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झाबुआ, 04 सितम्बर (हि.स.)। भगवान् श्रीकृष्ण का इस धरा धाम पर अवतरण केवल आसुरी शक्तियों के विनाश और धर्म स्थापना के लिए ही नहीं होता है, अपितु वे अपने प्रेमी भक्तों को अपनी दिव्य लीलाओं के माध्यम से आत्मानंद प्रदान करने के निमित्त अवतार ग्रहण करते हैं। जगत् का प्रत्येक जीव आनंद की चाहना रखता है, और वह दिव्यतम आनंद सांसारिक सुखों में है ही नहीं, अपितु प्रभु शरणागति और प्रभु प्रेम में ही निहित है, इसलिए भगवान् अपने शरणागत प्रेमी जीवों पर कृपा कर सगुण रूप धारण कर अवतरित होते हैं। उनकी वो लीलाएं दिव्यतम, मधुर और जगत् को आनंद प्रदान करने वाली होती है।
उक्त विचार श्रीमद्भागवत कथा वाचक डॉ. उमेशचन्द्र शर्मा द्वारा श्रीमद्भागवत कथा के दौरान व्यास पीठ से व्यक्त किए गए। शर्मा मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले के थान्दला में श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर परिसर में श्रीमद्भागवत भक्ति पर्व के अंतर्गत आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवतकथा के चतुर्थ दिवस गुरुवार को कथा वाचन कर रहे थे। इस दौरान कथा में भगवान् श्री वामन, भगवान् श्री राम और भगवान् श्रीकृष्ण के अवतरण प्रसंग सहित अन्य प्रसंगों का वाचन किया गया।
श्रीमद्भागवत कथा वाचन करते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि भगवान् श्रीकृष्ण धर्म स्थापना हेतु युग युग में अवतार ग्रहण करते हैं, किंतु केवल आसुरी शक्तियों का संहार कर धर्म स्थापना भगवान् का एकमेव लक्ष्य नहीं हो सकता। प्रभु अपने जनों को आत्मानंद प्रदान करने हेतु इस पृथ्वी पर अवतरित होते हैं। यदि केवल दैत्यों, दानवों या राक्षसों का विनाश कर धर्म स्थापना ही निमित्त होता, तो मात्र उसके लिए निर्गुण भगवान् को सगुण रूप धारण करने की आखिर क्या जरूरत हो सकती? श्री भगवान् यदि केवल संकल्प भर कर लें तो क्षणांश में संपूर्ण जगत् की समस्त आसुरी शक्तियां स्वयंमेव समाप्त हो सकती है और तत्क्षण धर्म राज्य की स्थापना हो सकती है।
उन्होंने कहा कि इन्द्र पुत्र जयंत के द्वारा देवी सीता के चरणों में आघात पहुंचाने पर भगवान् श्री राम ने एक तिनका उठाकर उसकी और फैंक दिया था, श्रीरामचरितमानस की कथा कहती है कि वही तिनका उसके लिए विकराल तीर बन गया, और उस तिनके रुपी तीर से त्रिलोकी में कोई भी दैवीय शक्ति उसकी रक्षा नहीं कर पाई। परमात्मा के लिए धर्म स्थापना बच्चों के खेल से अधिक कुछ नहीं हो सकता। वस्तुत: वे अपने प्रेमी जनों को आत्मानंद का सुख प्रदान करने के हेतु से ही सगुण साकार रूप धारण कर इस धरा धाम पर पधारते हैं, और प्रेम की प्यासी जीवात्माओं को प्रेमानंद से परिपूर्ण कर संपूर्ण जगत् में प्रेम राज्य की स्थापना करते हैं। भगवान् का वह अवतरण, उनकी लीलाएं और उपादान सब कुछ दिव्यता लिए हुए होते हैं। कहने को ही भगवान् मनुष्य शरीर सहित विभिन्न शरीर धारण करते हैं, वस्तुत: भगवान् का वह अवतारी शरीर पंचभौतिक होता ही नहीं। उनका वह शरीर दिव्य, चिन्मय प्रकाश रूप है। यही नहीं बल्कि भगवान् की लीला के उपादान गिरिराज गोवर्धन, ब्रज गोपियां, गोप और गौएं सहित श्री वृंदावन धाम सब दिव्यातिदिव्य हैं।
आज कथा में भगवान् श्री वामन, भगवान् श्री राम और भगवान् श्रीकृष्ण के अवतरण प्रसंग सहित गजेन्द्र मोक्ष, देवासुर संग्राम, समुद्र मंथन और मत्स्यावतार की कथा सहित राजा बलि प्रसंग का भी वाचन किया गया।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर