Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
मंडी, 06 सितंबर (हि.स.)। हजारों लोगों की मौजूदगी में ब्यास की लहरों में समा गए गणपति बप्पा, गणपति बप्पा मोरिया की ध्वनि से गूंजी छोटी काशी, शहर के हर हिस्से में लगे पंडालों से पूरे ठाठ बाट के साथ निकले और गाजे बाजों की ध्वनि व नाचते गाते श्रद्धालुओं के साथ निकली शोभायात्राओं के साथ हनुमान घाट पहुंचे। ग्यारह दिन अपने-अपने पंडालों में सजे रहे गणपति बप्पा शनिवार को गाजे बाजे, ढोल नगाड़ों के साथ भव्य शोभायात्राओं व स्थानीय देवी देवताओं एवं हजारों श्रद्धालुओं के साथ छोटी काशी के बाजारों से होते हुए हनुमान घाट पर ब्यास की लहरों में समा गए। यह दृश्य देखते ही बनता था।
गणपति बप्पा मोरिया की ध्वनि से गुंजायमान वातावरण में अपनी अपनी टोलियों के साथ एक के बाद एक गणपति की सजी धजी प्रतिमा हनुमानघाट पहुंची जहां एसडीआरएफ, गोताखोरों व मंडी पुलिस की मौजूदगी में नदी की लहरों में इस आह्वान के साथ समा गए कि अगले साल फिर से आएंगे। इस दौरान पूरे शहर में लोग सड़कों किनारे और ब्यास नदी किनारे मौजूद रहे। ब्यास नदी के विक्टोरिया पुल व पुरानी मंडी की ओर भी हजारों लोगों ने गणपति विसर्जन का नजारा देखा। ब्यास नदी किनारे बड़ी तादाद में पुलिस बल मौजूद था तथा हर टोली के कुछ ही लोगों को तट तक जाने की इजाजत थी जबकि विसर्जन की प्रक्रिया
एसडीआरएफ के जवानों की मदद से पूरी की गई। भारी जनसमूह व अलग अलग पंडालों से निकलने वाली शोभायात्राओं को देखते हुए एसडीएम सदर ने पहले ही अधिसूचना जारी करके ब्यास नदी को जोड़ने वाली सड़क पर दोपहर के बाद वाहनों की आवाजाही प्रतिबंधित कर दी थी। इसके बावजूद शहर गणपति के रंग से सराबोर होकर एक तरह से जाम होकर रह गया। शहर के एक दर्जन से अधिक स्थानों पर गणपति के पंडाल सजे थे।
शहर के प्रमुख मंदिर प्राचीन सिद्धगणपति मंदिर सैण, नीलकंठ महादेव थनेहड़ा, विश्वकर्मा मंदिर, शीतला माता मंदिर, मोती बाजार, रामनगर, महाजन बाजार, बालकरूपी बाजार, बंगला मुहल्ला, स्कूल बाजार के अलावा लोगों ने अपने घरों में भी गणपति की प्रतिमाएं स्थापित कर रखी थी जिन्हें पूरी शानोशौकत के साथ दरिया ब्यास तक ले जाया गया तथा विसर्जित किया गया। शोभायात्राओं में स्थानीय देवी देवताओं की पालकियां भी पारंपरिक वाद्य यंत्रों की ध्वनि के साथ इसमें शामिल हुई। मंडी शहर में विभिन्न स्थानों पर सजे गणेश पंडालों में हर रोज भजन कीर्तन जारी रहा। शनिवार को मंडी शहर के मोती बाजार, चौहटा बाजार, रामनगर, सिद्धगणपति सैण -मट, नीलकंठ महादेव मंदिर, बंगलेश्वरी मंदिर आदि पंडालों में हवन-पूजा अर्चना के बाद बप्पा को विदा करने के लिए लोक देवताओं के रथ भी ढोल-नगाड़ों के संग पधारे। जिसके चलते कई जगहों पर भंडारे का आयोजन भी किया गया।
हर बार गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन हनुमानघाट पर ब्यास नदी किया जाता है। लेकिन इस बार कुछेक गणेश पंडाल कमेटियों ने गणपति विसर्जन न करने का निर्णय लिया है। इसके पीछे तर्क यही दिया जा रहा है कि उत्तर भारत में भगवान श्रीगणेश स्थानीय देवता है, हर शुभ कार्य में सबसे पहले गणेश पूजन की परंपरा है। इसलिए ब्यास दनी में गणेश प्रतिमा को विसर्जित कर विदा करना तर्क संगत नहीं है। इसके बावजूद भी कुछ गणेश पंडालों में दस दिन तक भजन कीर्तन करने के पश्चात शनिवार को धूमधाम के साथ हनुमान घाट पर पुलिस के पहरे के बीच गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया। पुलिस के जवान ब्यास नदी के घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करने के अलावा नदी में प्रतिमाओं का विसर्जन करते रहे । जिससे कोई अनहोनी घटना न हो पाए।
वहीं पर बंगलेश्वरी मंदिर बंगला मुहल्ला के पंडाल में विराजमान गणपति बप्पा की मूर्ति को शहर में परिक्रमा के बाद हनुमान घाट तक तो लाया गया। लेकिन उसका विसर्जन नहीं किया गया। इसके बदले सुपारी, जनूऊ और नारियल का विसर्जन किया गया। जबकि गणेश जी की प्रतिमा वीरमंडल सराय में विराजमान रहेगी। उसी प्रकार रविवार को गणेश उत्सव के संस्थापक संजीव शास्त्री भी गणेश प्रतिमा का विसर्जन नहीं करेंगे । वे भी सुपारी, जनेऊ और हरा नारियल ब्यास नदी में प्रवािहत कर इस रस्म को पूरा करेंगे। इससे पूर्व दोपहर बाद मंडी शहर में विभिन्न मुहल्लों में विराजमान गणेश प्रतिमाओं को बाजे गाजे के साथ शोभायात्रा के रूप में नाचते गाते श्रद्धालुओं द्वारा हनुमानघाट तक पहुंचाकर विसर्जन किया गया गया।
मौसम के साफ रहने से गणपति विसर्जन की शोभायात्राएं भव्य तरीके से निकली जिन्हें देखने पूरी छोटी काशी उमड़ पड़ी। ब्यास नदी में भी दो दिनों से जल स्तर कुछ नीचे चला गया है जिससे यह विसर्जन प्रक्रिया सरल रही तथा प्रतिमाएं भी तेज जलधारा में आसानी से समाधि लेते हुए प्रवाहित हो गई। 27 अगस्त से लेकर 6 सितंबर तक 11 दिन मंडी शहर में गणपति पंडालों में दिन रात पूजा व भजन कीर्तन के कार्यक्रम चलते रहे। भंडारों का आयोजन भी हुआ जिसमें लाखों लाख लोग शामिल हुए। मंडी में यह उत्सव बेहद लोकप्रिय हो गया है तथा इसे बड़े स्तर पर मनाया जाने लगा है। हालांकि कि प्रतिमा विसर्जन को लेकर कुछ अपवाद भी सामने आए हैं तथा विसर्जन को सही न मानते हुए कुछ आयोजकों ने इसे प्रवाहित ने करने का निर्णय लिया जिसे लेकर अब एक चर्चा भविष्य के लिए शुरू हो गई है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / मुरारी शर्मा