1910 मे कलकत्ता में हुए दंगे के दौरान उन्होंने एक सुश्रूवा दल बनाया। यहां अनुशीलन समिति व प्रमुख क्रांतिकारियों से उनका सम्पर्क हुआ। जहां वो रहते थे, वहां एक गुप्तचर उनके पीछे लग गया। शंका होने पर उसकी तलाशी ली गई। उसके गुप्तचर होने कई प्रमाण मिले। इसके बाद उन्होंने अपनी वेशभूषा बदल दी।1913 में उन्होंने दामोदर नदी की बाढ़ के समय पीड़ितों की खूब सेवा की। दो सितम्बर को एल एल एंड संस की पदवी प्राप्त की और डॉक्टर की उपाधि लेकर वापस नागपुर लौटे।

1915 से 1920 तक वो राष्ट्रीय आंदोलनों में अत्यंत सक्रिय रहे। प्रवास, सभा, बैठक आदि में सदा सक्रिय रहते थे। तरुणों में पूर्ण स्वतंत्रता की आकांक्षा को धधकाने में वे सदा तत्पर रहते थे। नागपुर में दोबारा प्लेग फैला। इस दौरान उनके भाई का निधन हो गया। इसके बाद डॉ. हेडगेवार ने जीवन भर अविवाहित रहकर राष्ट्र कार्य करने का निश्चय किया। डॉ. केशव गणोशोत्सव में उत्साह से भाग लेते थे और उत्साह भरने वाले भाषण देते थे।उन्होंने होमरूल आंदोलन में भी भाग लिया। वो क्रांति के लिए व्यक्ति, धन तथा शस्त्रास्त्र की व्यवस्था करते थे। उन्होंने राष्ट्रीय उत्सव मंडल की स्थापना की और उनके घर पर शरद पूर्णिमा मनाई गई। सन 1919 में उन्होंने लाहौर कांग्रेस में भाग लिया। 31 जुलाई को असहयोग आंदोलन आरम्भ हो गया। कुछ समय बाद डॉ. हेडगेवार, योगीराज अरविंद से मिलने पांडुचेरी गए। 1920 में नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में वह सेवा दल के प्रमुख बने।

डॉ. हेडगेवार ने खिलाफत आंदोलन का विरोध किया और कहा कि यह देश के लिए घातक सिद्ध होगा। सरकार ने एक माह के लिए उनके भाषणों पर प्रतिबंध लगा दिया और फिर उन्हें एक वर्ष कारावास की सजा हुई। एक वर्ष बाद जब वे कारागार से छूटे तब स्थान- स्थान पर जनता ने उनका जोरदार स्वागत किया।

इस बीच हुए मोपला कांड में डेढ़ हजार हिंदू मारे गए और बीस हजार हिंदू मुसलमान बनाए गए। तीन करोड़ की संपत्ति नष्ट हुई। अंग्रेज सरकार ने 1923 में गणपति जुलूस को मस्जिद के सामने से निकलने पर रोक लगा दी। मुसलमानों ने दिण्डी निकलने का विरोध किया। तब डॉक्टर साहब ने हिंदू समाज में जागृति उत्पन्न कर राजे लक्ष्मणराव भोसले के सहयोग से दिण्डी सत्याग्रह का आयोजन करवाया। वह सत्याग्रह बहुत सफल हुआ। सन 1922 से 1925 तक डॉ. हेडगेवार हिंदू महासभा के कार्यों में जुटे रहे। इस अवधि को उनके जीवन में गहन विचार मंथन का काल कहा जा सकता है।

इसी बीच वीर सावरकर ने 1922 में जेल से हिन्दुत्व नामक खोजपूर्ण पुस्तक लिखकर बाहर भेजी।1924 में एकता परिषदें बनीं और कई नेताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर क्रांतिकारी लाला हरदयाल ने कहा कि हिंदू राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए शुद्धि संगठन और अफगानिस्तान का भारत में विलीनीकरण आवश्यक है।

उस समय सार्वजनिक कार्य करने के जो तरीके प्रचलित थे उनसे अलग हटकर डॉ. हेडगेवार ने अपनी प्रतिभा से 'शाखा' की एक नई पद्धति खोज निकाली। इस अनुशासित पद्धति में स्थायी संस्कार देने की अद्भुत क्षमता थी। 1925 की विजयदशमी को डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की घोषणा की और बाद में 17 अप्रैल, 1926 को एक बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम तय हुआ। संघ के नामकरण की बैठक में उन्होंने समझाया कि हिन्दुस्थान में हिदुओं का संगठन राष्ट्रीय ही कहलाएगा।उसे साम्प्रदायिक नहीं कहा जा सकता। हिंदुओं का कोई भी कार्य राष्ट्रीय ही माना जाना चाहिए।

संघ की स्थापना के बाद डॉक्टर साहब ने भगवा ध्वज को ही गुरु रूप में रखा। उन्होंने प्रतिवर्ष गुरुपूर्णिमा को इसका पूजन कर दक्षिणा समर्पण करने का विचार रखा। डॉ. हेडगेवार ने स्वयंसेवकों से कहा कि वह संघ का गणवेश धारण करें। संघ की कार्यपद्धति का धीरे-धीरे विकास हुआ और उसमें समय-समय पर अनेक बातें जुड़ती चली गईं। विजयादशमी, मकर सक्रांति, वर्ष प्रतिपदा, गुरुपूर्णिमा व रक्षाबंधन के परम्परागत उत्सव संघ शाखाओं में मनाये जाने के लिए चुने गए। इन पांच परम्परागत उत्सवों के साथ डॉक्टर साहब ने हिंदू साम्राज्य दिवस का छठा उत्सव भी प्रचलित कर स्वयंसेवकों व समाज के समक्ष यह बात रखी कि संघ क्या करना चाहता है।

सन 1936 में नासिक के शंकराचार्य ने उन्हें राष्ट्र सेनापति की पदवी से विभूषित किया। डॉक्टर साहब ने संघ के विकास व विस्तार के लिए भारत के विभिन्न क्षेत्रों व राज्यों का भ्रमण किया। अनेक बैठकें व कार्यक्रम आयोजित किए।1935 और 1936 में उन्होंने अथक श्रम किया। कुछ दिनों बाद वे नासिक पहुंचे। वहां उन्हें डबल न्यूमोनिया हो गया । छह फरवरी, 1940 को उन्हें राजगिरि ले जाया गया। वो कुछ समय बाद पूना और फिर नागपुर पहुंचे। नागपुर में उनका स्वास्थ्य फिर खराब हो गया। अस्वस्थता बढ़ती गयी और 21 जून 1940 को उनका निधन हो गया।

डॉक्टर साहब सदैव दलगत राजनीति से दूर रहे। उनका स्पष्ट विचार था कि परतंत्र राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के अतिरिक्त और कोई राजनीति नहीं हो सकती। जिस महापुरुष ने अपने कृतित्व के बल पर संघ कार्य को सफल कर दिखाया, उसके प्रति कृतज्ञता का भाव मन में धारण कर उस महान और पुण्य कार्य को आगे बढ़ाना प्रत्येक हिंदू का स्वाभाविक कर्तव्य है। संघ ने भारत को परम वैभवशाली बनाने का लक्ष्य अपनी आंखों के सामने रखा है। उसे साकार करने में सहयोग देना हिंदू और राष्ट्र के लिए परम कल्याणकारी होगा। डॉ. हेडगेवार दैनिक जीवन में समाजरूपी देवता की उपासना का मार्ग प्रशस्त कर गए हैं ।

डॉक्टर साहब का संपूर्ण जीवन अत्यंत उद्यमशील, कर्तृत्वशील और राष्ट्र को समर्पित रहा। उन्होंने संघ कार्य में तत्व निष्ठा को महत्व दिया। डॉक्टर हेडगेवार ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी हैं जिनके स्मृति मंदिर में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और एपीजे अब्दुल कलाम श्रद्धा सुमन अर्पित कर चुके हैं। उन्होंने सभी समकालीन विचारधाराओं का मंथन करने के उपरांत ही हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए संघ की स्थापना की थी। डॉ. हेडगेवार के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। डॉक्टर साहब की 1928 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस से भेंट हुई थी। नेताजी को डॉक्टर साहब की हिंदू संगठन की कल्पना पसंद आई थी। डॉक्टर साहब का मत था कि हिन्दुओं के श्रेष्ठ तत्वज्ञान और जीवन दर्शन के आधार पर ही विश्व की सभी समस्याओं का समाधान निकल सकता है। आज की कांग्रेस व उसका नेतृत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर जो आरोप लगा रहा है उन्हें डॉक्टर साहब की जीवनी और उनके विचार अवश्य पढ़ने चाहिए। पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लंदन में संघ को मुस्लिम ब्रदरहुड कहकर संबोधित कर अपनी अज्ञानता का परिचय दिया है। उनकी सोच में संघ के प्रति ईर्ष्या व नफरत स्पष्ट परिलक्षित होती है । कांग्रेस को संभवतः यह नहीं पता कि अगर आज भारत स्वतंत्र है तो उसके पीछे डॉक्टर हेडगेवार जैसे कुशल संगठनकर्ता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ डॉक्टर हेडगेवार जी के विचारों के अनुरूप ही लगातार आगे बढ़कर समाज की सेवा कर रहा है। संघ के सेवाकार्यों में डॉ. हेडगेवार के प्रेरक विचार, कार्य व प्रसंग हैं। संघ के सेवा कार्यों से समाज में बड़ा बदलाव भी दिख रहा है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद