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वाराणसी,03 सितम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में नगर निगम प्रशासन ने इस बार दुर्गा पूजा के बाद प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए ‘ग्रीन प्लान’ लागू किया है।
मूर्तियों का विसर्जन नगर के ऐतिहासिक कुंडों और तालाबों में नही होगा। बल्कि बनाएं गए अस्थाई तालाबों में मूर्तियों का विसर्जन होगा। नगर निगम प्रशासन ने कुण्डों में मूर्ति विसर्जन के सम्बन्ध में नागरिकों के सुझाव भी मांगे। नगर आयुक्त अक्षत वर्मा ने विगत 28 अगस्त को मीडिया के माध्यम से नागरिकों से अपील की थी कि वे पर्यावरण और धरोहर बचाने के इस प्रयास में सहयोग दें और विसर्जन स्थलों के लिए अपने सुझाव भेजें। नगर आयुक्त के अपील पर 9 नागरिकों ने अपने सुझाव भेजे, जिसमें विद्यानन्द शर्मा द्वारा सगरा तालाब माधोपुरा में, इशान मेहरोत्रा ने गोलगड्डा के आगे नुआव पोखरा में कुण्ड बनाकर, उमेश कुमार मौर्या ने बेनियाबाग तालाब का नाम सुझाया, मनीश गुप्ता ने मोती झील महमूरगंज, सत्यम सिंह ने सुझाव दिया कि मूर्ति विसर्जन पश्चिम बंगाल के तर्ज पर, मूर्तियों को क्रेन द्वारा गंगा में विसर्जन करने के तत्पश्चात क्रेन से वापस निकाल लिया जाए, जिससे पर्यावरण को नुकसान नही होगा, धर्मेन्द्र सिंह टिंकू ने दुर्गाकुण्ड के सामने दयाल टावर के बगल में खाली भूमि पर तथा इन्ही के द्वारा पद्मश्री चौराहे के पास कुरूक्षेत्रा के तालाब में, अजय सिंह ने कमौली तालाब चिरईगॉव में तथा हरीश शर्मा ने गंगा नदी के उस पार अस्थायी कुण्ड बनाकर मूर्ति विसर्जन करने के लिए सुझाव दिया। महापौर अशोक कुमार तिवारी ने नागरिकों से अपील की है कि शहर के प्राचीन कुंड संस्कृति और इतिहास की धरोहर हैं। इनका सौंदर्यीकरण कर इन्हें सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी नागरिकों की भी है।
विसर्जन से फैलने वाली गंदगी और जलीय जीवों को होने वाले नुकसान को देखते हुए निगम ने अपील की है कि लोग इन तालाबों और कुंडों में प्रतिमा विसर्जन न करें। इसके लिए उपयुक्त वैकल्पिक स्थल बताए। नगर निगम, वाराणसी ने संकुलधारा कुण्ड के पास वैकल्पिक व्यवस्था पूर्ण कर ली है। नगर आयुक्त अक्षत वर्मा ने नागरिकों, जनप्रतिनिधियों और समितियों से कहा है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में उपयुक्त स्थल का नाम, जीपीएस लोकेशन और फोटो व्हाट्सएप नंबर 8601872688 पर भेज सकते हैं। नगर आयुक्त अक्षत वर्मा का कहना है कि दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन बिना असुविधा और पर्यावरणीय क्षति के कराया जाएगा। नागरिक अपने सुझाव अवश्य भेजें, ताकि सभी के सहयोग से इस परंपरा को सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से निभाया जा सके।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी