पितृपक्ष : हर की पैड़ी, नारायणी शिला और कुशावर्त घाट पर श्रद्धालुओं का सैलाब
हरिद्वार, 7 सितंबर(हि.स.)। श्रद्धा, आस्था और सनातन परंपरा का संगम आज उस समय साक्षात दिखाई दिया जब पितृपक्ष की पूर्णिमा पर हजारों श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर अपने पितरों का स्मरण किया और तर्पण व पिण्डदान कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
नारायणी शिला पर तर्पण करते श्रद्धालु


कुशवर्त घाट पर श्राद्ध करते श्रद्धालु


हरिद्वार, 7 सितंबर(हि.स.)। श्रद्धा, आस्था और सनातन परंपरा का संगम आज उस समय साक्षात दिखाई दिया जब पितृपक्ष की पूर्णिमा पर हजारों श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान कर अपने पितरों का स्मरण किया और तर्पण व पिण्डदान कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।

आज से आरंभ हुआ 16 दोनों का पितृपक्ष अमावस्या तक चलेगा। इस दौरान सनातन में आस्था वाले लोग प्रतिदिन पवित्र स्नान, तर्पण, पिंडदान, नारायणी पूजन और ब्राह्मण भोज कराकर अपने पितरों की आत्मा को तृप्त करेंगे। ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज त्रिपाठी ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में किया गया तर्पण व श्राद्ध वंशजों को अखंड आशीर्वाद व सुख समृद्धि प्रदान करता है।

हरिद्वार में नारायणी शिला और कुशावर्त घाट आज श्रद्धालुओं से भरपूर रहै। श्रद्धालुओं ने नारायणी शिला को स्नान करा कर नारायण पूजन किया और अपने पूर्वजों को तर्पण अर्पित किया। मान्यता है कि नारायणी शिला पर पूजन करने से पितरों की आत्मा को गहरी तृप्ति मिलती है और परिवार पर आनंद व कल्याण की वर्षा होती है। नारायणी शिला के मुख्य पुजारी पंडित मनोज त्रिपाठी ने बताया कि पितृपक्ष में पूर्वज अपने वंशजों के द्वारा पूजा और स्मरण की प्रतीक्षा करते हैं। जब वंशज तर्पण और पिंडदान अर्पित करते हैं तो वह प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यही कारण है कि पितृपक्ष को कृतज्ञता पर्व भी कहा गया है। इसमें संतान अपने पितरों के प्रति आभार और श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

हरिद्वार मैं गंगा स्नान और पितृ पूजन का महत्व युगों से रहा है। मान्यता है कि गंगा स्नान के उपरांत पितरों का स्मरण करने से उनकी आत्मा को मोक्षप्राप्त होता है और वंशजों पर सद्भावना, संरक्षण व समृद्धि का आशीर्वाद बरसता है। यही कारण है कि पितृपक्ष में लाखों श्रद्धालु हरिद्वार पहुंचकर इस पवित्र अनुष्ठान को संपन्न करते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला