Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
सागर, 04 सितम्बर (हि.स.)। मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित गढ़ाकोटा नगर का ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल गणेश घाट इस समय श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। यहाँ स्थित प्राचीन गणेश मंदिर में भगवान गणेश की आठ अलग-अलग प्रतिमाएँ अष्टविनायक स्वरूप में विराजमान हैं। ये सभी प्रतिमाएँ विशिष्ट मुद्राओं में स्थापित हैं, जिनके दर्शन से भक्तों को विशेष आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।यह स्थान शायद देश का पहला ऐसा मन्दिर है जहाँ एक ही मन्दिर में रिद्धि सिद्धि के दाता भगवान गणेश की अष्ट स्वरुप प्रतिमाएं स्थापित है। गौरतलब हो कि महाराष्ट्र राज्य में पुणे के 200 किमी की परिधि में विभिन्न स्थानों पर अलग अलग तीर्थ स्थल पर प्राचीन मंदिरों में ऐतिहासिक प्रतिमाएं विराजमान हैं।
पीपल घाट मंदिर परिसर में विराजित भगवान गणेश के अष्ट स्वरूप हैं- मयूरेश्वर, सिद्धिविनायक, विघ्नहर, गिरिजात्मजा, चिंतामणि, बल्लाळेश्वर, वरदविनायक और महागणपति। मयूरेश्वर गणेश जी के दर्शन से शत्रु बाधा और भय दूर होते हैं। जीवन में साहस और विजय प्राप्त होती है।
सिद्धिविनायक गणेश जी पूजा करने से सिद्धियाँ और सफलता प्राप्त होती है। हर कार्य में सफलता मिलती है। विघ्नहर विघ्नहर्ता स्वरूप के दर्शन से जीवन के सभी विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और कार्य सिद्ध होते हैं।गिरिजात्मज के दर्शन से संतान सुख की प्राप्ति होती है और पुत्र-पौत्र की दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। चिंतामणि दर्शन से मन की चिंताएं समाप्त होती हैं और मानसिक शांति मिलती है। बल्लाळेश्वर गणेश जी के सच्चे मन से दर्शन करने पर भक्ति और अटूट विश्वास की शक्ति मिलती है। पारिवारिक जीवन सुखमय होता है।
वरदविनायक गणेशजी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और धन-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। महागणपति के दर्शन से शत्रुओं पर विजय मिलती है और भक्त शक्ति एवं पराक्रम से परिपूर्ण होता है। धार्मिक मान्यता है कि अष्टविनायक के एक साथ दर्शन करने से पुण्य फल मिलता है। इसी कारण प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ पहुँचकर भगवान गणेश की आराधना करते हैं।
गणेशोत्सव के दौरान विशेष आयोजन,बटुक ब्राह्मण कर रहे अनुष्ठान
गणेशोत्सव पर्व के अवसर पर पीपल घाट मंदिर में भव्य सजावट की गई है। यहां पर संचालित गणेश सँस्कृत विद्यालय के बटुक ब्राह्मण के द्वारा प्रतिदिन प्रातः दोपहर और सायं विशेष पूजन-अर्चन, आरती एवं भजन संध्या का आयोजन हो रहा है। दर्शनार्थियों को भगवान के विभिन्न स्वरूपों के बारे में मार्गदर्शन ओर दर्शन लाभ के सम्बंध में बताया है नगर सहित आस-पास के ग्रामीण अंचल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुँचकर अष्टविनायक के दर्शन कर रहे हैं।
मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि गणेशोत्सव पर्व के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए विशेष व्यवस्था की गई है। घाट परिसर में प्रकाश व्यवस्था, जलपान की व्यवस्था तथा सुरक्षा प्रबंधन भी किया गया है। गढ़ाकोटा का पीपलघाट अपनी प्राचीनता, आस्था और धार्मिक महत्व के कारण आज भी क्षेत्रवासियों की आस्था का केंद्र है। अष्टविनायक गणेश प्रतिमाओं के दर्शन कर भक्त अपने जीवन में सुख-समृद्धि और मंगल की कामना करते हैं।
पं. गोपाल भार्गव बताते हैं कि किशोरावस्था की उम्र थी, नगर में पानी की बड़ी समस्या रहती थी उस समय पीने का पानी कुओं, ट्यूबबेल से लाते थे लेकिन कपड़े और नहाने के लिए सुनार नदी के पीपल घाट पर जाना पड़ता था किशोरावस्था थी नदी में नहाते थे और वही घाट पर प्राचीन जीर्ण शीर्ण गणेश जी का मंदिर था वहाँ जाकर जल अर्पण कर प्रार्थना करता था, भगवान की असीम कृपा हुई प्रार्थना स्वीकार हुई कुछ समय बाद आर्थिक रूप से सक्षम हुए सिनेमा खोला आय होने पर मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया और आज एक तीर्थ स्थल के रूप में मन्दिर स्थापित है।। यहां बता दें कि भार्गव नित्य प्रति दिन सुबह शाम भगवान गणेश की पूजा अर्चना करते हैं गढ़ाकोटा में निवास स्थान पर ही विघ्नहर्ता गणेश की प्रतिमा स्थापित है।
भार्गव को कैसे आया विचार
पूर्व मंत्री एवं क्षेत्रीय विधायक गोपाल भार्गव ने बताया कि पीपल घाट स्थित गणेश मंदिर और यहाँ पर अष्ट विनायक की स्थापना के सम्बंध में विस्तृत रूप से चर्चा करते हुए बताया कि इसके पीछे की एक छोटी कहानी है। लगभग 30 वर्ष पूर्व भोपाल आने जाने के लिए ट्रेन से सफर करते थे वह भी गढ़ाकोटा से पथरिया या सागर वहां से ट्रेन से फिर बीना में ट्रेन पकड़कर भोपाल पहुंचते थे एक बार बीना स्टेशन पर अग्रवाल होटल पर बैठकर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे कि वहाँ तत्कालीन बीना विधायक सुधाकर राव बापट मिल गए उनसे पूछा कि कहां से आ रहे हैं तो उन्होंने महारष्ट्र के उन स्थानों का बताया जहाँ भगवान गणेश के अष्टविनायक गणेश के अष्ट स्वरूप प्रतिमाओं के मंदिरों की जानकारी दी उस समय में मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर दर्शनों के लिए जाता था। वापट जी से विस्तृत जानकारी प्राप्त की ओर फिर वहाँ जाने का सिलसिला शुरू हो गया दो वर्ष पहले किन्ही कारणों से में दर्शनों के लिए नहीं पहुंच सका तो ऐसे ही बैठे बैठे चर्चा के दौरान विचार आया कि क्यो न गढ़ाकोटा में ही अष्टविनायक की स्थापना हो जाये तो सभी को दर्शनो का लाभ मिले।
कानपुर के विशेष पत्थरों से निर्मित अष्ट स्वरूप प्रतिमाएं
पूर्व मंत्री ने बताया कि जिस शिला से अयोध्या में भगवान राम जी की प्रतिमा का निर्माण हुआ है उन्ही शिलाओं से पीपल घाट मन्दिर में स्थापित प्रतिमाओं का निर्माण किया गया है कानपुर से पत्थर लेकर उन्हें जयपुर में लगभग आठ माह में भगवान अष्ट विनायक को मूर्त रूप दिया गया है इन प्रतिमाओं का स्वरूप हूबहू महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानों पर विराजमान अष्ट विनायक गणेश जी की प्रतिमाओं जैसा ही है।
पदमश्री आचार्य गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने निकाला मुहूर्त कराई प्राणप्रतिष्ठा
भार्गव ने बताया कि मूर्तियां बनकर तैयार हो गई अब इनके प्राणप्रतिष्ठा के लिए बड़ा ही विचार विमर्श किया गया क्योंकि प्रतिमा का निर्माण करना, उनकी पूजा अर्चना एक प्रकार से सरल है लेकिन एक प्रतिमा की विधिवत रूप से प्राणप्रतिष्ठा करना बड़ा ही कठिन व मुख्य कार्य है यहाँ आठ प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा होनी थी काशी के प्रसिद्ध विद्वान आचार्य गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ (66), जिन्होंने अयोध्या के श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा व श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के नव्य-भव्य धाम के लोकार्पण का मुहूर्त निकाला था। केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है उन्होंने मुहूर्त निकाला और आठ दिवसीय प्राणप्रतिष्ठा उन्ही के निर्देशन में संपन्न हुआ।
गढ़ाकोटा में एक ही छत के नीचे अष्टविनायक, प्राचीन गणेश, संस्कृत विद्यालय, हनुमान मंदिर स्थापित होने से गढ़ाकोटा का सुनार नदी किनारे स्थित पीपल घाट गणेश मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र बन गया है।स्थानीय लोगों को तो है ही धीरे धीरे सम्पूर्ण राज्य और देश के अन्य स्थानों से भी लोग जानकारी प्राप्त होने पर यहाँ पहुंचते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर